फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शिक्षामंत्री सीमा त्रिखा बयान देती हैं कि अभिभावकों का सरकारी स्कूलों पर बहुत विश्वास है यही कारण है कि इनमें बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है, दूसरी तरफ उनकी सरकार प्रदेश के 337 प्राथमिक विद्यालय पूर्ण रूप से बंद कर रही है। फरीदाबाद का भी एक स्कूल सरकार के आदेश के तहत बंद किया गया है। हालांकि हरियाणा प्राइमरी टीचर ऐसोसिएशन व अन्य शिक्षण संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार 25 से कम विद्यार्थी संख्या वाले प्राथमिक स्कूलों को सरकार ने बंद करने का निर्णय लिया है। शिक्षा मामलों के जानकार इस फैसले को सरकारी स्कूलों को धीरे धीरे बंद करने की नीति के तहत उठाया गया एक कदम मान रहे हैं। सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए वो बताते हैं कि प्रदेश में 355 प्राथमिक स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है और 838 स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। जिन विद्यालयों में केवल एक शिक्षक है उसे भी आए दिन गैर शैक्षणिक कार्या जैसे बीएलओ ड्यूटी, टीकाकरण, मिड डे मील जैसे एक दर्जन से अधिक काम में लगा दिया जाता है। जब सरकार इन स्कूलों में शिक्षक तैनात नहीं करेगी तो अभिभावक क्यों बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराएंगे।
सुधी पाठकों को बताते चलें कि अगस्त 2022 में पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने खुद स्वीकार किया था कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के स्वीकृत लगभग 30 हजार पद खाली हैं। हालांकि उन्होंने इन खाली पदों को अनावश्यक करार देते हुए कहा था कि केवल 15 हजार अतिरिक्त शिक्षक और चाहिए। खट्टर की बातों का सार यही निकलता है कि सरकार धीरे धीरे सरकारी स्कूलों को बंद करने पर तुली है। खैर, खट्टर की ही मानें तो करीब 15 हजार शिक्षकों की तो कमी है लेकिन सरकार उन्हें भी नहीं भर रही है।
स्कूल बंद करने की नीयत से ही सरकार ने शिक्षकों को मनचाही जगह पर पोस्टिंग करने की चाल चली। हुआ ये कि प्राथमिक स्कूलों में पहले ही शिक्षक कम थे और जब सरकार ने मनचाही जगह पर पोस्टिंग खोल दी तो दूर दराज गांवों में या ढाडिय़ों में स्थित स्कूलों के शिक्षकों ने शहर में ट्रांसफर करा लिया। नतीजा ये हुआ कि दूर दराज के स्कूल शिक्षक विहीन हो गए। हालांकि शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार प्राथमिक कक्षा में पढऩे वाले बच्चों का स्कूल एक किलोमीटर से दूर नहीं होना चाहिए, लेकिन सरकार की इस पॉलिसी के कारण टीचर नहीं होने से बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी। शायद सरकार भी यही चाहती है, इसीलिए 337 प्राथमिक स्कूलों को बच्चे न होने का बहाना बना कर बंद करने का फैसला लिया है। सरकार के इस फैसले का शिक्षक संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है। हरियाणा प्राइमरी टीचर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष व जिला प्रधान चतर सिंह ने बताया कि एसोसिएशन ने सरकार के इस निर्णय का विरोध किया है, सरकार से मांग की जा रही है कि सभी प्राथमिक स्कूलों में टीचर व प्रिंसिपल के सभी खाली पद भरे जाएं। प्राथमिक शिक्षक संघ हरियाणा ने भी सरकार को चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने फैसला वापस नहीं लिया तो आठ जुलाई से जिला स्तरीय धरने दिए जाएंगे, बात नहीं मानी गई तो 21 जुलाई को मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया जाएगा।
गरीबों को शिक्षा से वंचित करने के लिए स्कूलों को बंद करने का सरकार का यह सोचा समझा षणयंत्र है। पहले सरकारी स्कूलों को संसाधनों से वंचित किया जाए, दशकों पहले बनी इमारत की न मरम्मत कराई जाए न ही नए कमरे बनवाए जाएं ताकि जर्जर स्कूल में अभिभावक अपने बच्चे को दाखिला न दिलाएं, यदि गलती से दाखिला दिला भी दिया जाए तो वहां शिक्षकों को तैनात न किया जाए। और जब ऐसे स्कूल में बच्चे आना बंद कर दें तो इसका बहाना बना कर सरकार उन स्कूलों को बंद कर दे। बल्लभगढ़ ब्लॉक में बीस से अधिक ऐसे निजी स्कूल हैं जिनमें पढ़ाने के लिए आस पास के दर्जनों गांवों के अभिभावक अपने बच्चों को निजी संसाधनों से भेजते हैं, क्योंकि उनके गांव के सरकारी स्कूलों में सरकार ने पढ़ाई की कोई व्यवस्था छोड़ी नहीं है।
मजे की बात ये है स्कूल बंद होते जा रहे है बच्चे घटते जा रहे हैं; लेकिन सरकार का बजट बढ़ता जा रहा है। बढ़े हुए बजट से स्कूलों का विकास हो रहा है विकास ऐसा हो रहा है जिसका शिक्षा के प्रसार से कोई लेना देना नहीं। स्कूलों के आधारभूत और आवश्यक मानव संसाधन पर खर्च करने के बजाय सरकार कहीं टेबलेट खरीद रही हैं कहीं पुस्तकें छपवाई जा रही हैं, कहीं कुछ और हो रहा है, सब हो रहा है लेकिन शिक्षा और शिक्षा व्यवस्था सुधारने का कोई काम नहीं हो रहा है।