अवैध कटान, निर्माण पर कार्रवाई नहीं करते जिला वन अधिकारी, सेव अरावली पर लगाया वानिकी गतिविधि करने पर प्रतिबंध फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) जिला वन अधिकारी सुनील ढाका को अरावली में पौधरोपण, तालाब-जोहड़ों का संरक्षण पसंद नहीं आया, उन्हें तो अरावली में अवैध रूप से पेड़ों की कटाई और निर्माण सही लगते हैं। शायद इसी वजह से उन्होंने अरावली पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में जी जान से जुटे पर्यावरण प्रेमियों की संस्था सेव अरावली को रोक दिया है जबकि अवैध निर्माण बदस्तूर जारी हैं। कारण बड़ा स्पष्ट है कि सेव अरावली वाले तो ढाका जी को चवन्नी देंगे नहीं जबकि अवैध निर्माण और पेड़ काटने वाले उनकी जेबें भरते रहेंगे। वन संरक्षण एवं संवर्धन एक्ट 1980 का हवाला देते हुए तर्क है कि जिला वन अधिकारी (डीएफओ) जंगल के अंदर किसी भी प्रकार की गतिविधि की इजाजत नहीं दे सकता है। इसके लिए किसी भी संस्था या व्यक्ति को हरियाणा सरकार से इजाजत लेनी होगी।
अजीब बात है, डीएफओ को वह संस्था अरावली में काम करती नजऱ आ गई जो बीते दसियों साल से वन संरक्षण और वन्य जीवों के हित में पौधरोपण, जलस्रोतों का संरक्षण व विकास करने के साथ ही लोगों के बीच पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता फैला रही है। इन संरक्षित जंगलों में पेड़ों की अवैध कटान रोजाना हो रही है, भू माफिया जंगल काट कर जमीन पर अवैध कब्जे कर रहे हैं, जल माफिया भी अवैध बोरिंग का धंधा जोरों पर चला रहा है लेकिन जिला वन अधिकारी को ये सब नहीं दिखाई देता। दिखाई तो देता है लेकिन डीएफओ साहब इन पर प्रतिबंध लगाना तो दूर, नोटिस भेजने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि उन्हें पता है कि अरावली में जितने भी अवैध गतिविधियां चला रहे हैं उन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे में केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गूजर या खट्टर-सैनी के चहेते भूमाफिया, जल माफिया, लकड़ी माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार होने के बावजूद उन्होंने कुछ नहीं किया। दूसरा कारण ये भी है कि जंगल को बर्बाद कर अवैध रूप से मोटी कमाई करने वाला माफिया वन विभाग को भी उसकी हिस्सा पत्ती पहुंचा देता है, इसके उलट वन संरक्षण में लगे सेव अरावली वाले कुछ देते नहीं उल्टे माफिया पर कार्रवाई करने का दबाव बनाते तो डीएफओ ने उन्हें ही अरावली से बाहर करने का गंदा खेल शुरू कर दिया, हालांकि पर्यावरण प्रेमी उन्हें कामयाब नहीं होने देंगे।
सेव अरावली के कैलाश विधूड़ी के अनुसार संस्था ने अरावली में असोला से सूरजकुंड, मांगर वणी, पाली वणी, वडख़ल और दमदमा तक दस साल में करीब 25 एकड़ बंजर जमीन को हरा भरा किया है, हजारों पौधे आज वृक्ष बन चुके हैं। लगभग सूख चुके 21 छोटे तालाब- जोहड़ को दोबारा पानी से लबालब रखने की व्यवस्था की, यहां तक कि पांच जगहों पर वर्षा जल संरक्षण सिस्टम बनाया ताकि गर्मी के मौसम में भी जंगल में रहने वाले पशुओं को पीने का पानी मुहैया होता रहे। यानी जो काम इन भ्रष्ट अधिकारियों को करना चाहिए था जिसके नाम पर ये मोटे मोटे फर्जी बिल बना कर मोटी रकमें डकार रहे हैं वो काम सेव अरावली संस्था कर रही है। अब मौजूदा डीएफओ ये काम करने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। जबकि पिछले वन अधिकारियों ने कभी इस काम के लिए नहीं रोका। सेव अरावली ने प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को पत्र लिख कर इसकी शिकायत की है।
मज़दूर मोर्चा ने फरवरी 2024 में ‘किशन का सिर पर है हाथ तो कैसे टूटे कैलाश का फार्म हाउस’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। यह फार्म हाउस उस समय केंद्रीय मंत्री के खास और सूरजकुंड थाने में दुष्चरित्र व्यक्तियों में दर्ज कैलाश बैंसला बनवा रहा था, बावजूद इसके वन विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की थी और यह फार्म हाउस बन कर तैयार भी हो गया है। पीएलपीए संरक्षित क्षेत्र में बनी मानव रचना यूनिवर्सिटी ने जब 0.19 एकड़ में अवैध कब्जा कर वहां की हरियाली उजाड़ी थी तब वन विभाग कहां था। सत्ता समर्थित गुंडे जब खोरी में जंगल की जमीन बेच रहे थे तब वन विभाग को न तो अपनी जमीन नजर आई थी और न ही जंगल काट कर जमीन समतल करने की कार्रवाई गैर वानिकी गतिविधि लग रही थी। अरावली संरक्षित क्षेत्र में वर्तमान में भी खनन, पेड़ कटान और अवैध निर्माण धड़ल्ले से चल रहा है लेकिन वन विभाग को ये सब नजर नहीं आएगा रोकने की तो बात ही छोड़ दीजिए। जो काम वन विभाग को करना चाहिए वो सेव अरावली के सदस्य कर रहे हैं, इसका आभार प्रकट करने के बजाय डीएफओ ने उन पर ही पाबंदियां लगा दीं। सेव अरावली वाले उनसे डरने की जरूरत नहीं समझते, जो होगा उससे निपटने के लिए वे सक्षम हैं।