असहाय सिद्ध हो रहा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

असहाय सिद्ध हो रहा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
December 12 04:38 2021

फरीदाबाद (म.मो.) पर्यावरण को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाये रखने के लिये सभी राज्यों की तरह हरियाणा में भी करीब 40 वर्ष पूर्व इसका गठन किया गया था। प्रत्येक जि़ले में इसके कार्यालय खोले गये थे। लेकिन कहीं से भी लगता नहीं कि इस बोर्ड ने जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण पर कभी कोई नियंत्रण कर पाने में कोई सफलता पाई हो। हां, भ्रष्टाचार एवं लूट कमाई के अनेकों आरोप बोर्ड के चेयरमैन व अधिकारियों पर लगते रहें हैं; कुछ अधिकारी तो रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े भी गये।

बोर्ड के अपने दायित्व को निभाने में असफल होने का ही परिणाम आज भयंकर प्रदूषण के रूप में देखा जा रहा है। सांस लेने लायक शुद्ध हवा भी एक दुर्लभ वस्तु बन गई है। यह वायु प्रदूषण आज या कल में यकायक नहीं बढ गया है। बीते 50 सालों से यह प्रदूषण लगातार बढता जा रहा है। प्रदूषण की इस बढोत्तरी को रोक पाने में बोर्ड की विफलता स्वत: सिद्ध नज़र आ रही है। हां, इस बढ़ते प्रदूषण ने कहीं एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) जैसी ‘दुकानें’ खोल कर कुछ लोगों को कमाई का धंधा दे दिया तो कहीं प्रदूषण के नाम पर तरह-तरह की सरकारों ने टैक्स वसूली का नया धंधा पकड़ लिया।

बिल्डर को 50 लाख तो नगर निगमको 10 लाख जुर्माने का नोटिस
शहरवासियों की, दिन ब दिन घुटती सांसों के लिये प्रदूषण बोर्ड ने बीते सप्ताह हीवो अर्पाटमेंट्स के बिल्डर को, निर्माण कार्य बंद न करने के एवज में, 50 लाख रुपये जुर्माने का नोटिस दिया है। दूसरी ओर पूरे शहर को धूल-धुसरित करने वाले नगर निगम को मात्र 10 लाख रुपये जुर्माने का नोटिस दिया है। यह नोटिस भी बोर्ड की ओर से तब जारी किया गया जब पानी सिर से ऊपर निकल गया। विदित है कि नगर निगम क्षेत्र में एक भी सडक़ कभी भी ऐसी नहीं देखी गई कि जिस पर धूल न उड़ती हो। प्रत्येक सडक़ के किनारों पर पड़ी धूल-मिट्टी वाहनों के गुजरने से उड़ कर हवा में घुलती रहती है। यह धूल इतनी महीन होती है कि साधारण नज़र से दिखाई तक नहीं देती।

प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों दिनेश व सचिन ने ‘मज़दूर मोर्चा’ को बताया कि उन्होंने कई बार निगमायुक्त यशपाल यादव को कहा था कि वे धूल नियंत्रण हेतु सडक़ों पर निरंतर पानी का छिडक़ाव करायें। जवाब में व हमेशा कहते रहे कि अनेकों ट्रैक्टर-टेेंकर उन्होंने इस काम पर लगा दिये हैं। लेकिन कोई परिणाम नज़र न आने पर उन्हें जुर्माने का नोटिस देना पड़ा। इसी तरह के नोटिस उन्होंने एनएचएआई व कई अन्य लोगों को भी दिये हैं। एनएचएआई द्वारा बाईपास पर चल रहे काम के बारे में उन्होंने स्वत: कहा कि उनके ऊपर नोटिस का कोई विशेष असर होने वाला नहीं है क्योंकि इसे प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा विशेष छूट प्राप्त है। हां इतना जरूर है कि नोटिस के बाद उन्होंने पानी का छिडक़ाव जरूर शुरू करा दिया है। अपने अधिकार क्षेत्र के बारे में इन अधिकारियों ने कहा कि उन्हें केवल नोटिस देने का अधिकार है, वसूली करने का नहीं, वसूली का निर्णय तो पंचकूला स्थित उनके मुख्यालय में बैठी एक पांच सदस्यीय कमेटी को है। उनके द्वारा दिये गये नोटिसों के विरुद्ध लोग उस कमेटी के सामने अपनी बात रखते हैं, उसके बाद ही कोई निर्णय होता है।

नगर निगम जैसे सरकारी प्रतिष्ठानों पर जुर्माना करने से किसी अफसर की सेहत पर क्या फर्क पड़ता है? जनता से वसूले गये टैक्स को जुर्माने के रूप में सरकार को दे देंगे और फिर  ग्रांटों के रूप में सरकार से वापस भी ले लेंगे। हां, यदि किन्हीं अधिकारियों को दोषी ठहरा कर उनसे व्यक्तिगत वसूली की जाय तो कोई बात बनती है।

विदित है कि इस औद्योगिक नगरी में आज औद्योगिक प्रदूषण न के बराबर है, सारा प्रदूषण सडक़ों से उठने वाली धूल, उन पर चलने वाले वाहनों, खास कर जगह-जगह लगने वाले जाम से जो पेट्रोलियम धुएं से होता है। इसका समाधान करने के अपेक्षा शहर भर में जगह-जगह हवा में प्रदूषण का स्तर बताने वाले यंत्र लगा दिये गये हैं। इन्हें देख कर नागरिक केवल चिन्ता तो कर सकते हैं लेकिन कोई समाधान करने की स्थिति में नहीं हैं। हां, यदि नागरिक इस चिन्ता को गंभीरता से लेते हुए अपने उन नेताओं को पकड़ें जो इस प्रदूषण के लिये उत्तरदायी हैं यानी जिन्होंने प्रदूषण को थामने के लिये अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं किया। उनसे पूछा जा सकता है कि सडक़ों में गड्ढे क्यों हैं? वाहनों के जाम की स्थिति क्यों बनने दी गई जबकि सडक़ों की चौड़ाई 100-100 फीट तक की हैं?

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Mazdoor Morcha
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