मज़दूर मोर्चा ब्यूरो छठवीं बार संसद पहुंचे पूर्णिया के ज़मीदार खानदान के पप्पू यादव का राजनीतिक सफर 14 जून 1998 को हुई माकपा विधायक और सामंतवाद के घोर विरोधी अजीत सरकार की हत्या के बाद थम गया था।
अजीत सरकार की हत्या 14 जून 1998 को उस समय हुई जब वह अपने साथी अशफुल्ला खान और चालक के साथ बाजार में घूम रहे थे। हत्यारों ने तीनों को घेर कर अत्याधुनिक हथियारों से चंद सेकेंडों में ही सैकड़ों गोलियां मारी थीं। अजीत सरकार को 107 गोलियां लगी थी, घटना में उनका चालक और साथी भी मारे गए थे। इस हत्या कांड में पप्पू यादव मुख्य अभियुक्त बने थे। सीबीआई की विशेष अदालत ने 2008 में उन्हें दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2013 में हाईकोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए पप्पू यादव को बरी कर दिया था।
अजीत सरकार विधायक होने के बावजूद सादा जीवन जीते थे, उनके चुनाव लडऩे की शैली भी निराली थी, चुनाव लडऩे के लिए बाजार में कपड़ा बिछा कर एक रुपया चंदा मांगते थे इससे ज्यादा किसी से नहीं लेते थे। बिना सुरक्षा के ही आम जनता के साथ बाजार में घूमना और गरीब, कमजोर जनता के हित में काम करना। उनकी यही कार्यशैली पूर्णिया के ज़मी़दार- सामंत-पूंजीपतियों की परेशानी और गुस्से का सबब बनी। अंतत: ज़मींदार- सामंतों की नाराजगी उनकी हत्या का सबब बनी।