‘अच्छे दिन’ आने के बाद अब रेल यात्रियों पर तो पूरा ‘अमृत’ बरसा कर ही मानेंगे मोदी जी

‘अच्छे दिन’ आने के बाद अब रेल यात्रियों पर  तो पूरा ‘अमृत’ बरसा कर ही मानेंगे मोदी जी
August 20 22:24 2022

फरीदाबाद (म.मो.) ‘अच्छे दिनों’ का झांसा देकर ‘अमृत’ काल तक तो जनता को मोदी जी ले ही आये हैं। रेल यात्रियों पर तो उनकी विशेष कृपा अपरम्पार बरस रही है। लम्बी दूरी के तमाम भाड़े दोगुने-तिगुने तो कर ही दिये, बुजुर्गों को मिलने वाली रियायत भी ‘अमृत काल’ की बलि चढ़ गई। पहले इस शहर से दिल्ली की ओर जाने के लिये 16 शटल ट्रेनें चला करती थी और उतनी ही उधर से आया करती थीं। इन सभी ट्रेनों में यात्री इस कदर खचाखच भरे होते थे कि तिल भर की जगह खाली नहीं रहती थी। कोरोना के नाम पर ये सभी ट्रेनें बंद कर दी गई थी। फिर धीरे-धीरे एक-दो ट्रेनें चलाई गई जिनमें भाड़ा तीन गुणा तक कर दिया गया। अब केवल प्रति दिन चार शटल ट्रेनें अवागमन करती हैं।

दैनिक यात्री अपने वाहनों को स्टेशन की पार्किंग में खड़ा करके निश्चिंत होकर आवागमन करने लगे थे। लेकिन मोदी सरकार को जनता का यह सुख भी बर्दाश्त नहीं हुआ। रेलवे ने घोषणा कर दी है कि अगले माह से पार्किंग का ठेका नहीं छोड़ा जायेगा। किसी ने अपना वाहन खड़ा करना हो तो वह अपने जोखिम पर खड़ा करे, रेलवे की कोई जिम्मेवारी नहीं होगी।
इसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि रेलवे स्टेशन की बिल्डिंग का विस्तार किया जाने वाला है। उन्हें नहीं मालूम कि यह विस्तार कहां से कहां तक और कितना होने वाला है। उन्हें यह भी मालूम नहीं कि यह कब शुरू होकर कब तक सम्पन्न हो पायेगा? सुधी पाठक अवश्य ही जानते होंगे कि मौजूदा नई बिल्डिंग जो दिखाई दे रही है उसे पूरा हाने में 10 वर्ष से अधिक का समय लग गया था। इस बीच कई ठेकेदार आये और गये। इसके पीछे मूल कारण ठेकेदारों से कमीशन को लेकर झगड़े बताये जाते हैं।

न केवल पार्किंग का ठेका रद्द किया गया है बल्कि पूरे स्टेशन परिसर की साफ-सफाई का ठेका भी समाप्त कर दिया गया है। किसी जमाने में इस काम के लिये रेलवे के अपने पक्के कर्मचारी हुआ करते थे। उन पर काम न करने का आरोप लगा कर ठेकेदारी व्यवस्था चालू की गई थी। लेकिन अब बिल्डिंग के विस्तार एवं निर्माण की आड़ में उनकी भी छुट्टी कर दी गई है। समझ नहीं आता कि यह कौन सी समझदारी है कि निर्माण कार्य के दौरान स्टेशन परिसर के बाथरूम, शौचालय, प्लेटफार्म व पुल आदि की सफाई की कोई जरूरत नहीं होती? मतलब स्पष्ट है कि इस ‘अमृत काल’ में जनता की अधिकतम ऐसी-तैसी कैसे की जाय। उपलब्ध जानकारी के अनुसार फिलहाल प्लेटफार्मों के ऊपर जो टीन शेड हैं उनकी जगह तीन से चार मंजिला इमारत बना कर होटल, रेस्तरां व मॉल जैसी व्यापारिक गतिविधियां चलाई जायेंगी। यानी कि नीचे तो रेल की खड़-खड़, धड़-धड़ रहेगी और उसके ऊपर शहरवासी आकर शॅापिंग आदि करेंगे। वाह मोदी जी वाह क्या दिमाग पाया है!

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Mazdoor Morcha
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