फरीदाबाद (म.मो.) यातायात को सुचारु रूप से चलाने एवं सडक़ों को जाम मुक्त करने के लिये शहर में आवश्यकता के अनुरूप पार्किंग स्थल बनाने, सडक़ों पर सफेद लकीरे खींचने व तरह-तरह की बेरीकेडिंग करने तथा वाहनों को उठाने के लिये क्रेनों की व्यवस्था ‘कराने’ के बाद अब ‘लेप्टॉन’ की नई खोज की गई है।
प्रेस में आये डीसीपी ट्रैफिक नीतिश कुमार अग्रवाल के बयान के मुताबिक किसी भी इलाके में जाम की पूर्व सूचना देने के लिये उक्त कम्पनी से टाईअप कर लिया गया है। यानी जाम तो हटा न पाये, उसकी सूचना देने का प्रबन्ध कर दिया है, क्या गजब है। डीसीपी ने यह नहीं बताया कि इस टाईअप की कितनी कीमत जनता के खजाने से अदा की जायेगी? जैसे, सरकार ने प्रॉपर्टी अरईडी को टाईअप याशी कम्पनी से करके जनता के 57 करोड़ लुटवा दिये हैं, अब कितने लुटवाने जा रहे हैं?
जाम की स्थिति बताने के लिये तो कम्पनी का चुनाव कर लिया गया है परन्तु शहर की सडक़ों व चौक-चौराहों पर लगने वाले जाम को हटाने के लिये डीसीपी साहब की पूरी पलटन कुछ भी करने को तैयार नहीं। बदरपुर बॉर्डर से लेकर धुर बल्लबगढ़ तक के तमाम मोड़ों पर जाम केवल इस लिये लगे रहते हैं कि वाहन अनावश्यक रूप से सडक़ घेर कर खड़े रहते हैं। और तो और अजरोंदा मोड़ स्थित डीसीपी महोदय के कार्यालय के सामने व अगल-बगल में वाहनों की अवैध पार्किंग के चलते सदैव जाम की स्थिति बनी रहती है। उनके ठीक सामने नीलम रेलवे ओवरब्रिज की पैदल पटरी पर दुपहिया वाहन फर्राटे भरते हुए पैदल चलना मुश्किल कर देते हैं।
जो डीसीपी अपने नाक पर बैठी मक्खी तक को न उड़ा पाये तो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है कि वे एक-दो नम्बर चौक, बीके चौक नीलम चौक पर सदैव लगे रहने वाले वाहनों के जमावड़े को हटा पायेंगे?
बाटा-हार्डवेयर चौक वाली सडक़ तो मानो ट्रक वालों को बेच ही दी गई हो। इस सडक़ पर कोई समय ऐसा नहीं होता जब ट्रकों ने सडक़ को न घेर रखा हो। पीक आवर्स में तो यहां से गुजरना तक भारी हो जाता है। आधा किलोमीटर का रास्ता तय करने में 10 मिनट तक भी लग जाते हैं। यही एक सडक़ नहीं और भी अनेकों ऐसी सडक़ हैं जहां वाहनों की अनावश्यक पार्किंग के चलते जाम की स्थिति बनी रहती है। इन वाहनों से निपटने के लिये अधिक कुछ नहीं केवल पार्किंग के चालान ही यदि लगातार किये जाते रहें तो लोग स्वत: सडक़ घेरना छोड़ देंगे।