छांयसा के गांव मोठूका में गोल्ड फील्ड नामक मेडिकल कॉलेज अस्पताल बीते करीब चार साल से हरियाणा सरकार के कब्जे में है। ये पूर्णतया बना-बनाया व चालू प्राइवेट कॉलेज व अस्पताल था। इसके फेल हो जाने पर सरकार ने बैंकों का करीब 129 करोड़ अदा करके इसे अपने कब्जे में ले लिया था लेकिन इसे चलाने की जरूरत कभी नहीं समझी।
बीती कोरोना लहरों के दौरान जब ‘मज़दूर मोर्चा’ ने ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल की बजाय उक्त अटल बिहारी अस्पताल न चलाने को लेकर मुख्यमंत्री खट्टर पर सवाल किया तो उन्होंने तुरन्त (25 अप्रैल 2021को) जवाब दिया था कि वे इसे दो दिन में चालू कर देंगे। उन बातों को अब दो साल होने को हैं। इसके बावजूद आज भी वहां का हाल निल बटा सन्नाटा ही है। आज भी वहां न तो कोई ओपीडी है और न ही कोई वार्ड में भर्ती है। ऑक्सीजन नाम की कोई वस्तु वहां नहीं है। और तो और साधारण डिलिवरी तथा आपातकालीन चिकित्सा तक की कोई व्यवस्था है।
हां, जनता को बहकाने में माहिर खट्टर सरकार ने वहां तरह-तरह के पाखंड जरूर किये थे। इसे फौज द्वारा चलाने का नाटक भी खेला गया था। तमाम स्थानीय भाजपा विधायकों, सांसद एवं मंत्रियों आदि ने वहां हवन-यज्ञ आदि भी किये थे। कुछ दिन के लिये वहां फौजी अ$फसरों को भी घूमते देखा गया था। लेकिन आज वहां बेशक 100 छात्रों को एमबीबीएस की पढ़ाई कराने के नाम पर भर्ती तो कर लिया गया है, लेकिन वहां है कुछ भी नहीं। डीसी साहब वहां का निरीक्षण करके खट्टर को क्यों नहीं बताते कि यहां पर सही इंतजाम किया जाय तो पांच-सात सौ कोरोना मरीजों का इलाज किया जा सकता है। लेकिन खट्टर अफसरों की सलाह मानने की अपेक्षा उल्टे-सीधे आदेश देना ही अपना कत्र्तव्य समझते हैं।
गौरतलब है कि एनएच तीन स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल तथा बीके अस्पताल में एक भी बेड खाली नहीं है। ईएसआई मेडिकल कॉलेज में तो 140 प्रतिशत की ऑक्यूपेंसी चल रही है यानी कि 100 बेड पर 140 मरीज भर्ती हैं। इनके लिये जरूरत से आधा भी स्टाफ उपलब्ध नहीं है। जाहिर है कि कोरोना अथवा अन्य कोई महामारी की स्थिति में अतिरिक्त बेड की आवश्यकता होती है। ऐसे में पहले से ही भर्ती मरीज़ कहां जायेंगे? यदि सरकार की नीयत सही है तो वह इस तरह के मॉक ड्रिल के नाटक करने के बजाय, समय रहते अपने ही अस्पतालों में अतिरिक्त बेड व स्टाफ का इंतजाम करे।