अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत को लाल सलाम

अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत को लाल सलाम
March 08 07:47 2023

सत्यवीर सिंह
‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ के कमांडर-इन-चीफ़, अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत की पूर्व संध्या पर, उन्हें क्रांतिकारी सलाम और उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए, एक मज़दूर सभा, रविवार, 26 फऱवरी को पब्लिक पार्क, सेक्टर 21 डी में सम्पन्न हुई. ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फऱीदाबाद’ ने, शहीद-ए-आज़म भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के शहादत दिवस, 23 मार्च तक एक कार्यक्रम लिया हुआ है, जिसमें उनके कार्यकर्ता, पर्चा लेकर, फऱीदाबाद की हर मज़दूर बस्ती और हर कारखाने में जा रहे हैं, जिससे अमर क्रांतिकारियों के विचारों को, आम लोगों तक पहुँचाया जा सके, और शहीदों के अधूरे ख़्वाब को पूरा करने के अभियान से समूचे समाज को जोड़ा जा सके. ‘शहीद माह’ का समापन 23 मार्च को, सामुदायिक केंद्र, आज़ाद नगर, सेक्टर 24 औद्योगिक क्षेत्र से मोर्चा निकालते हुए, वीनस पार्क में आम सभा के साथ होगा. सभा का संचालन क्रा म मो के अध्यक्ष कॉमरेड नरेश ने किया. ऐसी तेज़ धूप में, खुले में बैठकर सभा में भाग लेने आए साथियों का स्वागत करते हुए, उन्होंने अमर शहीदों के विचारों को, जन-जन तक ले जाने के लिए ज़ारी अभियान के महत्त्व पर प्रकाश डाला. आज दूसरे और सच्चे आज़ादी आन्दोलन को शुरू करने की दरकार है. देश की परिस्थितियां दिनोंदिन गंभीर होती जा रही हैं. लगभग तीस साल पहले की बात को याद करते हुए उन्होंने बताया, कि एक वक़्त वो भी था, जब किसी मग़रूर कारखानेदार द्वारा मज़दूर को थप्पड़ मारने पर, कैसे पूरा शहर ऐसे बंद हो जाया करता था जैसे कर्फ्यू लग गया हो. क़सूरवार मालिक पर कठोर कार्यवाही होने पर ही चक्का घूमता था. आज मज़दूरों के अपमानित होने की खबरें आम हो गई हैं.
क्रा म मो के महासचिव कॉमरेड सत्यवीर सिंह ने, अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद के जीवन और उनकी सीखों पर चर्चा का आगाज़ किया. कैसे एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में जन्मे, चंद्रशेखर तिवारी, बनारस में संस्कृत में पारंगत आचार्य बनने की बजाए, ‘क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद’ बन गए, जिनके लिए देश की आज़ादी के सामने उनके जीवन का कोई मूल्य नहीं था. मात्र 15 साल की उम्र के इस बालक ने, गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया. ‘चौरी-चौरा’ कांड के बाद, गांधीजी द्वारा आन्दोलन वापस लेने के निर्णय से झल्लाए चंद्रशेखर आज़ाद, आज़ादी आन्दोलन की क्रांतिकारी धारा की ओर मुड़ गए और फिर पीछे मुडक़र नहीं देखा. ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ में ‘सोशलिस्ट’ शब्द जुड़ा और उन्हें उसका कमांडर-इन-चीफ चुना गया. जो लोग कहते हैं कि मज़दूर तो बहुत कम पढ़े-लिखे हैं, धर्म मानते हैं, वे कैसे इक_े होकर लड़ सकते हैं? वे, दरअसल, देश के इस अमर सपूत को नहीं पढ़े हैं. आज़ाद, बिस्मिल और अशफाक, आजीवन आस्तिक रहे, लेकिन उनके बलिदान और कार्यकर्ताओं से प्रेम सबके लिए मिसाल हैं. आज, मज़दूरों के शोषण-उत्पीडन की इन्तहा हो चुकी है. हमें अपने अमर शहीदों के पैगाम को हर तरफ ले जाने की ज़रूरत है. ‘हरियाणा रेहड़ी-पटरी संघ’ के प्रांतीय अध्यक्ष कॉमरेड जगराम सिंह, सभा में पहुँचने वाले, पहले व्यक्ति थे, लेकिन अचानक किसी ज़रूरी काम से उन्हें सभा छोडक़र जाना पड़ा.

प्रख्यात जर्मन भाषाविद, साप्ताहिक ‘तरंग’ के संपादक और प्रतिष्ठित संस्कृतिकर्मी, ज्योति संग ने याद किया, कि कैसे पिछली सदी के सत्तर के दशक में बल्लभगढ़ से आगे, झाड़ सेंतली गाँव से बदरपुर तक लाल झंडे ही नजऱ आते थे. ऐसा आभास होता था, मानो फरीदाबाद इण्डिया में ना होकर सोवियत संघ या चीन का हिस्सा है. आज क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत को याद करने के अहम मुद्दे पर भी मात्र 60-70 लोग मौजूद हैं. उन्होंने, लेकिन आशा व्यक्त की कि नगर के मज़दूर दूध से जले हुए हैं, इसलिए भरोसा नहीं कर रहे. अगर क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा हिम्मत से अपने रास्ते पर डटा रहा, तो फिर से वही आलम नजऱ आएगा. कॉमरेड रिम्पी ने अपने वक्तव्य में लोकप्रिय भोजपुरी गायिका नेहा राठौर को मिले पुलिस नोटिस का मुद्दा ज़ोरदार ढंग से उठाया. उन्होंने कहा कि ये सरकार इस क़दर डरी हुई है कि गीत की चार लाइन भी बरदाश्त नहीं कर सकती. किस बात का डर सताता है इन्हें? इनके कारनामे ही ऐसे हैं जो इन्हें डराते रहते हैं. क्या लोग इनके डर से लिखना, पढऩा, गाना छोड़ देंगे? सवाल ही पैदा नहीं होता. ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’, नेहा राठौर के साथ खड़ा है, उन्होंने आश्वस्त किया. क्रा म मो के कोषाध्यक्ष कॉमरेड छोटेलाल ने भी अपने विचार रखे.

‘समाजवादी लोक मंच’ की ओर से दो वरिष्ठ साथी इन्दिरापुरम से इस सभा में भाग लेने पहुंचे थे. कॉमरेड धर्मेन्द्र आज़ाद ने अपनी बात रखते हुए प्रश्न किया, क्या मज़दूर के आलावा, कोई व्यक्ति आज 10,000 रु प्रति माह में अपने पूरे परिवार का महीनेभर खर्च चलाने का बजट बनाकर दिखा सकता है? मज़दूरों पर आज जो गुजर रही है, बस वे ही जानते हैं. हर रोज़ मज़दूरों के संघर्ष ज़ारी हैं, और ये ज़ारी ही रहने वाले हैं, जब तक मौजूदा अन्यायपूर्ण व्यवस्था का खात्मा नहीं हो जाता.

बृज विहार, ग़ाजिय़ाबाद से सभा में अपनी उपस्थिति दजऱ् कराने पहुंचे, वरिष्ठ साथी समरपाल सिंह ने एक निश्चित ढर्रे में चल रही बुर्जुआ राजनीति पर चुटकी लेते हुए कहा, कि कभी-कभी तो शासक पार्टी के ‘अर्थशास्त्री’ बजट प्रस्तुत होने से पहले ही, टी वी बाईट देनी शुरू कर देते हैं कि बजट गऱीबों का उद्धार करने वाला है!! विपक्षी भी, अपनी सरकार वाले राज्य में बिलकुल ऐसा ही व्यवहार करते हैं. बजट को ‘महान’ और ‘कूड़े का ढेर’ बताने वाली ज़मातें, अपना-अपना काम यंत्रवत करती जाती हैं. हमें इस ‘राजनीति’ से क्या लेना? मज़दूरों को तो अपनी राजनीति करनी होगी, अपना मीडिया खड़ा करना होगा. समरपाल जी ने, दिल्ली से प्रकाशित वैकल्पिक मीडिया के अख़बार ‘आईना इन्डिया’ की प्रतियाँ भी मज़दूरों को पढऩे के लिए दीं.

उनके द्वारा पढ़ी गई, अदम गोंडवी की ये नज़्म कितनी मौजूं है:
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकडे झूठे, ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर पर्दे के पीछे बर्बरियत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी ओ गऱीबी में
ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी खऱाबी है
तुम्हारी मेज चांदी की, तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ ज़ुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

लखानी फुटवेयर, कंपनी से ‘स्वेच्छा से स्तीफा’ दे चुके, और पूरी हिम्मत से अपने बक़ाया वसूलने के लिए लड़ रहे, जुझारू कॉमरेड रजनीश ने बताया, कि देश में मज़दूर जिस चक्की में पिस रहे हैं, वे इसके भुगतभोगी हैं. दिन-रात मेहनत कर इन लखानियों के लिए, 7 साल तक जूते-चप्पल के अम्बार और इनके मुनाफ़े के पहाड़ खड़े करने वाले मज़दूर, आज अपने बक़ाया वेतन, ओवरटाइम, बोनस के भुगतान को ही नहीं, बल्कि उनके वेतन से जो पीएफ का पैसा काटा गया है, उसकी वसूली के लिए भी दर-दर भटक रहे हैं. ‘क़ानून अपना काम कर रहा है’, पीएफ विभाग के अधिकारीयों को ये बोलने में भी शर्म नहीं आती. जन साहित्यकार, कॉमरेड गजेन्द्र रावत ने अपनी तीन कविताएँ सुनाईं . सबसे ज्यादा दाद, उन्हें ‘भूख’ कविता पर मिली:
इस धरती पर एक देश ऐसा भी है
जहां मानते हैं लोग स्त्री के भूखा रहने से
बढ़ जाती है आयु पुरुष की…
इसी धरती पर इसी देश में ठोस होता जा रहा है
एक सत्य करोड़ों लोगों के भूखा रहने से
बन गया है सचमुच, एक व्यक्ति
दुनिया का नंबर वन अमीर…

फऱीदाबाद से प्रकाशित, मजदूरों के लोकप्रिय साप्ताहिक ‘मज़दूर मोर्चा’ के संपादक कॉमरेड सतीश कुमार ने सभा से पूछा. क्या आप जेबक़तरों के काम करने के तरीके के बारे में जानते हैं? वह किसी न किसी बहाने, अपने शिकार का ध्यान दूसरी तरफ लगा देता है, और जैसे ही वह व्यक्ति अपनी जेब के बारे में बे-खबर होता है, जेब काट कर निकल लेता है. मोदी सरकार हो या खट्टर सरकार, इनके काम करने का तरीका भी बिलकुल वही है. वो देखो- गाय माता कितने कष्ट झेल रही है; वो देखो- मुसलमानों की आबादी कितनी तेज़ी से बढ़ रही है, वे तुम्हें खा जाएँगे; वो देखो हमारा भव्य राम मंदिर!! आप उधर पिल पड़ते हैं और आपकी जेब में जो कुछ भी बचा है, उसे निकालकर अडानी-अम्बानी की जेब में डाल दिया जाता है. अब ये आप पर निर्भर है कि कब तक अपनी जेब कटवाते हो, या इक_े होकर इन जेबतराशों को ठिकाने लगाते हो. भाजपा-संघ का काम करने का ढंग, गुण-धर्म तो बदलने से रहा. सभा के अंतिम वक्ता, इंडियन पब्लिक सर्विस एम्प्लाइज फेडरेशन (ढ्ढक्कस्श्वस्न) के राष्ट्रीय उप-महासचिव और दिल्ली राज्य सचिव, कामरेड राकेश भदोरिया रहे. उन्होंने बताया कि सभी सरकारी कर्मचारी बेहद तनाव में और घबराहट के माहौल में काम कर रहे हैं. किसी को भी अपने काम की सुरक्षा नहीं रही. सरकार पुरानी पेंसन बहाल ना करने पर अड़ी हुई है. हर जगह भर्तियाँ ठेके पर ही हो रही हैं, जिन्हें किसी भी अधिकार की गारंटी नहीं. ट्रेड यूनियन आन्दोलन को नष्ट किया जा रहा है. अमर शहीद क्रांतिकारियों के सन्देश को कोने-कोने में ले जाना होगा, जिससे पूंजी के राज के खात्मे के असली आज़ादी आन्दोलन को क़ामयाब बनाया जा सके. सभा के शुरू, मध्य और अंत में, दो प्यारे बच्चों, स्वाती और स्नेह के गाए क्रांतिकारी गीतों; ‘पढऩा-लिखना सीखो, ओ मेहनत करने वालो’, ‘कि़ताबें कुछ कहना चाहती हैं’ और ‘देश हमारा धरती अपनी..’ ने सबका दिल छू लिया. ज़ोरदार नारों के साथ और शहीद दिवस 23 मार्च तक मज़दूर संपर्क अभियान जोरदार ढंग से चलाते हुए, 23 मार्च के मोर्चे-सभा कार्यक्रम को क़ामयाब बनाने के अहद के साथ, समाप्त होने से पहले, मज़दूर सभा ने ये 3 प्रस्ताव भी पारित किए;

1) देश में बे-रोजग़ारी अभूतपूर्व है और उसमें हरियाणा नंबर 1 है (35 प्रतिशत). युवाओं को रोजग़ार देने की जगह, सरकार उन्हें ‘गो रक्षकों’ के नाम पर दंगाई और फासिस्ट ब्रिगेड के सैनिक बना रही है. ज़ूनैद और नासिर की नृशंस हत्या, समाज को शर्मसार करने वाली है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके बर्बर हत्यारे, असलेह लेकर, पुलिस के साथ ऐसी वारदातों में नियमित रूप से लिप्त रहे हैं. हत्यारों पर कठोर कार्यवाही की मांग की जगह, उनके बचाव में महापंचायतें आयोजित हो रही हैं. ‘गौ रक्षा टास्क फ़ोर्स’ को तत्काल समाप्त करो. ज़ूनैद और नासिर की जघन्य हत्या और गो रक्षा के नाम पर नंगे फ़ासीवादी नाच के विरुद्ध होने वाले जन-आंदोलनों में ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ पूरी शिद्दत से, बिना शर्त, शामिल रहेगा.

2) फऱीदाबाद में कोई भी श्रम क़ानून लागू नहीं हो रहा. सम्बंधित विभाग स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि उन्हें हरियाणा सरकार का लिखित आदेश है, कि श्रम क़ानून लागू ना करने वाले किसी भी कारखाने पर, सरकार से लिखित अनुमति लिए बगैर, और सम्बंधित कारखानेदार को पूर्व सूचना दिए बगैर, कोई कार्यवाही ना की जाए. हम हरियाणा सरकार के, इन घोर मज़दूर-विरोधी और मालिकों को मज़दूरों का खून निचोडऩे की छूट देने वाले, ऐसे आदेशों के विरुद्ध अपना तीव्र आक्रोश ज़ाहिर करते हैं. सरकार से इन आदेशों को तुरंत वापस लेने और सभी श्रम कानूनों, पीएफ़, ईएसआईसी कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने की मांग करते हैं. ऐसा ना होने पर तीव्र जन-आन्दोलन आयोजित किए जाएँगे.

3) सभा स्थल, पब्लिक पार्क, सेक्टर 21 डी को ‘अमर शहीद क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद पार्क’ घोषित करने और उसके मध्य उनकी शानदार प्रतिमा प्रतिष्ठित की जाए. इस सम्बन्ध में फऱीदाबाद नगर निगम आयुक्त को ज्ञापन दिया जाएगा और उसके कार्यान्वयन के लिए सेक्टर के सभी निवासियों से संपर्क किया जाएगा.

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles