”आजाद नगर में शौचालय होता तो मेरी बहन जिंदा होती”

”आजाद नगर में शौचालय होता तो मेरी बहन जिंदा होती”
September 06 15:25 2022

‘खुले में शौच’ को मजबूर 60 बस्तियां हैं ‘स्मार्ट सिटी’ फरीदाबाद में
”आजाद नगर में शौचालय होता तो मेरी बहन जिंदा होती”

फरीदाबाद। 11 अगस्त को आजाद नगर की मासूम 12 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार और उसकी नृशंस हत्या के विरोध में 16 अगस्त को डीसी कार्यालय पर हुए जबरदस्त जन-प्रदर्शन में मृतका की बहन द्वारा सुबकते हुए बोला ये वाक्य अभी तक जहन में गूंज रहा है। जन-आक्रोश को देखते हुए प्रशासन को जन-असंवेदनशील बने रहना मुश्किल हो गया और 22 अगस्त को डीसी महोदय ने आजाद नगर की उस झुग्गी में जाकर पीडि़ता को 2 लाख का चेक दिया। ये रहम हालाँकि नाकाफी है लेकिन डीसी द्वारा खुद हालात जानना अच्छी बात है। हालाँकि मंत्री जी द्वारा 1 लाख की मदद का आश्वासन अभी तक आश्वासन ही बना हुआ है। महिलाएं रेल पटरियों के किनारे, बाहर खुले में शौच को जाने में अब और ज्यादा घबराने लगी हैं, लेकिन कोई विकल्प नहीं, जाना ही होगा। दहशत इस कदर है, कि महिलाएं अब शौच को झुण्ड बनाकर जाती हैं या पति-पत्नी साथ जाते हैं और बारी-बारी शौच करते हैं! लगभग 3000 राशन कार्ड्स, मतलब 15,000 लोगों की मजदूर आबादी में, इतनी संगीन घटना के बाद भी शौचालय बनाने, अथवा जो हैं उन्हें चालू करने की दिशा में जमीन पर अभी तक भी कोई कदम नहीं उठाया गया है।

इतनी दर्दनाक घटना के बाद भी, शौचालय बनाने के लिए, फरीदाबाद नगर निगम की कोई हलचल जमीन पर दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही। पोर्टेबल शौचालय की व्यवस्था करने के नाम पर, फोटो खिंचवाने और मीडिया को दिखाने के लिए, जो दो डिब्बे वहाँ खड़े किए गए हैं, उनमें पानी नहीं है, एक का दरवाजा भी नहीं खुलता। क्या हरियाणा सरकार का कोई मंत्री या अधिकारी ऐसे शौचालय का इस्तेमाल कर सकता है, जहाँ पानी की व्यवस्था ना हो? मजदूरों को इन्सान क्यों नहीं समझा जाता? उन रेल की पटरियों के पास शौच करने को मजबूर होना, जहाँ हर दो मिनट में तेज रफ्तार गाड़ी गुजरती हो, कितना जोखिम भरा है कोई वहाँ के नागरिकों से पूछे। उड़ती कंकडों से कितने ही लोग, आए दिन गंभीर जख्मी होते रहते हैं। कितने ही पटरी पार करते हुए बे-मौत मारे जाते हैं। इस विषय पर ना सिर्फ ‘मजदूर मोर्चा’ प्रशासन का ध्यान खींचता रहा है और आगे भी खींचता रहेगा बल्कि इसी मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस की 28 अगस्त की विशेष रिपोर्ट, हरियाणा सरकार और मोदी सरकार के ‘समूचे भारत को खुले में शौच मुक्त बनाया’ के बड़बोले दावे पर लानत भेजने वाली है।

देश के मजदूर, जिनके शौच की व्यवस्था नहीं, जो मक्खी-मच्छरों के साथ जिस झोंपड़ी में रहते हैं वो ‘अवैध’ है; ‘अमृत काल’ का क्या जश्न मनाएं!! विडम्बना देखिए, कि ये वही मजदूर हैं जिनके हाथ, सडकों पर दनदनाती चमचमाती गाडिय़ों के सभी कल पुर्जे बनाते हैं। इन्हीं की मेहनत चुराकर कॉर्पोरेट मगरमच्छों के पूंजी के पहाड़ खड़े होते हैं। गाडिय़ाँ बनकर शो रूम में गुडगाँव से पहुंचती हैं, लेकिन उनके अन्दर के सभी कल-पुर्जे फरीदाबाद के इन्हीं मजदूरों के कुशल हाथों का कमाल हैं, जिनकी बच्चियों को रेल की पटरियों के किनारे जान हथेली पर रखकर शौच को जाना होता है और कई बार जिनका लहू-लुहान मृत शरीर वापस लौटता है. क्या भारत को ‘विश्वगुरु’ बनाने के दावे करने वालों को शर्म से डूब नहीं मारना चाहिए!डी सी महोदय खुद, आजाद नगर मजदूर बस्ती का अपना अनुभव हरियाणा सरकार को बताएं। हर तरफ सडकों पर बहता सीवर का बदबूदार पानी, हर तरफ कचरे के भंडार, शौचालय नहीं; ‘स्वच्छता अभियान’ मजदूर बस्तियों तक क्यों नहीं पहुँचाता? ये कैसा ‘अभूतपूर्व विकास’ है?

‘विकास’ का मतलब ‘अडानी विकास’ ही क्यों है? बस्ती के लोग ये सवाल कर रहे हैं. 16 अगस्त को डीसी को दिए गए ज्ञापन की ये मांगें, हरियाणा सरकार त्वरित पूरी करे; ऐसी जन-मानस की ना सिर्फ प्रार्थना है, बल्कि ये मांगें पूरी ना हुईं तो प्रखर जन-आन्दोलन छेड़ा जाएगा, ऐसी उनकी दृढ इच्छा भी है। अपराधियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर न्याय सम्मत दण्ड दिलाएं, पीडि़त परिवार को मदद का दिखावा नहीं बल्कि अपना पति खो चुकी और अब अपनी लाडली बेटी खो चुकी सदमे में डूबी महिला को आजीविका चलाने लायक आर्थिक मदद/ पेंसन देने की व्यवस्था हो, सभी मजदूर बस्तियों में पर्याप्त शौचालयों की व्यवस्था त्वरित की जाए और उनकी नियमित साफ-सफाई का इन्तेजाम हो, नशाखोरी के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाए, सभी महिलाओं खास तौर पर आर्थिक-सामाजिक रूप से कमजोर महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी हो, ‘2022 तक जहाँ झुग्गी वहाँ पक्का मकान’ का वादा मोदी सरकार पूरा करे, न्यूनतम वेतन कानून का पालन कड़ाई से हो और सबसे अहम; मजदूरों को भी इन्सान समझा जाए।

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Mazdoor Morcha
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