छांयसा (मज़दूर मोर्चा) सन् 2020 की कोरोना लहर के दौरान ‘मज़दूर मोर्चा’ में प्रकाशित समाचार को लेकर मुख्यमंत्री खट्टर ने घोषित किया था कि वे दो दिन में अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल को चालू कर देंगे। इतना ही नहीं घोषणा से अगले ही दिन इस परिसर में पहुंच कर अपनी घोषणा को फिर से दोहराया। जनता को मूर्ख बनाने में कोई कसर न रह जाए, इसके लिये कुछ दिन बाद यहां अब फौजी डॉक्टरों को तैनात भी कर दिया। जि़ले के तमाम भाजपाई विधायकों एवं मंत्रियों ने अस्पताल की शुरूआत के नाम पर हवन का पाखंड भी किया। इस सबके बावजूद आज यहां ओपीडी तक भी चालू नहीं है, मरीज़ों की दाखिल होने की बात तो छोड़ ही दीजिये।
नेशनल मेडिकल कमीशन की शर्तों के अनुसार मेडिकल कॉलेज में छात्रों को दाखिला तभी दिया जा सकता है जब प्रति दिन कम से कम 300 मरीज़ ओपीडी में आते हों तथा 300 बेड के वार्डों में कम से कम 60 प्रतिशत बेड भरे हों। इसके अलावा फैकल्टी, स्टॉफ तथा उपकरण आदि से सम्बन्धित अनेकों शर्तें और भी हैं। किसी भी शर्त को पूरा न करने के बावजूद एक साल की पढ़ाई तो यहां पूरी हो चुकी है दूसरा बैच लाने की तैयारी है। समझा जा सकता है कि ऐसे में पढ़ाई करने वाले डॅॉक्टर बन कर मरीजों का कैसा इलाज करेंगे?
हाल ही में मीडिया में आये, संस्थान के डायरेक्टर गौतम गोले के बयान में कहा गया है कि अस्पताल को फायर एनओसी यानी कि अग्निशमन का अनापत्ति पत्र मिलने के बाद ओपीडी शुरू कर दी जायेगी। इसमें अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, खून की जांच आदि-आदि शुरू की जायेगी। गौरतलब है कि गत वर्ष इन्हीं गोले साहब ने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्चे बंटवा-बंटवा कर तथा सरपंचों आदि को बुला-बुला कर कहा था कि लोगों को इलाज के लिये उनके अस्पताल में भेजो। है न कमाल की बात, दुकान में सौदा नहीं खरीदारों को बुलावा भेज रहे हैं।
हरियाणा सरकार के इस संस्थान की यह दुर्दशा तो तब है जबकि यहां पहले से ही मेडिकल कॉलेज व अस्पताल एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता रहा है। तीन-चार बैच यहां दाखिल रह चुके हैं। इतना ही नहीं ओपीडी में 500 तक मरीज तथा 200 से अधिक मरीज वार्डों में दाखिल रह चुके हैं। ट्रस्ट के फेल हो जाने के बाद हरियाणा सरकार ने इसे मात्र 129 करोड़ में खरीद लिया था। इतना सब होने के बावजूद खट्टर सरकार द्वारा इस अस्पताल को न चला पाना सरकार का निकम्मापन सिद्ध करता है। एक यही संस्थान क्या राज्य सरकार के तमाम मेडिकल कॉलेजों की हालत बद से बद्तर होती जा रही है।
एनएमसी ने फटकारा डायरेक्टर गोले को तीन मई को संस्थान का निरीक्षण करने के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन की टीम जब नौ बजे पहुंची तो वहां न तो फैकल्टी थी न कोई डॉक्टर था। करीब एक घंटे बाद कुछ डॉक्टर आने लगे। ग्यारह बजे के करीब संस्थान के डायरेक्टर गौतम गोले पधारे। पैरों से नंगे यमदूत की तरह काला लिबास पहने माथे पर अजीबोगरीब तरह के लेप एवं तिलक लगाए जब गोले पहुंचे तो एनएमसी वाले भी हैरान हो गए। उन्हेें कहीं से भी नहीं लगा कि यह डायरेक्टर तो क्या सामान्य आदमी जैसा भी है। पूछने पर डॉक्टर गोले ने एनएमसी को बताया कि वह शबरीमाला का भगत है और तीस दिन इसी वेषभूषा और उपवास में रहता है, इस दौरान उसे मौन व्रत भी रखना होता है। उन्होंने बताया कि जो थोड़ा बहुत वो बोल रहे हैं वह भी एनएमसी की वजह से बोल रहे हैं। कुल मिलाकर उन्होंने अपने संस्थान के बारे में एनएमसी को कुछ भी नहीं बताया। अस्पताल में न मरीज पाए गए न डॉक्टर पाए गए और न ही कहीं से यह अस्पताल नजर आ रहा था। ऐसे में नियमानुसार एनएमसी को इसकी मान्यता तुरंत खारिज कर देनी चाहिए थी। परंतु इसके सरकारी होने के चलते एनएमसी ने ये सारी रिपोर्ट बनाकर सरकार को तथा अपने मंत्रालय को भेज दी है। अब देखना है कि सरकार इस पर क्या फैसला करती है? बीते सप्ताह गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) के एक कर्मचारी को सांप ने डंस लिया। कर्मचारी के साथी मरीज को लेकर अस्पताल पहुंचे तो वहां कोई टीका लगाने वाला भी नहीं था, मजे की बात तो यह है कि वह लोग अपने साथ एंटी स्नेक वेनम सीरम भी लेकर आए थे उसके बावजूद भी खट्टर के इस अस्पताल से उन्हें निराश लौटना पड़ा, इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है। विदित है कि इस क्षेत्र में सांप बहुत ज्यादा निकलते हैं। छात्रावास एवं अस्पताल परिसर में अक्सर सांपों को देखा गया है। उसके बावजूद सांप काटे तक का भी यहां कोई इलाज नहीं है। बेशक खट्टर सरकार की नीयत बहुत ज्यादा इस अस्पताल को चलाने की कभी रही नहीं, लेकिन उससे भी ज्यादा निकृष्ट यहां के डायरेक्टर गौतम गोले हैं जो खट्टर से भी ज्यादा निकम्मे, नालायक एवं कामचोर हैं।