फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) किसी भी मेडिकल कॉलेज में असली डॉक्टर तैयार करने के लिए छात्रों को एनाटॉमी (शरीर रचना), फिजियोलॉजी (शरीर क्रिया विज्ञान), हिस्टोलॉजी (ऊतक विज्ञान) , रेडियोलॉजी आदि जैसे प्रायोगिक विषयों का अध्ययन कराया जाना बहुत जरूरी है। इन विषयों का अध्ययन छात्रों को कैडवर (मृत मानव शरीर) पर प्रयोग के जरिए कराया जाता है। बायोकेमिस्ट्री (जीव-रसायन क्रिया), फार्माकोलॉजी (दवाओं संबंधी अध्ययन) पैथोलॉजी(रोग विज्ञान), मेडिसिन आदि विषयों की पढ़ाई मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में आने वाले मरीजों के अध्ययन के जरिए कराई जाती है। अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज का अस्पताल तो चल ही नहीं रहा है यानी छात्रों को इन महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी किताबें रटा कर कराई गईं, इसी तरह कैडवर पर प्रयोग नहीं कर पाने वाले अधिकतर छात्रों को आधी अधूरी पढ़ाई कराकर ही एमबीबीएस की डिग्री थमाई जाएगी। नकली डॉक्टर पैदा करने वाली अटल बिहारी मेडिकल फैक्टरी से निकले ये एमबीबीएस डिग्रीधारक मरीजों का इलाज, खासकर सर्जरी करने में कितने सक्षम होंगे समझा जा सकता है।
हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने का पाखंड करने वाले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 2019-20 में इस मेडिकल कॉलेज को अधिगृहीत करते हुए दो दिन में चलाने का दावा किया था। दावा करने में कुछ लगता तो है नहीं सो कर दिया, लेकिन अमलीजामा आज तक नहीं पहना सके। मेडिकल कॉलेज चलाने के लिए आवश्यक फैकल्टी के 74 पदों में से खट्टर केवल 15 ही दे सके। दी गई केवल बीस फीसदी फैकल्टी में अनेक प्रमुख विषय पढ़ाने वाले प्रोफेसर ही नहीं थे।
इसी तरह तीन साल में सीनियर रेजिडेंट एसआर, जूनियर रेजिडेंट जेआर और ट्यूटर के 40 पदों में केवल 12 उपलब्ध कराए गए। एक तो फैकल्टी नहीं ऊपर से कोढ़ में खाज की तरह मेडिकल कॉलेज में आधारभूत ढांचे का अभाव, ऑपरेशन थियेटर, आईसीयू, वार्ड ही नहीं थे। खून की जांच की भी व्यवस्था नहीं। यहां तक कि प्रसूति की सुविधा भी नहीं, आकस्मिक मरीजों के उपचार के लिए इमरजेंसी वार्ड तक नहीं था। ऐसे में छात्रों ने क्या पढ़ाई की होगी समझा जा सकता है।
इतनी कमियों के बावजूद खट्टर सरकार हर साल सौ छात्रों की भर्ती देकर उनसे फीस के रूप में आठ करोड़ रुपये वसूलते रही। अब तीसरा बैच शुरू होने वाला है, दो साल में सरकार विद्यार्थियों से 24 करोड़ रुपये तो झटक चुकी है, लेकिन शिक्षा के नाम पर उन्हें सिर्फ ठगा ही गया। अब तीसरे साल में सरकार नए और पुराने विद्यार्थियों से फीस के रूप में 48 करोड़ रुपये वसूलेगी, लेकिन शिक्षा व्यवस्था में कोई सुधार नहीं करेगी।
मेडिकल कॉलेज को फर्जी डॉक्टरों की फैक्टरी बनाने में सीएम खट्टर ने महती भूमिका निभाई। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) की टीम ने वर्ष 2021 में सर्वे के बाद कॉलेज में मेडिकल पढ़ाई के आधारभूत संसाधन, फैकल्टी, मानव संसाधन नहीं होने के कारण इसकी मान्यता प्रदान करने से मना कर दिया था। तब खट्टर ने सारी व्यवस्था चाक चौबंद कराने का आश्वासन देकर एनएमसी से एक वर्ष की अस्थायी मान्यता हासिल कर ली थी। व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए खट्टर ने अपने प्रिय शबरीमाला के भक्त नल्हड़ मेडिकल कॉलेज के निकम्मे डॉ. गौतम गोला को यहां डायरेक्टर का अतिरिक्त कार्य दिया था। अयोग्य गौतम गोला ने व्यवस्था तो क्या सुधारनी थी, इसके नाम पर जमकर खर्च किया।
गोला के कार्यकाल में दवाएं नहीं बांटे जाने के कारण ओपीडी चली ही नहीं। मानक के अनुसार ओपीडी में रोजाना कम से कम पांच सौ मरीज आने चाहिए लेकिन वहां दहाई का आंकड़ा छूना भी मुश्किल होता। नतीजतन 27 करोड़ रुपयों की दवाएं एक्सपायर हो गईं। आईपीडी तो चली ही नहीं। पढ़ाई करने वाले छात्र क्या और किस पर अध्ययन करते जब ओपीडी-आईपीडी में मरीज ही न हों, इमरजेंसी तो कभी चालू ही नहीं हुई। संदर्भवश बताते चलें कि दस मेडिकल छात्रों के अध्ययन के लिए एक कैडवर चाहिए। मेडिकल कॉलेज को 2021 में एक कैडवर मिला था, एक साल में एक मृत शरीर से इतने छात्रों को कितना पढऩे, समझने का मौका मिला होगा समझा जा सकता है।
मई 2023 में एनएमसी की टीम ने दौरा किया तो मेडिकल कॉलेज की हालत में कोई सुधार नहीं दिखा। इस पर एनएमसी ने मान्यता रद्द कर दी। व्यवस्था सुधारने के बजाय खट्टर ने डबल इंजन सरकार के रसूख का इस्तेमाल कर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से दबाव डलवा कर एनएमसी से एक बार फिर जनवरी 2024 तक का समय हासिल कर लिया। खट्टर के चहेते डॉ. गौतम गोला ने फिर भी कुछ नहीं किया, और खट्टर की ही तरह अक्तूबर में घोषणा कर दी कि जल्द यहां आईपीडी सेवाएं शुरू कर दी जाएंगी। घोषणा से कुछ नहीं होता इसके लिए कार्रवाई भी करनी होती है जो गोला ने नहीं की। घोषणावीर खट्टर को भी देर से ही सही समझ में आ गया कि गौतम गोला कुछ करेगा नहीं केवल बिगाड़ ही रहा है, तो उन्होंने नवंबर 2023 में डॉ. बृजमोहन वशिष्ठ को यहां का डायरेक्टर नियुक्त किया।
डायरेक्टर तो बना दिया लेकिन वशिष्ठ को कोई अधिकार नहीं दिए गए, न तो वो अपनी मर्जी से खर्च कर सकते हैं, न किसी स्टाफ की भर्ती कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें चंडीगढ़ में बैठी सरकार का मुंह तकना पड़ता है। बंधे हाथों से कम समय में वह जितना काम कर सकते थे किया, लेकिन इससे न तो मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था में कोई आमूल-चूल परिवर्तन हुआ और न ही अस्पताल की ओपीडी-आईपीडी में कोई सुधार हुआ। और तो और अभी तक यह संस्थान अग्निशमन विभाग से एनओसी नहीं ले सका है। अभी मेडिकल कॉलेज पर मान्यता समाप्त होने की तलवार लटक रही है लेकिन तीसरे बैच के लिए सौ छात्रों की भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी गई। यानी खट्टर सरकार छात्रों से करोड़ों रुपये वसूल कर उनके भविष्य को अंधकार में डुबोने की तैयारी कर रही है।