क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा आज़ाद नगर की झुग्गी संख्या 1916 में 40 वर्षीय सुरेन्द्र कुमार अपने परिवार के साथ रहते हैं। अगले हिस्से में जिसका दरवाज़ा गली को ओर खुलता है वहां उन्होंने अपनी किरानाा व जनरल स्टोर की दुकान बना ली है। छत सीमेंट की चद्दरों वाली है। उनकी दुकान के सभी ग्राहक, बस्ती में आस-पास रहने वाले गऱीब मज़दूर ही हैं, जो दैनंदिन ज़रूरत का सामान उधार लेते रहते हैं, और महीने की 10 तारीख के बाद, वेतन मिलते ही महीने भर के खर्च का भुगतान करते हं। महीने की 16-17 तारीख तक, उधारी का पैसा वापस मिल जाता है। तब, वे उस थोक दुकानदार का भुगतान कर देते हैं, जिससे माल खऱीदते हैं। उनके गल्ले में, हर महीने की 17 तारीख को सबसे ज्यादा पैसा होता है, यह बात मोहल्ले में सभी को मालूम है।
17 अगस्त की रात, सुरेंद्र जी के घर चोरी हो गई। चूंकि, दुकान समाप्त होते ही, घर शुरू हो जाता है, सुरेन्द्र कुमार वहीँ सोए हुए थे। चोरों ने सीमेंट की चद्दर हटाई और गल्ले से पैसे निकाल लिए। थोड़ी आहट हुई, उन्हें लगा छत पर बिल्ली होगी लेकिन तब ही याद आया, कि गल्ले में उनकी महीने भर की बिक्री का पैसा है। वे उठे और जैसे ही गल्ला ख़ाली नजऱ आया, उनकी चीख निकल गई, ‘हाय मैं लुट गया। चोर मेरे 70,000 ले गए। उनकी पत्नी और भाई भी जाग गए। उसी वक़्त, रात के लगभग 2 बजे बस्ती में कुछ दूरी से एक और शोर सुनाई दिया। शोर-शराबे से पूरा मोहल्ला इकठ्ठा हो गया। पता चला कि सुरेन्द्र कुमार के घर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर, बबुंति नाम की जो मज़दूर महिला रहती हैं उनकी झुग्गी में भी चोर घुसा और उनका मोबाइल उठाकर जैसे ही चला, उनकी आंख खुल गई। वे चोर को पहचान गईं। वही मूसा, पिता का नाम अमीन, नाम का लफंगा युवक था जो बस्ती में ही रहता है और मेहनत कर खाने की बजाए, चोरी-चकारी, नशा खोरी करने के लिए कुख्यात है। इतना ही नहीं वह, इसी किस्म के आवारा लुम्पन युवकों का मुखिया भी बना फिरता है और बस्ती के गऱीब मज़दूरों को धमकाता भी रहता है। बबुंति उसके पीछे, उसके घर तक भागीं, लेकिन तब ही मूसा ने धमकी दी, ‘पीछे हट जा वर्ना मार डालूंगा’। वे लौट आईं।
सुरेन्द्र कुमार के घर के साथ वाली झुग्गी नंबर 1917 में ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ का दफ़्तर है, जहां संगठन के अध्यक्ष कॉमरेड नरेश, अपने परिवार के साथ रहते हैं। इस एरिया के अधिकतर मज़दूर इस संगठन के सदस्य हैं। 17-18 की रात 2.00 बजे बस्ती के लगभग सारे लोग इक_े हो गए और 112 नंबर डायल किया गया। पुलिस जल्दी ही, घटना-स्थल पर पहुँच गई। पुलिस ने तस्वीरें लीं, पीडि़तों और इकठ्ठा हुए अन्य लोगों से बात की। उन्होंने सलाह दी कि आप लोग मुजेसर थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाइए। लगभग 60 लोग, उसी वक़्त मुजेसर थाना पहुंचे। वहां मौजूद पुलिस सिपाही ने यह कहकर लौटा दिया कि सुबह नौ बजे के बाद आना। 18 अगस्त को, सुबह 10 बजे लगभग 60 लोगों के साथ दोनों चोरी- पीडि़त फिर से थाने पहुंचे। पूरी घटना का सारा ब्यौरा पुलिस को बताया। उसके बाद, अपराध जाँच एजेंसी (ष्टढ्ढ्र) की टीम मौक़ा-ए-वारदात पर पहुंची। उनकी तहकीक़ात काबिल-ए-गौर है। महीने भर की अपनी बिक्री खो चुके, सुबकते सुरेन्द्र कुमार से पुलिसिया अंदाज़ में पहला सवाल पूछा जाता है, “तेरे पास 70,000 रुपये, आए कहां से बहन…द, ये बता? झूठ बोलता है, स्साले। ये, ऐसे नहीं बताएगा इसे थाने ले चलो’। सुरेन्द्र डर से कांपने लगे और उनकी पत्नी दहाड़ें मारकर रोने लगीं। पुलिस के इस व्यवहार को बस्ती के सभी लोग जानते हैं। इसका असल मतलब होता है, पुलिस रिपोर्ट करने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई!!
सुरेन्द्र कुमार यह भी कहते रहे कि वे उन लोगों के नाम भी बता सकते हैं, जिन्होंने अपनी उधारी चुकाई। उन्होंने उस थोक व्यापारी का नाम-पता भी बताया जिसके पैसे उन्हें लौटाने थे। फिर भी पुलिस वाले बोलते रहे, ‘देख तू, झूठ मत बोल। हमें सच उगलवाना भी आता है!!!’ कारखाना मालिक, अमीर लोग, जब चोरी की शिकायत करते हैं तब भी क्या पुलिस इसी तरह जांच शुरू करती है? हर मज़दूर झूठा है और हर अमीर सत्यवादी हरिश्चंद है, पुलिस ऐसा क्यों सोचती है? लोग कह रहे हैं कि एफआईआर भी क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा द्वारा मामले की दख़ल लेने की वजह से ही दर्ज हुई, वर्ना उन्हें वैसे ही डराकर भगा दिया गया होता।
उसके बाद, उन्होंने ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ से संपर्क कर, पुलिस के इस रवैय्ये की शिकायत की और बताया कि पुलिस वाले तो हमें ही बंद करने की धमकी दे रहे है। उसके बाद, क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा की स्थानीय टीम घटनास्थल पर पहुंची और सभी 60 लोगों के साथ मुजेसर थाने में भी गई। मुझेसर थाने के एसएचओ, कबूल सिंह ने क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष नरेश को भरोसा दिलाया कि जांच में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। बाक़ायदा एफआईआर दर्ज की जाएगी और उसकी कॉपी दोपहर बाद आपको उपलब्ध करा दी जाएगी। भारतीय दंड संहिता की धारा 380 में दज एफआईआर 0510/ 18.08.2023, 9:40 एएम की प्रति उसी दिन 4 बजे हमें प्राप्त हो गई। जांच अधिकारी का नाम एएसआई संजीत सिंह है।
बस्ती के छटे हुए अपराधी मूसा का नाम बार-बार बताए जाने के बावजूद भी, एफआईआर में नहीं है। ‘अज्ञात चोरों की तलाश की जाए’, इसकी जगह आरोपी मूसा का नाम होना चाहिए था। हालांकि, सीआईए की टीम मूसा को उसी दिन, उठाकर ले गई लेकिन 3 घंटे बाद ही उसे छोड़ दिया गया। वह उसी तड़ी स बबंती के घर के सामने से, धमकी देता घूम रहा है। इतना ही नहीं, उसका साथी गुड्डू, 23 अगस्त को नशे की हालत में सुरेन्द्र कुमार की दुकान पर पहुंचा और बोला, “अच्छा तो तुम्हारी दुकान में चोरी हो गई। काफ़ी नुकसान हो गया। पैसे तो वापस मिल जाने चाहिए। आप कहो तो मैं मूसा भाई से बात करूं।” सुरेन्द्र कुमार ने इस जानकारी को पुलिस को देने के लिए संजीत सिंह को फोन किया लेकिन उन्होंने पूरी बात भी नहीं सुनी और बोले ‘तुम सीआईए से बात करो’। पीडि़तों को मुजेसर पुलिस और सीआईए के बीच झुलाया जा रहा है। सभी जानते हैं कि चोरी के मामले में अपराधियों को पकडऩे में जितनी देर होती है चोरी के माल के पकड़े जाने की संभावना उतनी ही कम होती जाती है। क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, पुलिस से मांग करता है कि,
1) मामले की निष्पक्ष जांच की जाए। क़ुसूरवार को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए। अदालत उसे उसके अपराध की सजा दे, पुलिस इस बाबत अपना फज़ऱ् निभाए। हमारा संगठन, पुलिस जांच में दख़ल नहीं देगा। चोर को बचाने हम कभी नहीं जाएंगे लेकिन 6 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक (24 अगस्त सुबह 11 बजे) कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है। सुरेन्द्र कुमार को उनका चोरी गया पैसा और बबंती जी को उनका मोबाइल वापस नहीं मिला है। कृपया इंसाफ दिलाइये। हम इंसाफ की गुहार लगाते रहेंगे और चोरी गया माल वापस पीडि़तों को मिलने तक हम इस फ़ाइल को बंद नहीं होने देंगे।
2) आज़ाद नगर बस्ती में भी नशे का आपराधिक कारोबार ख़ूब फल-फूल रहा है। पुलिस शिद्दत से जांच करे तो गुनहगारों को पकडऩा मुश्किल नहीं। नशे के धंधे में भी यही मूसा लिप्त है, आज़ाद नगर बस्ती में ये चर्चा आम है। युवाओं को नशे के गर्त में धकेल रहे अपराधियों को उनके आकाओं समेत गिरफ्तार कीजिए। नशे और अपराध के बीच सीधा संबंध है। कृपया अपराधियों पर सख्ती कीजिए।