फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज, छांयसा के निदेशक गौतम गोला नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) की दंडात्मक कार्रवाई से बचने और मेडिकल छात्रों से फीस लूटने के लिए झूठी खबर फैला रहे हैं कि जल्द ही यहां आईपीडी और जांच सुविधाएं शुरू होंगी। आईपीडी तो दूर अभी मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग ही अधूरी पड़ी है, जांच उपकरण का ऑर्डर तो दे दिया गया है लेकिन उनकी स्थापना के लिए कोई जगह ही तय नहीं है, न ही उनकी सुरक्षा के कोई इंतजाम हैं। आधारभूत सुविधा और संसाधनो के अभाव वाले इस कॉलेज में सौ और नए छात्रों को एडमिशन तो दे दिया गया लेकिन उनके रहने खाने तक का इंतजाम नहीं है, मेडिकल की पढ़ाई तो दूर की बात। गोला दो महीने में अस्पताल में ओपीडी, आईपीडी और जांच शुरू करवाने के दावे इसलिए कर रहे हैं कि यदि यह सुविधा शुरू नहीं की गई तो एनएमसी द्वारा जनवरी तक दी गई समय समाप्त होने के बाद मेडिकल कॉलेज पर ताला लटक सकता है।
एनएमसी ने मई में अटल बिहारी मेेडिकल कॉलेज का दौरा किया था। यहां टीम को ओपीडी मे केवल पांच मरीज मिले थे और आईपीडी खाली था, आईसीयू तो था ही नहीं। टीम को बताया गया कि 74 फैकल्टी मेंबर हैं लेकिन केवल 15 ही काम करते मिले। सीनियर रेजिडेंट, जूनियर रेजिडेंट और ट्यूटर भी एक तिहाई ही थे। एनएमसी ने मानक पूर्ण नहीं होने के कारण मेडिकल कॉलेज चलाने की स्वीकृति वापस ले ली थी। छात्रों को पढ़ाने के बजाय धार्मिक आडंबरों में डूबे रहने वाले कॉलेज निदेशक ने आका मनोहर लाल खट्टर का चरण वंदन कर कॉलेज और प्रदेश सरकार की इज्जत बचाने की अपील की थी। खट्टर ने डबल इंजन सरकार का वास्ता देकर मोदी की केंद्र सरकार के जरिए एनएमसी की कार्रवाई टलवा दी थी। तब एनएमसी ने जनवरी 2024 तक सारी सेवाएं दुुरुस्त करने का समय दिया था।
महज ढाई महीने ही बचे हैं लेकिन मेडिकल कॉलेज जस का तस है। कॉलेज की बिल्डिंग जर्जर है, मुख्य इमारत में फाल्स सीलिंग जगह जगह उखड़ी फुखड़ी टूूटी पड़ी है। संस्थान की बिल्डिंग की मरम्मत आदि का ठेका पीडब्ल्यूडी को दिया गया है लेकिन फंड की कमी के कारण बरसों से काम लटका हुआ है। बिल्डिंग पूर्ण नहीं होने के कारण फायर एनओसी नहीं मिली है, हालात को देखते हुए निकट भविष्य में फायर एनओसी मिलने की उम्मीद भी नहीं है। कॉलेज-अस्पताल में बिजली आपूर्ति भी नहीं है। डीजल कभी चार-पांच दिन में मिलता है तो चंद घंटों के लिए जेनरेटर चलाया जाता है। पर्याप्त बिजली न होने से पानी भी तीन से चार दिन में मिलता है। परिसर में प्लंबरिंग का काम भी अधूरा है, जो थोड़ा बहुत पानी आता है उसमें भी अधिकतर लीकेज में बर्बाद हो जाता है। पानी के बिना फैकल्टी और छात्र परेशान रहते हैं। परिसर की लिफ्टें अर्से से खराब पड़ी हैं और चोर एसी निकाल ले गए। वातानुकूलन नहीं से आग या केमिकल से झुलसे मरीजों को भी बिना इलाज लौटा दिया जाता है।
नए सत्र के लिए सौ छात्रों का एडमिशन तो कर लिया और उनके आठ करोड़ रुपये वसूल लिए लेकिन उनके खाने तक का इंतजाम नहीं है। हॉस्टल में मेस नहीं होने के कारण छात्र और फैकल्टी टिफिन सर्विस के भरोसे हैं। बिल्डिंग की सफाई व्यवस्था ऐसी है कि आए दिन सांप निकलते रहते हैं, जहरीले कीड़े-मकोड़ों की भी भरमार है। छात्रों के सोने केे लिए चारपाई तक नहीं खरीदी गई हैं, उन्हें मरीजों के बेड दिए गए हैं। मेडिकल कॉलेज मे फस्र्ट ईयर के छात्रों को एनॉटॉमी (शरीर रचना विज्ञान) पढ़ाई जाती है। मानक के अनुसार एनॉटॉमी पढ़ाने के लिए दस छात्रों पर एक मृत मानव शरीर होना चाहिए। मेडिकल कॉलेज को बीते साल एक मृत मानव शरीर मिला था।
समझा जा सकता है कि कॉलेज के छात्रों को एनॉटॉमी पढ़ाने के लिए शरीर नहीं है, ओपीडी में चंद मरीज ही आते हैं और आईपीडी चल नहीं रही कि छात्र पैथोलॉजी, मेडिसिन आदि विषयों को प्रायोगिक रूप से पढ़ और समझ सकें। ऐसे में छात्र मेडिकल की कैसी पढ़ाई कर रहे होंगे समझा जा सकता है।
निदेशक गौतम गोले के बेहतरीन प्रबंधन का नतीजा है कि जून में करीब 27 करोड़ कीमत की दवाएं एक्सपायर हो गई थीं। लगभग एक ट्रक दवाएं फिर एक्सपायर होने वाली हैं। सिर्फ करोड़ों रुपये की दवाएं ही उनके कुशल निर्देशन में बर्बाद नहीं हुईं कॉलेज का फंड और बजट भी खत्म हो गया। यहां तक कि आकस्मिक निधि (कंटिंजेंसी फंड) भी उन्होंने चंडीगढ़ की परक्रिमा करने और रोजाना नल्हड़ भाग जाने में खर्च कर डाली। बजट नहीं होने से जनवरी तक कॉलेज सुचारू रूप से चल पाएगा असंभव प्रतीत होता है।
गौतम गोला निदेशक होने के कारण कॉलेज के प्रबंधन और खर्च के जिम्मेदार हैं लेकिन वह हैं इतने गैर जिम्मेदार कि कर्मपूजा को छोड़ कर हाल ही में पंद्रह दिन के लिए विश्यना की गुप्त साधना करने के लिए अंतध्र्यान हो गया। उनके नहीं होने से पंद्रह दिन तक कॉलेज के लिए जरूरी खर्च नहीं हो सके क्योंकि खर्च करने का अधिकार उनके ही पास था। खैर, अब वह लौट आए हैं लेकिन बजट में धन नहीं होने के कारण वह भी कोई खर्च नहीं कर पा रहे हैं, यानी कॉलेज-अस्पताल, फैकल्टी, छात्र, स्टाफ सब जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं। निदेशक गोला ने यह भी दावा किया है कि डायग्रोस्टिक मशीनों का ऑर्डर कर दिया गया है और दो महीने में आईपीडी, ओपीडी मरीजों को जांच की सुविधा मिलने लगेगी। मशीनों का ऑर्डर तो कर दिया लेकिन वो लगाई कहां जाएंगी? लैब तो तैयार है नहीं, अधूरी बनी बिल्डिंग में इन मशीनों को रखने की जगह नहीं है, शीशों के दरवाजे खिड़कियों वाले कमरों में रखे जाने से यह मशीनें चोरी हो सकती हैं। चलो मशीनें लग भी गईं तो चलेंगी कैसे, बिजली है नहीं जेनरेटर सप्ताह में एक दो दिन कुछ घंटों के लिए चल भी जाए तो उससे कोई भला नहीं होने वाला, इसके लिए चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति की व्यवस्था होनी चाहिए, फंड की कमी के कारण यह होना भी मुश्किल लग रहा है। अस्पताल की चिकित्सा सेवाओं के हाल ये हैं कि यहां मामूली चोट लगने पर मरहम पट्टी करने और एंटी टिटनेस वैक्सीन लगाने तक की सुविधा नहीं है, घायल को बीके अस्पताल भेजा जाता है। कहने को तो यह मेडिकल कॉलेज-अस्पताल है लेकिन यहा गर्भवती की जांच और प्रसव कराने तक की सुविधा नहीं है।
फैकल्टी भले ही न हो लेकिन गोले जी ने पैरामेडिकल तथा चतुर्थ श्रेणी के 350 कर्मचारियों को तैनात कर रखा है, मरीज नहीं होनेे कारण ये सभी ड्यूटी की औपचारिकता निभाते हैं यानी दिन भर खाली बैठे रहते हैं। शबरी माला के भक्त गौतम गोला फर्जी खबरें उड़ा कर सरकार और जनता को तो सुनहरे सपने दिखा सकते हैं लेकिन एनएमसी को चकमा नहीं दे सकते। यदि जनवरी में एनएमसी टीम के सर्वेक्षण से पहले ओपीडी में 500 मरीज और आईपीडी में 360 मरीजों के भर्ती होने के साथ तीस बेड वाले आईसीयू की स्थापना नहीं कर पाए तो एनएमसी की गाज गिरने से खुद को बचा नहीं पाएंगे।