1857 में इंग्लैंड का गुलाम बनने से पहले, 100 साल, हम, मतलब भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश, इंग्लैंड की एक पिद्दी सी, ईस्ट इंडिया कंपनी के गुलाम रहे हैं. अडानी की इंटरप्राइजेज कोयला साम्राज्य की ठगी के बारे में वाशिंगटन पोस्ट में छपी कहानी पढक़र ये जि़ल्लत याद आ गई.
जिस सेक्रेटरी ने विरोध किया उसे हटा दिया गया. स्थानीय लोगों ने विरोध किया, पुलिस ने मार-मार कर उनकी टाँगें तोड़ दीं, जेल में ठूंस दिए गए. हैरानी की बात है कि स्थानीय विधायक ने विरोध भी किया, लोगों का साथ दिया, उसे भी 6 महीने जेल में डाल दिया गया. कोई कर नहीं, कोई बिजली नहीं, हमारे हिस्से बस राख़ और धुंवा ही आएँगे!! 140 करोड़ के देश को फर्क़ नहीं पड़ा!!
उधर बांग्लादेश का सरकारी पर्यावरणविद और मंत्री कह रहा है कि हम जानते हैं कि ये योजना विनाशकारी है. हमें अभी बिजली की ज़रूरत भी नहीं लेकिन समझौते के मुताबिक जैसे ही अडानी प्लांट शुरू होगा, हम बिजली खऱीदें या ना खऱीदें, हमें हर साल 450 मिलियन देना ही पड़ेगा. बिजली खऱीदी भी तो अडानी की बिजली हमें 5 गुना मंहगी पड़ेगी. मैडम भी ये बात जानती हैं लेकिन हम तो भारत के एक राज्य के बराबर भी नहीं, मोदी को नाराज कैसे कर सकते हैं!! हम एक कमजर्फ़ ठग के गुलाम बन चुके हैं.