आत्महत्या के फर्जी केस में फंसाने की धमकी देकर एसपी ने मांगे 50 लाख

आत्महत्या के फर्जी केस में फंसाने की धमकी देकर एसपी ने मांगे 50 लाख
February 14 14:29 2022

हिसार (म.मो.) फोर्ड व वॉक्स वैगन कारों की एजेंसी व कुछ अन्य कारोबार करने वाले प्रदीप नेहरा ने बाकायदा प्रेसवार्ता द्वारा प्रिंट व सोशल मीडिया को बताया कि किस तरह यहां डीआईजी बनने के बावजूद एसपी का पद सम्भाले बैठे बलवान सिंह राणा ने उन्हें एक आत्महत्या के झूठे मामले में लपेटने की धमकी देकर 50 लाख रुपये की मांग की।

मामले की शुरुआत करीब तीन-चार माह पुरानी है, जब प्रदीप नेहरा के मेंथा तेल कारखाने में करीब साढे सात करोड़ का गबन उनके कुछ कर्मचारियों ने कर दिया था। प्रदीप नेहरा उसकी एफआईआर दर्ज कराने को थाने व एसपी बलवान सिंह के चक्कर काट रहे थे, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं हो रही थी। इसी बीच उनके एक दो वर्ष पूर्व निष्कासित कर्मचारी ने7 फरवरी को आत्महत्या कर ली। वह कार एजेंसी की वर्कशॉप से 33 लाख के स्पेयर पार्ट के गबन में शामिल था जिसका कि बाकायदा थाने में मुकदमा दर्ज है और केस चल रहा है। मरने वाले ने कहीं भी प्रदीप नेहरा को अपनी मौत के लिये जिम्मेदार नहीं ठहराया उसके बावजूद एसपी की कुर्सी घेरे बैठे डीआईजी राणा ने प्रदीप को इस आत्महत्या केस में लपेटने की धमकी दी। उन्हें कई बार तलब किया और अपने एक डीएसपी के माध्यम से अपनी मांग भी रखी।

प्रदीप ने कहा कि उनकी साढ़े सात करोड़ की रिकवरी हो जायेगी तो वे यह मांग भी पूरी कर देंगे। इस पर एक पुलिसकर्मी ने कहा कि यदि साहब के यहां रहते रिकवरी हो गयी तो उसमें एडजस्ट कर लेंगे,फिलहाल तो यह मांग केवल एफआईआर दर्ज करने भर की है। प्रदीप द्वारा साफ मना कर दिये जाने के बाद बलवान सिंह ने उन्हें आत्महत्या वाले केस में लपेटने की धमकी दी थी। प्रदीप ने साफ कह दिया कि वे गिरफ्तार होने से नहीं डरते और न ही जमानत करायेंगे। वे बाकायदा इस सिस्टम से लडऩे के लिये कटिबद्ध हैंं।

बलवान सिंह राणा करीब तीन माह बाद रिटायर होने वाले हैं। रिटायरमेंट से पहले लूट कमाई का मोटा हाथ मारने के लिये वे डीआईजी रैंक में आने के बावजूद एसपी की सीट पर ही जमे बैठे हैं, क्योंकि डीआईजी रैंक में ऐसी कोई तैनाती नहीं है जहां बलवान जाते-जाते लूट कमाई कर सके। लूट कमाई का यह अवसर बलवान को कोई मुफ्त में तो मिला नहीं होगा। इसके लिये तैनाती देने वालों ने भी लूट में से अपना हिस्सा अवश्य तय किया होगा। सवाल गृहमंत्री अनिल विज और ‘भ्रष्टाचार मुक्त हरियाणा’ का दावा करने वाले मुख्यमंत्री खट्टर पर भी उठना लाजिमी है। ऐसे में हिसार रेंज के आईजी साहब क्यों कुंडली मारे बैठे हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप में हाल में एक इन्स्पेक्टर को बर्खास्त कर दिया था? वैसे आत्महत्या के झूठे मुकदमे दर्ज कराना कोई नई बात नहीं क्योंकि झूठ साबित हो जाने के बावजूद भी किसी का कुछ बिगड़ता नहीं। 14 अगस्त 2019 को ‘मज़दूर मोर्चा’ सम्पादक सतीश कुमार पर भी आत्महत्या का झूठा मुकदमा दर्ज किया गया था।

मरने वाले डीसीपी विक्रम कपूर ने अपने सुसाइड नोट में न तो उनका नाम लिखा था और न ही उनकी डीसीपी कपूर से किसी प्रकार का कोई ताल्लुक था। इसके बाद जि़ले भर की पुलिस सारा काम-काज छोड़ कर चार सप्ताह तक उनके पीछे दौड़ती रही। अंत में हाईकोर्ट कोर्ट से अग्रिम जमानत हो गयी और उच्च स्तरीय तफ्तीश करने पर उन्हें पूर्णतया निर्दोष पाया गया। इसके बावजूद झूठे केस में लपेटने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी। यही वह असली कारण है जिसके चलते झूठे केस दर्ज करने वालों के हौंसले व रिश्वत के भाव बढते जा रहे हैं।

इसी सप्ताह बरोत (उत्तर प्रदेश) के तोमर नामक एक व्यापारी ने अपनी मौत के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेवार ठहराते हुए पत्नी समेत जहर खा लिया। पत्नी ने जहर खा कर जान दे दी जबकि खुद तोमर उपचाराधीन है। यह घटना फेसबुक पर लाइव हुयी तथा विभिन्न टीवी चैनलों पर देश भर ने देखी लेकिन नरेन्द्र मोदी पर कोई कार्यवाई तो दूर, किसी ने पूछा तक नहीं।

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Mazdoor Morcha
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