बंधवाड़ी के बाद अब सीही के सत्यानाश की तैयारी…

बंधवाड़ी के बाद अब सीही के सत्यानाश की तैयारी…
October 25 14:17 2020

 

ईको ग्रीन-सत्ताधारी नेताओं के गठजोड़ के खिलाफ जनता धरने पर

फरीदाबाद (म.मो.) पूरी दुनिया में कचरा निस्तारण कोई समस्या न होकर एक उद्योग का रूप ले चुका है। इसके चलते कचरा एक बोझ न होकर कच्चे माल के रूप में एक संसाधन बन चुका है। इस से बायोगैस, बिजली व कम्पोस्ट खाद जैसे बहुमूल्य उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं। परन्तु यही कचरा न केवल फरीदाबाद में बल्कि दिल्ली समेत भारत के अधिकांश शहरों में जनता के लिये मुसीबत बना हुआ है।

फरीदाबाद व गुडग़ांव की इस साझी मुसीबत से छुटकारा पाने के नाम पर गुडग़ांव रोड पर बंधवाड़ी गांव की करीब 10-15 एकड़ ज़मीन सरकार द्वारा कब्जा कर एक कम्पनी को दे दी गयी। कम्पनी से समझौता हुआ था कि वह इस कूड़े से बिजली बना कर निगम को बेचेगी। कम्पनी की ओर से दिया गया मनमाना भाव, 15 रुपये प्रति यूनिट भी नगर निगम ने स्वीकार कर लिया था। इसके लिये 70 करोड़ की लागत से मशीनरी आदि भी लगाई गयी थी। परन्तु न तो कभी एक यूनिट बिजली पैदा हुई और न ही कम्पोस्ट या कोई अन्य उत्पात। हां, कुछ समय बाद आग लगने से सारी मशीनरी को जला हुआ घोषित करके नगर निगम फारिग हो गया।

उसके बाद चीनी कम्पनी ईको ग्रीन को लाया गया। पूरे शहर का कचरा घर-घर से उठा कर बंधवाड़ी ले जाने, वहां उसका निस्तारण करने के लिये कम्पनी से करोड़ों रुपये का अनुबंध किया गया। इस कम्पनी ने न तो सही ढंग से शहर का कचरा उठाया न ही उसके निस्तारण की कोई व्यवस्था की, बल्कि बंधवाड़ी में कचरे का पहाड़ और भी ऊंचा कर दिया। इस से 10-10 किलोमीटर तक बसी ग्रामीण आबादी दुर्गंध व भूजल के दूषित होने से परेशान है। इसके विरुद्ध उनकी चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं।

कचरे के पहाड़ की ऊंचाई अधिक हो चुकने के चलते निगम ने नहर पार बन रहे सेक्टर 74-75 के निकट सीही गांव के रकबे में 10 एकड़ पंचायती ज़मीन, जो अब नगर निगम की हो चुकी है, की चारदीवारी करके वहां कचरे का एक और पहाड़ खड़ा करने की तेयारी कर ली है। संघ एवं भाजपा से झूठ बोलने की कला में पारंगत हो चुके बल्लबगढ़ से विधायक एवं मंत्री मूल चंद तथा उनके भाई टिप्पर चंद ने चारदीवारी करते वक्त स्थानीय लोगों को बहकाया कि यहां मलवे से टाइलें बनाने का काम चलेगा। लेकिन कुछ दिन बाद जब पोल खुलने लगी तो यही नेता कहने लगे कि यहां मशीनरी लगा कर बंधवाड़ी से कचरा लाकर उसका विधिवत निस्तारण किया जायेगा। आज की जनता इतनी बेवकू$फ तो रह नहीं गयी है जो इस तरह की बहकाई में आ जाये, झट से सारा षडयंत्र समझ गयी।  इसे नाकाम करने के लिये न केवल सीही गांव के लोग बल्कि साथ लगते गांव मिर्जापुर के लोग और सेक्टर में बन चुकी व बन रही रिहायशी सोसायटियों के लोग भी बड़ी संख्या में जुड़ते जा रहे हैं।

 

सरपंच महिपाल

इस षडयंत्र को विफल करने के लिये मिर्जापुर के सरपंच महिपाल के नेतृत्व में उक्त सभी लोग उस चारदीवारी के भीतर तम्बू लगा कर धरने पर बैठ गये हैं जहां कचरे का पहाड़ खड़ा करने की साजिश है। धरना स्थल के लगभग सामने रिसॉर्ट सोसायटी के महासचिव राहुल नागपाल ने बताया कि एनजीटी की ओर से कचरा निस्तारन स्थल बनाने के लिये कुछ गाइड लाइन्ज़ हैं, जिनके मुताबिक इसे आबादी, हाईवे, स्कूल, अस्पताल हवाई अड्डे आदि से दो किलोमीटर से लेकर 20 किलोमीटर तक दूर होना चाहिये। परन्तु यह स्थल तो बिल्कुल आबादी व आबादी के बीच बनने वाले स्कूलों व अस्पतालों के बीच में पड़ता है। यदि यहां कचरा स्थल बनाने की घोषणा पहले से होती तो वे लोग कभी भी यहां अपना घर नहीं बनाते। यहां कचरा स्थल बनाना उनके साथ बड़ा-भारी धोखा होगा क्योंकि यहां कचरा आने के बाद रहना दूभर हो जायेगा।

स्थानीय सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर का कहना है कि कहीं तो यह कचरा स्थल बनेगा ही; ठीक है तो फिर उस ‘कहीं’ को अपने घर के नजदीक या अपने गांव मेवला महाराजपुर में ही क्यों नहीं बनवा लेते, पता चल जायेगा कि लोग आपको कितनी ‘दुआऐं’ देंगे। यह ठीक है कि कचरा कहीं तो डलेगा, लेकिन जिस तरह से सरकार इसे डालना चाहती है उस तरह से अब कहीं भी कोई भी नहीं डालने देगा मंत्री महोदय। इसके डालने और निस्तारण का आज वैज्ञानिक तरीका उपलब्ध है, पूरी तकनीक उपलब्ध है जिसके इस्तेमाल से यही कचरा बहुउपयोगी बन सकता है।

इसका बेहतरीन उदाहरण इसी शहर में सेकटर 13 स्थित इन्डियन ऑयल ने प्रस्तुत करके दिखा दिया है। इसकी विस्तृत रिपोर्ट ‘मज़दूर मोर्चा’ के 12-18 जनवरी 2020 के अंक में प्रकाशित की थी। इस में बताया गया था कि किस प्रकार एक छोटा प्लांट लगा कर पांच टन (गीले) कचरे से रसोई गैस बनाई जा रही है। इन्डियन ऑयल ने करीब पांच करोड़ रुपये खर्च करके यह प्लांट लगा कर नगर निगम के हवाले करना चाहा था। परंतु नगर निगम ऐसे ‘फिजूल’ के कामों में कोई रूचि नहीं रखता। इनकी रूचि केवल उन्हीं कामों में होती है जहां ये मोटी डकैती मार सकें। और तो और जो निगम कचरे का पहाड़ खड़ा कर सकता है वह इस प्लांट को चलाने के लिये पांच टन गीला कचरा तक सप्लाई नहीं कर सका। इसे लेकर उपायुक्त यशपाल यादव ने निगम वालों को ‘कारण बताओ’ नोटिस भी जारी किया था। लेकिन ढाक के वहीं तीन पात।

हरामखोरी व रिश्वतखोरी पर आधारित इस व्यवस्था में, जहां राजनेताओं व अफसरशाही में इस बात की होड़ लगी हो कि कौन कितना बड़ा लुटेरा है वहां जनहित का कोई भी काम होना संभव नहीं। जनहित के नाम पर ये लोग योजनाओं की घोषणा व शुभारम्भ तो करते हैं परन्तु अन्तत: ये योजनायें जन-धन को लूटने के षडयंत्र ही साबित होते हैं।

यदि इनकी नीयत साफ हो जनहित की जरा भी परवाह हो तो इसी भारत देश में ऐसी-ऐसी कम्पनियां मौजूद है जो वैज्ञानिक ढंग से दिन-प्रति दिन कचरे का निस्तारण करके इससे उपयोगी उत्पाद तैयार कर सकते हैं। परन्तु यहां तो राजनेताओं व अ$फसरों को सदैव उन कम्पनियों की तलाश रहती है जो उनकी जेबें भर सकें।

 

 

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Mazdoor Morcha
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