प्रदेश का बहुत बड़ा घोटाला साबित होने वाला है प्रापर्टी आईडी कांड

प्रदेश का बहुत बड़ा घोटाला साबित होने वाला है प्रापर्टी आईडी कांड
July 16 03:43 2024

खट्टर ने संघी दोस्त को कराया करोड़ों का फायदा और जांच की आंच भी नहीं आने दी

ऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) खट्टर के संघी दोस्त जयपुर के संजय गुप्ता की याशी कंसल्टेंसी ने प्रदेश में प्रॉपर्टी आईडी बनाने के नाम पर शुद्ध रूप से घोटाला किया। पांच जुलाई को चंडीगढ़ में हुई स्थानीय शहरी निकाय की समीक्षा बैठक में मंत्री सुभाष सुधा को बताया गया कि प्रदेश के 90 स्थानीय निकायों में याशी कंसल्टेंसी ने 48 लाख 14 हजार 777 प्रॉपर्टी आईडी बनाईं तीन साल बाद भी इनमें से महज 12 लाख 13 हज़ार 039 का ही सत्यापन हुआ है। यानी याशी कंसल्टेंसी द्वारा बनाई गई 36 लाख एक हजार 738 प्रॉपर्टी आईडी की आज तक पहचान नहीं हो सकी है।

सुधी पाठकों को बताते चलें कि इतनी बड़ी गड़बड़ी के बावजूद खट्टर ने अपने संघी दोस्त संजय गुप्ता को न केवल 57 करोड़ रुपये का भुगतान कराया, बल्कि नगर निकाय अधिकारियों द्वारा की गईं गंभीर शिकायतों को दरकिनार करते हुए उसे जांच से भी बचाया। चंद महीनों की सैनी सरकार में संघी आकाओं की अनुकंपा पर नए-नए मंत्री बने सुभाष सुधा भी अधिकारियों की शिकायत के बावजूद याशी कंसल्टेंसी के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा सके।

समीक्षा बैठक में अधिकारियों ने मंत्री को बताया कि याशी कंसल्टेंसी ने प्रॉपर्टी आईडी बनाने के लिए तीन साल जो सर्वे किया उसमें प्रॉपर्टी आईडी की संख्या तो हर शहर में लगभग डेढ़ गुणा तक बढ़ा दी लेकिन आईडी में सारी जानकारियां दीं ही नहीं। पूरे प्रदेश में 48 लाख 14 हजार आईडी में से 20 लाख 35 हजार 729 में मालिक का नाम और फोन नंबर नहीं दिए गए हैं। इन प्रापर्टी आईडी का सत्यापन हो ही नहीं पा रहा है। केवल फरीदाबाद में याशी कंसल्टेंसी ने 7 लाख 14 हजार 954 प्रॉपर्टी आईडी बनाईं जबकि इससे पहले नगर निगम के रिकॉर्ड में करीब चार लाख प्रॉपर्टी आईडी थीं। संघी कंपनी की प्रॉपर्टी आईडी रिपोर्ट में 3 लाख 46 हजार 537 यानी लगभग आधी आईडी ऐसी थीं जिनमें मालिक का नाम या फोन नंबर या दोनों ही नहीं दिए गए थे। अतिरिक्त आयुक्त नगर निगम स्वप्निल पाटिल ने बताया कि प्रॉपर्टी आईडी सत्यापन के लिए बीते दो माह में पचास कैंप लगाए जा चुके हैं। इनमें जो भी लोग आवेदन कर रहे हैं उनकी प्रॉपर्टी आईडी की गड़बडिय़ां दुरुस्त कराई जा रही हैं। दो माह से लगाए जा रहे कैंपों में महज 5,238 प्रॉपर्टी आईडी ही दुरुस्त की जा सकी हैं। अभी भी करीब साढ़े चार लाख सत्यापन नहीं हो सके हैं।

नगर निगम के एक अधिकारी ने गुमनाम रहने की शर्त पर बताया कि याशी कंसल्टेंसी ने नब्बे प्रतिशत डेटा फर्जी बनाया है, इससे नगर निगम में पहले से पंजीकृत संपत्तियों की आईडी भी गलत हो गई। इसे सुधारने के लिए या तो संपत्तियों के पुराने रिकॉर्ड पर ही गृहकर वसूला जाए या फिर नए सिरे से सर्वे कराया जाए, याशी कंसल्टेंसी के फर्जी डेटा को सुधारना बहुत की लंबा और खर्चीला काम होगा, बेहतर है कि सरकार कोई दूसरा विकल्प निकाले। यह काम पूरे प्रदेश में किया जाए तभी व्यवस्था दुरुस्त होगी।

बैठक में अधिकारियों ने यह जानकारी भी दी कि याशी कंसल्टेंसी के कर्मचारियों ने मालिकों से सांठगांठ करके आईडी में प्रॉपर्टी की श्रेणियों को ही बदल दिया। उदाहरण के लिए कॉमर्शियल प्लॉट की आईडी आवासीय में बदल दी गई, जिससे उसके गृहकर में काफी कमी हो गई। इसी तरह अवैध रूप से ढाई मंजिल से अधिक बनाई गईं इमारतों की भी प्रॉपर्टी आईडी बना दी गई। प्रापर्टी आईडी मिलने के कारण इन अवैध इमारतों के रजिस्ट्री के रास्ते खुल गए। प्रॉपर्टी आईडी सत्यापन में इस तरह के घपले हर स्थानीय निकाय में बड़े पैमाने पर पाए जा रहे हैं, इससे निकायों को राजस्व का भारी नुकसान हुआ है। याशी कंसल्टेंसी के कारण प्रदेश सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान और गड़बडिय़ां सुधारने में करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, यह जानकारी होने के बावजूद मंत्री सुभाष सुधा ने कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय अधिकारियों पर ही इन्हें चुनाव से पहले दुरुस्त कराने का दबाव डाला, यानी मंत्री को प्रॉपर्टी आईडी की खामियां दूर कराने से ज्यादा विधानसभा चुनाव की चिंता है।

सुधी पाठकों को बीस- तीस साल पुराना वह समय भी याद होगा जब निगम कर्मचारी घर-घर जाकर मौके पर घरों दुकानों, कारखानों आदि का सर्वेक्षण करके रिपोर्ट तैयार किया करते थे। ऐसा नहीं है कि तमाम कर्मचारी सदैव दूध के धुले व ईमानदारी से काम करते थे, हरामखोरी व बेईमानियां उस वक्त भी हो जाया करती थीं लेकिन वो तुरंत ही पकड़ में आ जाया करती थी और संबंधित कर्मचारियों का सजा देने के साथ साथ रिपोर्ट को दुरुस्त भी कर लिया जाता था। यही सब काम कर्मचारियों से अब भी कराया जा सकता था, परंतु इसके लिए एक तो कर्मचारियों के रिक्त स्थान भर कर उनकी संख्या दोगुनी करनी पड़ती और दूसरे खट्टर के संघी मित्र संजय को क्या बचता, करोड़ों की काली कमाई कैसे हो पाती? इसके अलावा आईडी को न केवल ठीक करने बल्कि तुर्त फुर्त के नाम पर, भ्रष्ट कर्मचारियों-अधिकारियों के जो वारे न्यारे हुए वो कैसे हो पाते। विदित है कि इस दौरान उन हजारों लोगों को आईडी ठीक कराने के नाम पर मोटी रिश्वतें देनी पड़ी जिनके प्रॉपटी खरीदने बेचने के सौेद हुए पड़े थे, बयानों का लेनदेन हो चुका था, उनकी यह मजबूरी थी कि हर हाल में निश्चित तिथि पर लेने देने की रजिस्ट्री हो जाए।

लगता है कि पूर्व सीएम खट्टर ने संघी दोस्त संजय गुप्ता को फायदा पहुंचाने की नीयत से प्रॉपर्टी आईडी का खेल किया था। पूरे प्रदेश में स्थानीय निकायों के कर्मचारी ही प्रॉपटी पंजीकरण, आईडी बनाने, गृहकर का निर्धारण-वसूली आदि कार्य करते हैं, वर्षों से काम करने के कारण ये दक्ष भी होते हैं। खट्टर ने इन्हें दरकिनार कर अनुभवहीन याशी कंसल्टेंसी को यह काम सौंपा। खट्टर की नीयत में खोट इसलिए भी लगती है कि अनुबंध की शर्त थी कि कंपनी सर्वे कर जो भी प्रॉपर्टी आईडी बनाएगी, संबंधित नगर निकाय का अधिकारी उस रिकॉर्ड का भौतिक सत्यापन करने के बाद ही कंपनी को कार्य पूर्ण होने का सर्टिफिकेट जारी करेगा।

इस सर्टिफिकेट के बाद ही सरकार कंपनी को भुगतान करेगी। किसी भी जिले में कंपनी के रिकॉर्ड का सत्यापन नहीं हुआ लेकिन अधिकारियों को सर्टिफिकेट जारी करने के लिए मजबूर किया गया। सर्टिफिकेट जारी होते ही खट्टर ने प्रिय संजय गुप्ता को 57 करोड़ का भुगतान कर विदा कर दिया था। खट्टर ने सिर्फ इतना ही नहीं किया संजय गुप्ता पर जांच की आंच न आए इसके लिए अधिकारियों द्वारा दर्ज की जाने वाली आपत्तियों को बाकायदा शासनादेश जारी कर रिकॉर्ड पर नहीं लिया गया।

दागी कंपनी को दिया सत्यापन का काम
याशी कंसल्टेंसी की करतूतों पर पर्दा डालने के लिए खट्टर सरकार ने नवंबर 2023 में गुडग़ांव की दागी कंपनी सिंप्लेक्स सोल्यूशंस को प्रापर्टी आईडी सत्यापन का काम सौंपा था। ये वही कंपनी है जिसे याशी कंसल्टेंसी से पहले प्रॉपर्टी आईडी बनाने का ठेका दिया गया था। इसके कर्मचारी भी घर बैठे कागजों पर प्रापर्टी आईडी बना रहे थे, लगभग सभी स्थानीय निकायों के जोनल टैक्सेशन ऑफिसरों ने कंपनी की इस हेराफेरी की शिकायत की थी, जिस पर सरकार ने इसे डीलिस्ट कर दिया था। नवंबर 2023 में सरकार ने इसे याशी कंसल्टेंसी की प्रॉपर्टी आईडी सत्यापन का ठेका दिया है। छह महीने से अधिक का समय बीत जाने के बावजूद इस कंपनी ने अभी कहीं भी कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है। अब स्थानीय निकायों को ही कैंप लगाकर और डोर टू डोर सर्वे कराकर सत्यापन करना पड़ रहा है। नगर निगम के कर्मचारियों को आशंका है कि खट्टर की ही तरह सैनी सरकार भी सिंप्लेक्स सोल्यूशंस को बिना काम के ही भुगतान कर देगी।

view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles