अन्धविश्वास बढ़ाने को कांवडिय़ों की सेवा के लिये तत्पर सरकार

अन्धविश्वास बढ़ाने को कांवडिय़ों की सेवा के लिये तत्पर सरकार
July 20 11:48 2024

रीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) 22 जुलाई से दो अगस्त तक कांवडिय़ों द्वारा सडक़ों पर मचाए जाने वाले हुड़दंग में उनका पूरा सहयोग देने के लिये जिला उपायुक्त विक्रम सिंह ने अधिकारियों को सचेत किया। उनके लिये बढिय़ा खान-पान सहित आरामदेह शिविरों की व्यवस्था, उनमें बिजली-पानी व कूलर आदि की व्यवस्था करना। इस बार उनकी सेहत की ओर विशेष ध्यान देते हुए एम्बुलेंस गाडिय़ों की व्यवस्था भी खास तौर पर की गई है। पुलिस तो हमेशा की तरह ही उनके लिये सडक़ों को पूरी तरह से वाहन मुक्त कराएगी।

शुक्र यह है कि यूपी सरकार की तरह यहां पर हेलिकॉप्टरों द्वारा कांवडिय़ों पर फूल बरसाने की व्यवस्था नहीं की गई है। इसके अलावा पुलिस वालों को कांवडिय़ों के पैर धोने व दबाने के आदेश नहीं दिये गये हैं। जैसे कि यूपी में दिये जाते हैं। विदित है कि जब से घोर साम्प्रदायिक योगी सरकार वहां आई है तभी से कांवडिय़ों को प्रोत्साहित करने के लिये उक्त सभी नाटकबाजियां की जा रही हैं। तमाम राजमार्गों की एक साइड पूरी तरह से कांवडिय़ों के लिये वाहन रहित करा दी जाती है। जाहिर है ऐसे में दोनों साइड का यातायात एक ही साइड पर रेंगने को मजबूर हो जाता है। उससे न केवल समय व तेल बर्बाद होता है, प्रदूषण भी बेतहाशा बढ़ता है।

कांवड़ लाने की प्रथा कोई नई नहीं है। किसी जमाने में कोई इक्का-दुक्का अंध-भक्त पंडे पुजारियों के बहकावे में आकर, अपनी समस्याओं के समाधान के लिये कांवड़ लाया करता था। परन्तु ज्यों-ज्यों जनता की समस्याएं बढ़ती चली गईं अन्धविश्वास फैलाने वालों का धंधा भी फलता-फूलता गया। जनता का इस तरह बहकाया जाना, जन विरोधी पूंजीवादी सरकारों को भी रास आने लगा। वास्तव में समस्याएं तो सारी सरकारी नीतियों के कारण ही पैदा होती हैं और उनका समाधान भी सरकारी नीतियों के द्वारा हो सकता है। परन्तु सरकार जनहितैषी नीतियां बनाने की अपेक्षा लोगों को धर्म की अफीम खिलाकर अन्धविश्वास के कुएं में धकेलना ज्यादा पसंद करती है। इसी नीति के तहत पाखंडी बाबों व कांवड़ यात्रा को बढ़ावा देना आता है।

जो कांवड़ यात्रा पहले पैदल ही की जाया करती थी, उस के लिये न कोई शिविर लगते थे, न ही सडक़ें खाली कराई जाती थीं और न ही भारी-भरकम पुलिस एवं प्रशासनिक व्यवस्था करनी पड़ती थी। वही यात्रा अब मोटरसाइकिलों व ट्रकों आदि पर भी की जाने लगी है। सडक़ पर चलने के तमाम ट्रैफिक नियमों को धता बताते हुए इन वाहनों से कांवड़ लाई जाने लगी है। ट्रकों पर भारी भरकम डीजे लगा कर कान फोड़ू शोर मचाया जाता है। इन पर तरह-तरह की रंग-बिरंगी लाइटें लगाई जाती है। कानून के विरुद्ध दुर्घटनाओं को आमंत्रित करते इन पर बीसियों लुंगारे धर्म के नाम पर तरह-तरह के भोंडे नाच व उछल-कूद करते हुए चलते हैं। पावर के लिये इनके साथ एक जनरेटर वाहन भी चलता है। शहरी सडक़ों पर अपनी उपस्थिति प्रदर्शित करने के लिये ट्रक के साथ-साथ पैदल भी चलते हैं। इन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं रहता कि उनकी वजह से आवागमन इतना बुरी तरह से प्रभावित होता है।
यदि सरकार की नीयत सा$फ हो तो कांवड़ यात्रा की ठेकेदारी छोडक़र इसे खुद कांवडिय़ों के भरोसे पर छोड़ दे तो जनता को काफी राहत मिल सकती है। पूरे के पूरे राष्ट्रीय राजमार्ग इनके लिये खाली कराने की बजाय इन्हें सडक़ों के किनारे पंक्तिबद्ध करके भी चलाया जा सकता है। ट्रकों पर डीजे द्वारा शोर मचाते हुए चलने वाले हुड़दंगियों को भी कानून का पाठ पढ़ाया जा सकता है, उन्हें भी ट्रैफिक नियमों का पालन करना सिखाया जा सकता है। इसका एक उदाहरण करीब 20 वर्ष पूर्व बदरपुर बॉर्डर पर देखने को मिला था। दिल्ली की ओर से करीब 30-40 कांवडिय़े फरीदाबाद में घुसे तो उन्होंने वहां तैनात पुलिसकर्मियों से कहा कि उनके चलने के लिये सडक़ खाली कराई जाए। पुलिसकर्मियों ने उन्हें बहुत समझाते हुए कहा कि पंक्तिबद्ध होकर सडक़ किनारे चलते चले जाओ। लेकिन जब वे धींगा मुश्ती पर उतर आये तो पुलिसकर्मियों ने अपने एसएचओ प्रीतपाल सिंह को सूचित किया। वे तुरंत मौके पर पहुंचे। उन्होंने भी बहुत प्यार से समझाया, जब वे प्यार की भाषा नहीं समझे तो उन्होंने सिपाही के हाथ से लाठी लेकर घुमाई तो एक-दो को तो लगी और बाकी तुरंत पंंक्तिबद्ध होकर सडक़ के किनारे-किनारे चल दिये।

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Mazdoor Morcha
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