हरियाणा की भाजपाई सरकार ने चुनावी बिसात बिछाई सरपंचों के खाने-कमाने के लिये खजाने के मुंह खोल दिये

हरियाणा की भाजपाई सरकार ने चुनावी बिसात बिछाई सरपंचों के खाने-कमाने के लिये खजाने के मुंह खोल दिये
July 09 04:48 2024

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिस कदर सरपंचों के संगठित विरोध को झेलना पड़ा था उससे निपटने के लिये मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने, पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर द्वारा लागू किये गये ई-टेंडरिंग के शिकंजे को काफी हद तक ढीला कर दिया है। विदित है कि पहले विकास के नाम पर पंचायतों को मिलने वाला सारा पैसा सरपंच खुद खर्च करते थे। खट्टर ने सरपंचों के मुंह पर छींकी लगाते हुए ई-टेंडरिंग का नियम बनाया था। इसके विरोध में राज्य भर के तमाम सरपंच संगठित होकर सरकार से भिड़ गए थे।

लोकसभा चुनाव में हुईभाजपा की दुर्दशा को देखते हुए ई-टेंडरिंग नियम को काफी हद तक ढीला करते हुए 21 लाख रुपये तक के काम बिना ई-टेंडरिंग कराने की छूट सरपंचों को दे दी है। सरपंचों पर आरोप रहता है कि वे विकास कार्यों के नाम पर मिलने वाले धन की बंदरबांट करके हजम कर जाते हैं। उधर सरपंचों का कहना है कि ई-टेंडरिंग के माध्यम से भी तो यही होना है, बंदरबांट की बजाय दो-चार अधिकारी और मंत्री ही सारा माल डकार जाएंगे।

ग्रामीण परिवेश से आने वाले नायब सिंह सैनी बखूबी समझते हैं कि सरपंच बनने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं और कितना भारी खर्चा करना पड़ता है। कोई विरला ही ईमानदार एवं दूध का धोया व्यक्ति होता है जिसे ग्रामीण बिना किसी जद्दोजहद के सरपंच बनाते हैं। केवल ऐसे ही सरपंच पूरी ईमानदारी से सरकारी पैसे को विकास कार्यों पर खर्च करते हैं। इस संवाददाता ने करीब 20 वर्ष पूर्व फकीरचंद नामक ऐसा एक सरपंच बल्लबगढ़ ब्लॉक के गढख़ेड़ा गांव में देखा था। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि उस सरपंच से इलाके का विधायक, बीडीपीओ, पंचायत सचिव आदि सब दुखी रहते थे क्योंकि वह न तो खाता था न खिलाता था और न ही किसी की हाजिरी भरता था।

अधिकतर सरपंचों की आर्थिक जरूरतों को समझते हुए मुख्यमंत्री सैनी ने समय रहते सरपंचों के लिये सरकारी खजाने के मुंह खोल दिये हैं। उन्हें न केवल ई-टेंडरिंग में ही ढील दी गई है बल्कि और भी कई तरह से लाभान्वित करने का प्रयास किया गया है।

सीएम नायब सैनी ने सरपंचों को बगैर ई-टेंडरिंग के 21 लाख तक के काम कराने का अधिकार देने की घोषणा की, पहले यह लिमिट 5 लाख रुपये थी। लेकिन यह शर्त लगा दी कि जो भी ग्रांट मिलेगी उसका पचास प्रतिशत खर्च ई टेंडरिंग के माध्यम से होगा। चुनावी वादों की तर्ज पर सरपंचों के लिए टीए/डीए की भी घोषणा की। ग्राम पंचायतों के लिए उन्हें 16 किलोमीटर प्रति किलोमीटर की दर से टैक्सी का किराया दिया जाएगा। उन्हें खुश करने के लिए ग्राम सचिव की एसीआर पर टिप्पणी करने का अधिकार भी दिया, इस टिप्पणी का सचिव के कॅरियर पर क्या असर होगा, यह नहीं बताया। पंचायत से संबंधित कोर्ट केस के लिए सरपंचों को दिए जाने वाले खर्च की राशि जिला स्तर पर 55 सौ, और हाईकोर्ट व सु्प्रीम कोर्ट की फीस 33 हजार रुपये कर दी गई है।

मूर्ख जनता को बहकाने के लिए धूर्त शासक इसी तरह के हथकंडे अपनाते हैं। जनता की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के बजाय कुछ ठोंडों को पाल कर उनको भी मलाई मेें हिस्सा देकर वोट जुगाडऩे का प्रयास किया जाता है। बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल, मरीजों के इलाज के लिए अस्पताल बनाने के लिए धन का अभाव हो सकता है लेकिन वोट खरीदने के लिए इन धूर्त शासकों के पास धन की कोई कमी नहीं रहती।

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Mazdoor Morcha
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