‘अम्मा’ की गिद्धदृष्टि टीबी मरीजों पर

‘अम्मा’ की गिद्धदृष्टि टीबी मरीजों पर
March 31 07:10 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) हरियाणा सरकार द्वारा हाथ खड़े कर लिए जाने के बाद अम्मा की गिद्ध दृष्टि टीबी मरीजों पर गड़ गई है। शायद सरकार ने अम्मा को खुला मैदान सौंपने के लिए ही हाथ खड़े किए हों।

आठ घंटे में 18 लाख रुपये का बिल बनाने वाले सेक्टर 86 स्थित पंचतारा मां अमृतानंदमयी हास्पिटल द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के सहयोग में एंड टीबी अलायंस नाम का कार्यक्रम शुरू किया गया है। नाम तो टीबी इलाज का लिया गया है लेकिन इसकी आड़ में पल्मोनरी मेडिसिन, संक्रामक रोग, माइक्रोबायोलॉजी, सामुदायिक चिकित्सा के नाम पर मरीजों को लूटने की तैयारी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का ढिंढोरा पीटते रहते हैं। टीबी की दवाएं काफी महंगी होती हैं, कहीं टीबी मरीज धन के अभाव में इलाज कराना न छोड़ दे और अन्य लोगों को संक्रमित करे, इसके मद्देनजर सरकार ही मुफ्त इलाज उपलब्ध कराती आ रही है। मोदी ढिंढोरा तो पीटते हैं लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं का बजट घटा दिया, इसका असर टीबी की दवाओं की उपलब्धता और मरीजों पर पड़ा। इसका नतीता यह हुआ कि हरियाणा ही नहीं अन्य प्रदेशों में लंबे अर्से से टीबी मरीजों को सरकारें समय पर और पूर्ण दवाएं उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं।

ऐसे में धर्म का चोला पहन कर कॉरपोरेट हॉस्पिटल चेन चलाने वाली अम्मा ने भी टीबी मरीजों को इलाज के नाम पर लूटने की तैयारी कर ली है। मरीजों को फांसने के लिए अस्पताल प्रबंधन की ओर से दावा किया जा रहा है कि क्षय रोग को रोकने के लिए एंटी टीबी स्टीवर्डशिप शुरू की जा रही है इसके साथ ही निजी क्षेत्र में टीबी उन्मूलन प्रणाली का पालन किया जाएगा।

इसके तहत अमृतानंदमयी मठ ने देश भर में गोद लिए 100 गांवों को टीबी मुक्त करने का अभियान शुरू किया है। अस्पताल के दावों से तो लग रहा है कि वह 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने को प्रतिबद्ध है लेकिन हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और कहावत की तरह उसका लक्ष्य भी टीबी मरीजों की स्क्रीनिंग की आड़ में अन्य बीमारियों के मरीजों को ढूंढ कर इलाज के नाम पर उन्हें लूटना ही है।

अस्पताल प्रबंधन ने ये तो बताया कि देश भर में सौ गांव गोद लिए हैं। ये गांव सिर्फ कागजों में ही गोद लिए गए हैं या सच में इनमें काम हो रहा है, यदि काम हो रहा है तो इन गांवों के नाम भी अस्पताल प्रबंधन को उजागर करने चाहिए। सब जानते हैं कि ढाई हज़ार बेड वाले अस्पताल को चलाने का रोजाना का लाखों रुपये का खर्च है। हालांकि बहुत महंगा होने के कारण यहां कम ही मरीज पहुंचते हैं, दो हजार से अधिक बेड तो खाली रहते हैं।

बाकी पर जो मरीज आते हैं, अस्पताल का खर्च पूरा करने के लिए जांच, दवा और इलाज के नाम पर उन्हें जम कर लूटा जाता है। यहां तक कि मरीज के मरने के बाद भी तीमारदारों से लाखों रुपये ऐंठ लिए जाते हैं। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार टीबी मरीजों के इलाज के साथ ही पल्मोनरी मेडिसिन, संक्रामक रोग, माइक्रो बायोलॉजी, सामुदायिक चिकित्सा के रोगियों की भी स्क्रीनिंग कर पहचान की जाएगी, यानी टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की आड़ में लूट कमाई ही करना है।

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Mazdoor Morcha
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