अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज : एक सरकारी ढकोसला

अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज : एक सरकारी ढकोसला
June 08 01:52 2023

खट्टर ने 100 छात्रों से 8 करोड़ ठगे, 16 करोड़ की तैयारी लानत है ऐसा मेडिकल कॉलेज बनाने और चलाने वालों पर

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) दो दिन में मेडिकल कॉलेज चालू कर देने का दावा करने वाले खट्टर भले ही तीन साल में भी कॉलेज एवं अस्पताल चालू न कर सके लेकिन 100 छात्रों से फीस के नाम पर आठ करोड़ की वसूली जरूर कर चुके हैं। गत माह संस्थान के निरीक्षण पर आये नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी)ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिख दिया है कि इस कॉलेज को नहीं चलाया जा सकता। गत वर्ष दी गई स्वीकृति को भी उन्होंने वापस ले लिया।

किसी भी मेडिकल कॉलेज को शुरू करने से पहले एनएमसी इस बात की जांच करता है कि कॉलेज मेडिकल की पढ़ाई के लिये आवश्यक शर्तें पूरी कर रहा है या नहीं। सरकारी कॉलेज होने के नाते, गत वर्ष एनएमसी ने हरियाणा सरकार द्वारा दिये गये आश्वासन पर विश्वास करते हुए अस्थायी मान्यता प्रदान कर दी थी जिसके आधार पर 100 छात्रों को एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिये दाखिला दे दिया गया था। परन्तु पूरे एक साल बाद, बीते माह निरीक्षण पर आये एनएमसी ने पाया कि खट्टर सरकार द्वारा दिया गया कोई भी आश्वासन पूरा तो क्या उस दिशा में कोई प्रयास तक नहीं किया गया।
इस पर स्पष्टीकरण देने की बजाय संस्थान के डायरेक्टर गौतम गोले एनएमसी के सामने मुंह में दही जमाकर बैठे रहे। बहाना यह था कि शबरीमाला के भक्त होने के नाते वे उपवास एवं मौन व्रत पर हैं। माथे पर चंदन लेप व काले वस्त्र धारण किये हुए जब उन्होंने नंगे पांव कॉलेज में प्रवेश किया तो एनएमसी वाले भी उन्हें देख कर चकित रह गये।

एनएमसी के नियमानुसार ओपीडी में कम से कम 500 मरीजों के स्थान पर मिले केवल पांच। वार्डों में भर्ती मरीजों की संख्या कम से 360 होनी चाहिये थी। जबकि दाखिल मरीज एक भी नहीं मिला। 30 बेड का आईसीयू होना आवश्यक शर्त होती है जबकि यहां आईसीयू नाम की कोई चीज़ नहीं है। एक्सरे तथा अल्ट्रासाउंड के लिये दो-दो मशीन होना जरूरी है जबकि यहां तो एक भी नहीं है। छात्रों को पढ़ाने व मरीजों का इलाज करने के लिये 74 सदस्यीय फैकल्टी के स्थान पर केवल 15 फैकल्टी पाई गई। फैकल्टी के अलावा 40 एसआर, जेआर तथा ट्यूटर के स्थान पर मात्र 12 ही पाये गये। इन सब खामियों का जवाब देने तथा भविष्य की योजना पर कोई प्रकाश डालने की अपेक्षा गोले महाराज मौन व्रत धारण किये रहे। जाहिर है ऐसे में एनएमसी ने जो लिखना था ठोक कर लिखा।

डबल इंजन की सरकार का लाभ
एनएमसी की ऐसी रिपोर्ट यदि किसी गैर भाजपाई मेडिकल कॉलेज के बारे में होती तो शर्तिया ही उस पर न केवल ताला लग जाता बल्कि छात्रों को होने वाले नुकसान का हर्जाना भी भरना पड़ सकता था। परन्तु यहां इस मामले में ऐसा कुछ होने की सम्भावना नहीं है। नियमानुसार एनएमसी अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपता है जिस पर कोई भी कार्रवाई के आदेश मंत्रालय द्वारा दिये जाते हैं। लिहाजा केन्द्र में भी भाजपाई सरकार होने के नाते खट्टर जी वहां से अपने इस कॉलेज को बंद होने से बचा लायेंगे। ऐसा होने पर आठ करोड़ रुपये पुराने छात्रों से तथा आठ करोड़ नये दाखिला लेने वाले छात्रों से वसूल हो जायेंगे। छात्रों की पढ़ाई हो या न हो, मरीजों का इलाज हो न हो, खट्टर को इससे क्या लेना-देना है। वे तो सब कुछ अपने भाषणों एवं घोषणाओं के द्वारा ही कर गुजरने में विश्वास करते हैं।
डायरेक्टर, गोले जैसा नालायक हो तो अस्पताल कैसे चल सकता है?

आज के जमाने में एक आरएमपी डॉक्टर के यहां भी 100-150 मरीज़ों का आ जाना एक आम बात है। सरकारी पीएचसी एवं सीएचसी में भी इतने मरीज़ तो ओपीडी में आ ही जाते हैं। फिर ऐसा क्या कारण है कि गौतम गोले के इस अस्पताल में जहां फैकल्टी व एसआर-जेआर आदि को मिलाकर 27 डॉक्टरों के होने के बावजूद ओपीडी में कोई मरीज़ नहीं आता? इन डॉक्टरों के अलावा पैरामेडिकल तथा चतुर्थ श्रेणी के 350 कर्मचारी भी यहां तैनात हैं।

इतना स्टाफ होने के बावजूद भी जब यहां आज तक न तो कोई आपातकालीन सेवा शुरू हो पाई है और न ही कोई डिलीवरी की। यह सब तो छोडिय़े कोई सांप काटे का मरीज इंजेक्शन साथ लेकर आये तो उसे यहां इंजेक्शन भी नहीं लगाया जा सके तो ये काहे का मेडिकल कॉलेज है? इतनी सब सुविधाएं तो मामूली डिलीवरी हट एवं डिस्पेंसरी आदि में भी उपलब्ध हो जाती हैं। गौरतलब है कि बीते वर्ष, इस्तेमाल न किये जाने की वजह से, यहां करीब 27 करोड़ की दवाएं एक्सपायर हो चुकी हैं।

दूसरी ओर कोई काम न होने की वजह से सारा स्टाफ दिन भर खाली बैठने से परेशान होकर शाम को घर लौट जाता है। हां, जो गोले कुछ और करने के लायक नहीं है वह दिन भर किसी न किसी बहाने स्टाफ को हडक़ाने और बेवजह परेशान करने में कोई कोताही नहीं करता। उसका सारा ध्यान यह खोजने में लगा रहता है कि स्टाफ को कैसे परेशान किया जाए? उनकी आवास, बिजली पानी आदि की समस्याओं को कैसे बढ़ाया जाए, किसी को छुट्टी जाना हो तो उसे कैसे अटकाया जाए? खुद शाम को चार बजे आकर मनमाने तरीके से उपस्थित स्टाफ की गैरहाजिरी लगाने में इन्हें कोई झिझक नहीं होती।

विदित है कि गोले करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित मेवात मेडिकल कॉलेज (नल्हड़) से प्रतिदिन आना-जाना करते हैं। जाहिर है ऐसे में वे कभी भी समय के पाबंद नहीं रह सकते। जिस डायरेक्टर अथवा डीन की इच्छा अपने मेडिकल कॉलेज को चलाने की होती है वह प्रात: सात बजे से सायं सात बजे तक, बल्कि आधी बार तो अपना बसेरा भी कॉलेज में ही रखते हैं।

लगता है कि खट्टर सरकार ने भी गोले की इन्हीं सब खूबियों, विशेषकर शबरीमाला का भक्त, होने के चलते ही उन्हें यह संस्थान सौंपा है। राज्य के चिकित्सा शिक्षा निदेशालय में बैठे उच्चाधिकारी भी शायद इसीलिये गोले को छेडऩा नहीं चाहते। विदित है कि इस विभाग के निदेशक डॉ. आदित्य दहिया खुद एक एमबीबीएस डॉक्टर हैं, कुछ दिन पूर्व तक विभाग की एसीएस (अतिरिक्त मुख्य सचिव)रही जी अनुपमा भी एमबीबीएस डॉक्टर थी। अब उनके स्थान पर एसीएस सुमिता मिश्रा सिंह को लगाया गया है।

स्थानीय नेताओं की उदासीनता
सबसे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि पृथला विधानसभा क्षेत्र में पडऩे वाले इस संस्थान की ओर यहां से निर्वाचित विधायक नयनपाल रावत का कोई ध्यान नहीं है। इसके साथ लगते बल्लबगढ़ एवं तिगांव क्षेत्र के विधायक मूलचंद शर्मा व राजेश नागर का भी कोई ध्यान नहीं है। पूरे जि़ले में विकास की डींगें हांकने वाले सांसद केन्द्रीयमंत्री कृष्णपाल गूजर का तो कहना ही क्या है। लफ्फाजी में उनका कोई मुकाबला कर नहीं सकता। मजे की बात तो यह भी है कि करीब दो वर्ष पूर्व इन सभी नेताओं ने यहां हवन यज्ञ आदि का पाखंड करके इस संस्थान को चालू करने की घोषणा कर दी थी; लेकिन आज इनमें से कोई भी इसकी दुर्दशा पर मुंह खोलने को तैयार नहीं। सभी चुपचाप सत्ता की मलाई खाने में व्यस्त हैं।

सबसे शर्मनाक मामला तो छांयसा गांव के हुक्म सिंह भाटी का है जिन्हें खट्टर सरकार से कोई सवाल न पूछने और केवल उसकी चापलूसी करने के एवज में हरको बैंक का चेयरमैन बना कर चंडीगढ़ में शानदार कोठी, दफ्तर व अन्य सुविधायें उपलब्ध करा दी हैं। खट्टर के एहसान तले दबे हुक्म सिंह भाटी को इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल की दुर्दशा बिल्कुल नज़र नहीं आती। उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि अस्पताल के चालू न होने से पूरे क्षेत्रवासियों को चिकित्सा सेवायें प्राप्त करने के लिये कितना भटकना व खर्च करना पड़ता है।

387 से बढ़ा कर 654 मेडिकल कॉलेज बनाने का झूठा दावा
‘झूठ बोलो, जब बोलो झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो’ का मंत्र देने वाले देश के प्रधानमंत्री मोदी बार-बार कहते नहीं थकते कि उन्होंने अपने 9 वर्षीय कार्यकाल में मेडिकल कॉलेजों की संख्या, जो पहले 387 थी बढ़ाकर 654 कर दी है। इसी तर्ज पर हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर महाशय भी बीते आठ साल में हर जि़ला मुख्यालय पर मेडिकल कॉलेज खोलने का सपना दिखाते आ रहे हैं।
राज्य के करीब आठ स्थानों पर, मेडिकल कॉलेज बनाने के नाम पर पंचायती जमीनें कब्जा ली हैं। कुछ पर मात्र चारदीवारी तथा एक-दो पर आधी-अधूरी बिल्डिंग बनाकर जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है। थोड़ी भी समझ रखने वाले जागरूक लोग आसानी से समझ सकते हैं कि जो सरकार बने बनाये एवं चालू मेडिकल कॉलेजों को चलाने में हांफ रही हो, वह भला नये मेडिकल कॉलेज क्या खाक चलायेगी? उपलब्ध ताजा जानकारी के अनुसार, मोदी द्वारा घोषित 654 मेडिकल कॉलेजों में से 150 का हश्र छांयसा वाले अटल बिहार मेडिकल कॉलेज जैसा हो चुका है। यानी कि एनएमसी ने उन कॉलेजों को चलने लायक न समझ कर, उनकी मान्यता रद्द कर दी है। हो सकता है, जनता को बेवकूफ बना कर ठगने के लिये मान्यता रद्द होने के बावजूद भी इन कॉलेजों को चालू रखा जाए। यदि ऐसा होता है तो यह न केवल मेडिकल छात्रों बल्कि पूरे देश के साथ एक बडी़ धोखा-धड़ी का मामला बनता है।

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Mazdoor Morcha
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