मज़दूर मोर्चा ब्यूरो जनता को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की इच्छा न तो कभी कांग्रेस सरकार की रही थी और न ही कभी मोदी सरकार की। लेकिन इसके नाम पर जनता को बेवकूफ बनाने के लिये दोनों ने ही एक से बढक़र एक पाखंड को जन्म दिया।
चिकित्सा सेवाओं के नाम पर जहां कांग्रेस ने आरएसबीवाई (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) का धंधा शुरू किया था तो वहीं मोदी ने ‘आयुष्मान’ योजना के द्वारा जनता को ठगने की योजना बना डाली। आरएसबीवाई में जहां 30 हजार रुपये तक के इलाज की बात कही गई थी वहीं मोदी ने आयुष्मान में पांच लाख तक के मुफ्त इलाज का डंका बजा रखा है। सन् 2018 में शुरू की गई इस योजना के द्वारा देश के 50 करोड़ गरीब लोगों को चिकित्सा लाभ देने का ढोल पीटते हुए इसे विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा बताया गया था। 50 करोड़ लोगों को आयुष्मान सेवा का ढोल तो पीट दिया लेकिन बीते छ: साल में अभी तक इसके आधे यानी 25 करोड़ लोगों को ही कार्ड जारी हो सके हैं। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार केवल 25 हजार प्रति दिन के हिसाब से कार्ड बनाये जा रहे हैं। इस हिसाब से 100 दिन में 25 लाख और 400 दिन में एक करोड़। अब सुधी पाठक बाकी हिसाब खुद ही लगा लें कि 50 करोड़ का दावा यह सरकार कितने वर्षों में पूरा कर पाएगी?
दूसरी गौरतलब बात यह है कि इस योजना में कुल खर्च का 60 प्रतिशत केन्द्र सरकार तथा 40 प्रतिशत राज्य सरकारों से वसूला जाता है। दिल्ली तथा कई अन्य गैर भाजपाई सरकारों ने इस योजना को सिरे से नकार दिया। दिल्ली के सीएम केजरीवाल का कहना है कि जब वे प्रत्येक मरीज़ को मुफ्त एवं बेहतरीन चिकित्सा सेवा दे रहे हैं तो मोदी नाम का ढिंढोरा पीटने के लिये वे काहे को अपना धन बर्बाद करें?
इसके प्रचार-प्रसार एवं कार्ड बनाने पर ही लाखों-करोड़ खर्च किये जा चुकने के बावजूद अभी तक मात्र 25 करोड़ लोगों को ही इस योजना से जोड़ा जा सका है। उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन पंजीकृत कार्डधारकों में से अभी तक केवल साढ़े पांच करोड़ लोग ही किसी प्रकार की चिकित्सा सेवा इस योजना के तहत प्राप्त कर सके हैं। ये आंकड़े कितने खोखले एवं धोखाधड़ी से भरपूर हैं इसका अनुमान कैग की ताजा तरीन रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एक ही मोबाइल नम्बर से सैंकड़ों आयुष्मान कार्ड बनाकर बड़ा $फर्जीवाड़ा किया गया है। बात यहीं खत्म नहीं होती ऐसे सैंकड़ों मृत लोगों की सूची भी कैग ने जारी की है जिनका ‘इलाज’ एक से अधिक अस्पतालों में करके सैंकड़ों करोड़ डकार लिये गये।
दरअसल समझने वाली बात तो यह है कि जनता को चिकित्सा सेवाएं केवल डॉक्टरों एवं संसाधनों से सुसज्जित अस्पतालों द्वारा ही दी जा सकती है न कि किसी बीमा कम्पनी एवं इसकी योजनाओं द्वारा। उक्त दोनों ही सरकारों ने डॉक्टरों एवं अस्पतालों की पुख्ता व्यवस्था करने की बजाय बीमा योजनाओं का छलावा देकर जहां एक ओर जनता को बेवकू$फ बनाया है वहीं दूसरी ओर धोखाधड़ी करने में माहिर लोगों के लिये लूटने खाने के सुअवसर प्रदान करा दिये हैं।
आयुष्मान योजना के तहत इलाज के करीब 1400 पैकेज तैयार किये गये हैं। इनमें से आधे पैकेज सरकारी अस्पतालों तथा शेष प्राइवेट अस्पतालों के लिये रखे गए हैं। गौरतलब है कि देश के तमाम सरकारी अस्पतालों की हालत $फरीदाबाद के बीके अस्पताल से भी गई बीती है। ऐसे में समझा जा सकता है कि यहां किसी का भी इलाज कैसा हो पाएगा? पर फिर यदि बीके जैसे सरकारी अस्पतालों में ही इलाज कराना है तो आयुष्मान कार्ड की क्या भूमिका हो सकती है? संदर्भवश इस योजना में प्राथमिक श्रेणी के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। यानी कि जो इलाज बिना अस्पताल में दाखिल हुए हो सकता है वह इसमें कवर नहीं होता, अर्थात केवल दाखिल होने वाले रोगी ही इसके दायरे में आते हैं।
अब आ जाइये ईएसआईसी की चिकित्सा सेवाओं की ओर। आज के दिन करीब 16 करोड़ लोग ईएसआईसी से चिकित्सा सेवाएं लेने के हकदार हैं। चांैकिये नहीं एक बीमाकृत व्यक्ति के साथ चार लोगों का परिवार माना जाता है। आज के दिन इन बीमाकृतों की संख्या पौने चार करोड़ है तो कुल 15 करोड़ लोग इस सेवा के हकदार हो जाते हैं। इतना ही नहीं सेवानिवृत्त कर्मचारी यानी कि जिनका अंशदान कार्पोरेशन को नहीं आता और केवल 120 रुपये वार्षिक देकर ईएसआई से जुड़े रहते हैं, उनको मिला कर यह संख्या 16 करोड़ के आसपास बनती है।
अब देखने वाली विशेष बात यह है कि अभी तक आयुष्मान में पंजीकृत हुए 25 करोड़ लोगों में से बीते छ: साल में जहां केवल साढ़े पांच करोड़ लोगों ने ही चिकित्सा सेवाएं प्राप्त की हैं वहीं ईएसआईसी में पंजीकृत 16 करोड़ लोगों में से तीन-साढ़े तीन करोड़ लोग हर वर्ष चिकित्सा सेवा प्राप्त कर रहे हैं। यद्यपि ईएसआईसी की सेवाओं में भी अनेकों खामियां है, इसके बावजूद भी इसकी सेवाओं के सामने आयुष्मान की सेवाएं कहीं नहीं ठहर पातीं।
मजे की बात तो यह है कि ईएसआई सेवाओं पर सरकार का एक पैसा भी खर्च नहीं होता क्योंकि सारा पैसा मज़दूरों के वेतन से वसूला जाता है। केवल राज्य सरकारों से 12.33 प्रतिशत उन सेवाओं के लिये लिया जाता है जिन्हें राज्य सरकारें चलाती हैं। राज्य सरकार द्वारा संचालित ऐसी ईएसआई सेवाओं की बदहाली से त्रस्त मज़दूर उन्हें लेने से भी कतराते हैं। जबकि आयुष्मान की ड्रामेबाजी पर सरकार लाखों-करोड़ रुपये बर्बाद कर चुकी है और करती ही जा रही है।