ज्योतिषाचार्य हरिमोहन झा

ज्योतिषाचार्य हरिमोहन झा
June 30 05:48 2024

गांव में दो ज्योतिषि थे। एक खट्टर झा व दूसरा फोंचाई झा। दोंनों ज्योतिषि अगाध विद्वान, लेकिन एक ईर घाट तो दूसरा वीर घाट। एक जो बोलता दूसरा उनके विरुद्ध। एक बार गांव के जमींदार भोला बाबू को मुकदमे के तारीख में दरभंगा जाना था। फोंचाई झा को शुभ मुहूर्त देखने के लिये बुलाया। उन्होंने पतरा खोलते हुए कहा कि सोमवार को पूर्व दिशा में दिक्शूल होगा। इसलिये रविवार को ही विदा हो जाइए। ऐसा सुनते ही खट्टर झा कहने लगे रविवार के दिन यात्रा करने से मार्ग में अर्के क्लेशमनर्थकंच गमने…। यात्रा में क्लेश है, कभी भी कार्य सुफल नहीं होगा और मृत्यु भी निश्चित है। दोनों पंडित में काफी मल्लयुद्ध हुआ और इससे भोला बाबू का मन भटक गया। उन्होंनेे न रविवार को यात्रा की न सोमवार को, अदालत में दुश्मन पार्टी को एकतरफा डिग्री मिल गई।

एकबार और भारी तमाशा हुआ। गांव के बंगटू बाबू के बेटा का दो जगह से रिश्ता आया। बंगटू बाबू ने कहा कि मुझे रुपये की लालच नहीं, भगवान ने हमें बहुत दिया है, दोनों कन्या में जिसकी कुंडली उत्तम होगी उसी से शादी होगी। बस, दोनों ज्योतिषि बुलाये गये। दोनों एक दूसरे से जूझने लगे। खट्टर झा पुबारी गांव वाली कन्या का पक्ष ग्रहण किये और फोंचाई झा पछबारी गांव वाली कन्या का। अब दोनों ज्योतिषियों में शास्त्रार्थ के साथ महाभारत चालू हो गया। खट्टर झा कहने लगे कि पछबारी गांव वाली कन्या से शादी होने पर कोई संतान नहीं होगी और विधवा हो जायेगी क्योंकि ये सर्प योनि है और वर नकुल योनी अर्थात वर कन्या को खा जा जायेगा। फोंचाई झा कहने लगे कि पुरबारी कन्या के कुंडली में गण का विचार करने पर राक्षस वर्ण है ये कन्या तो शादी के छ: महीने के भीतर ही अपने पति को खा जाएगी और वेश्या हो जायेगी। ज्योतिषियों द्वारा ऐसी भविष्यवाणी सुनकर बंगटू बाबू ने दोनों रिश्ते अस्वीकार कर दिये। संयोगवश उस वक्त वहां दोनों पक्ष के कन्यागण मौजूद नहीं थे, नहीं तो दोनों ज्योतिषाचार्य को दक्षिणा भी मिल ही जाती।

एक बार ऐसा संयोग हुआ कि दोनों ज्योतिषिजी एक बरात में सम्मिलित हुए। खट्टर झा के विद्यार्थी आदित्यनाथ, और फोंचाई झा के विद्यार्थी मात्र्तण्डनाथ। ये दोनों शिष्य भी युद्ध करने में प्रचण्ड, विद्या-बुद्धि में ऊपरा-ऊपरी। उस बारात में एक वेश्या भी जा रही थी, उसे देख मात्र्तण्डनाथ ने पूछा कि ये कौन है? आदित्यनाथ ने कहा कि ये गणिका है। इस पर दोनों विद्यार्थी को यात्रा का श्लोक याद आ गया।

अग्रधेनु: सवत्सा वृषगजतुरंगा दक्षिणावत्र्त वहि।
दिव्यस्त्री पूर्णकुम्भो द्विजवरगणिका पुष्पमाला पताका
गणिका को स्पर्श करने से यात्रा बन जाए, जिसमें एक ही साथ रजत, कांचन, शुक्लवर्ण, पुष्पमाला सबका स्पर्श होने से। ऐसा विचार कर दोनों मेधावी छात्र वेश्या के सम्मुख पहुंच कर उपर्युक्त श्लोक पढ़ते हुए उसका एक-एक अंग का स्पर्श करने लगे, वामा भाग आदित्यनाथ व दायां भाग मात्र्तण्डनाथ। वेश्या भौंचक! तब तक ये दोनों वेश्या के चन्द्रहार पर हाथ रख दिये, वो चित्कार करने लगी, चारों तरफ से लोग इक्क_ा हो गये, तब दोनों देवज्ञ अपना परिचय दिये तब सभी लोग समझ गये कि ये एक जोड़ा नमूना है। गण की बात पर गणिका भी हंसने लगी। इन दोनों विद्यार्थी को इतना फल जरूर मिला कि सम्पूर्ण बरात में प्रख्यात हो गये।

एक दिन खट्टर झा तेल लगा रहे थे कि आदित्यनाथ ने आकर एक मुट्ठी  मिट्टी लाकर तेल में डाल दी। अब गुरू को तारण-दण्ड उठा किन्तु शास्त्र के आगे उनका शस्त्र व्यर्थ हो गया। आदित्यनाथ कहने लगे, गुरू आज मंगल के दिन तेल लगाने से आपकी मृत्यु हो जायेगी, आप ही पढ़ाए हैं कि तैलाभ्यड्.गेरवौ ताप:सोमे शोभा कुजे मृति: इसीलिये तेल में मिट्टी मिला दिये। ये भस्मासुर वाला प्रयोग देख गुरू आदित्यनाथ के बाप को बुलवाये, वो अक्खड़ देहाती। बोला कि महाराज, जब आपका शास्त्र सत्य है तो मेरा बालक सही किया, आप उलाहना क्यों दे रहे हैं और अगर आपके शास्त्र में झूठ लिखा है तो उसे पढ़ाया ही क्यों?

ज्योतिषिजी बाप का गुस्सा बेटा पर उतारते हुए बोले कि तुम्हारी कुंडली देखकर तुमको पढ़ाएंगे। आदित्यनाथ घर से अपनी कुण्डली ले आया। ज्योतिषीजी गुरू, मीन, मेष करते बोले कि तुम्हारे भाग्य में विद्या नहीं है तो हम व्यर्थ परिश्रम क्यों करें? तुम यहां से जाओ। अब आदित्यनाथ फोंचाई झा की पाठशाला में पहुंचा। फोंचाई झा कहने लगे ऐसा हो ही नहीं सकता तुम्हारी कुंडली कहती है कि तुम गुरू से भी आगे निकलोगे। उस दिन से आदित्यनाथ नित्य फोंचाई झा की पाठशाला में पढऩे लगा। आदित्यनाथ मात्र्तण्डनाथ से मिला दोनों मेें पहले की तरह बराबर अफरा-तफरी अपनी विद्वता को लेकर लड़ाई-झगड़ा होता रहता था।

एक दिन बढिय़ा यात्रा देखते हुए रविवार को ज्योतिषी जी दोनों शिष्य को लेकर खेत में ईख उखाडऩे गये। वहां चार हाथ का गेहुअन सांप गुरू के पैर में लिपट गया। गुरूजी कहने लगे अरे अभगला सब बचाओ,तब तक सांप ने हाथ मे डंस लिया। गुरू सर्पदंश से चित्कार करने लगे। आदित्यनाथ अलग से ही कहने लगा, गुरू अब आपका गरुड़ वाला प्रभाव क्या हुआ? तब गुरूजी रोते-कलपते हुए कहने लगे अरे अभगला, शास्त्रार्थ बाद में करना, अभी दवा-उपचार का प्रबन्ध करो। अब मात्र्तण्ड कहने लगा, गुरु अब कोई झाड़-फूंक या दवा काम नहीं करेगी। कारण, कि विशाखा नक्षत्र में काटा हैऔर आपही पढ़ाये हैं,कि य:कृतिकामूलमधाविशाखा सार्पान्तकार्दासु भुजंगदष्ट:। अब साक्षात गरुड़ भी आकार आपके प्राण की रक्षा नहीं कर सकते, हम आपकी अंत्येष्टि क्रिया का प्रबन्ध करने जा रहे हैं।

अब आदित्यनाथ गुरू की कुंडली देखने लगा और मात्र्तण्डनाथ गुरूआइन की। अब मात्र्तण्ड कहने लगा कि गुरूआइन की कुण्डली में कहीं भी वैधव्य नहीं लिखा है। आदित्यनाथ कहने लगा कि गुरू को भारी मारकेश लगा है। दोनों विद्यार्थी में भारी शास्त्रार्थ छिड़ गया। अब गुरूआइन बेचारी रोते-बिलखते कहने लगी कि तुम लोग शास्त्रार्थ बाद में करना अभी गुरू का दवा-उपचार आदि करवाओ। अब दोनों सुयोग्य विद्यार्थी कहने लगे कि यदि गुरू के ग्रह प्रतिकुल होंगे तो कोई दवा काम नहीं करेगी और यदि ग्रह अनुकूल है तो दवा का प्रयोजन क्या?

इसके बाद गुरूजी झाड़-फूंक, दवा-आदि करवा कर घर पहुंचे। आते ही दोनों मेधावी विद्यार्थी को गुरुहत्या का प्रायश्चित लिख दिये, अब दोनों विद्यार्थी आत्मग्लानि से आत्महत्या करने को तैयार हो गये। तब तक विशाखा नक्षत्र से अनुराधा नक्षत्र लग गया, अब दोनों विद्यार्थियों ने देखा कि इस नक्षत्र में रविवार के दिन निकलने पर मृत्युयोग है। अतैव कुंआं या नदी में डूब कर मरने से अच्छा होगा कि इसी नक्षत्र में यात्रा की जाए, इस योग में मृत्यु निश्चित है। ऐसा विचार कर दोनों विद्यार्थी उसी क्षण निकल पड़े। अब आगे ऐसा हुआ कि मात्र्तण्डनाथ तो गांव जाकर खेती करने लगा और आदित्यनाथ एक प्रसिद्ध शहर में जाकर कुछ ही दिन में सिद्धजी बन कर सात हाथ का साइन बोर्ड बनवाया। यदि फलित ज्योतिष का चमत्कार देखना है तो यहां आइये और श्री 108 त्रिकालदर्शी सिद्धजी से अपना अभीष्ट सिद्ध कराइये। यहां जप, पूजा, अनुष्ठान और तंत्र के द्वारा सभी मनोरथ सिद्ध किये जाते हैं।

तदन्तर निम्नलिखित विज्ञापन इस प्रकार था
1.शान्ति कवच-त्रिकालदर्शी सिद्धजी ने नवों ग्रहों से समझौता करके एक ऐसे यंत्र का आविष्कार किया है कि इच्छामात्र से सभी कार्य सिद्ध हो जाता है। मूल्य-1100।
2.गर्भ कवच-मूल्य 501।
3. परीक्षा कवच। इसके धारण से मंद बुद्धि परीक्षार्थी भी पास कर जाता है। मूल्य-501।
4. जीविका यंत्र-इसके प्रभाव से अच्छी नौकरी मिलती है-जितने अधिक पावर का लिया जायेगा उससे दोगुना वेतन मिलेगा जैसे 1000 रुपये का यंत्र लेने पर 2000-3000 रुपये तक।
5. विजय यंत्र- इसके प्रयोग से हाकिम की बुद्धि पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि लिखा हुआ फैसला भी बदल जाता है। व्यापार यंत्र-इसके प्रयोग से तेजी-मंदी पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ता है           कि व्यापारी को मनचाहा फल मिलेगा।

मृत्युंजय मंत्र-इससे मृत्यु के मुंह में पड़ा हुआ रोगी भी बचा लिया जाता है। दक्षिणा 1001।
एक दिन संयोगवश मात्र्तण्डनाथ घूमते-फिरते इस शहर में आ पहुंचे। उपयुक्त साइनबोर्ड और विज्ञापन देख चकित रह गये। तब देखा कि दाढ़ी बढ़ाये, भगवा पहने, लाल टीका लगाये आदित्यनाथ खड़ाऊं पहने आ रहा है। मात्र्तण्डनाथ इतने समय बाद अपने साथी को देख कर उससे गले मिलते हुए पूछा, साथी, तुम अपना ये वेष बना कर क्या काम करते हो? आदित्यनाथ पीछे हटते हुए कहने लगा-चुप-चुप हम यहां सिद्धजी कहलाते हैं, अभी तुम मेरे कार्यालय में बैठकर मेरा तमाशा देखो हम रात में तुम से मिलकर सब हाल कहेंगे। वहां मात्र्तण्डनाथ ज्योतिष कार्यालय का ठाठ-बाट देख गुम हो गये।

वहां वैद्यजी अपना पत्नी के लिये गर्भकवच लेने आये थे, एक विद्यार्थी परीक्षा कवच लेने के लिये बैठा था, एक सेठजी मंदी-तेज़ी समझने के लिये व्यग्र है, एवं प्रकार कोई बीमारी के मारे कोई मुकदमे के हारे, कोई नौकरी के लिये, कोई शगुन कराने के लिये। वहां कितनेे आए और कितने गए। सिद्धजी ने किसी को यंत्र दिया तो किसी को कवच, किसी को भस्म की पुडिय़ा, किसी को एकांत में आने को कहा। रात 11 बजे तक इसी तरह लोगों की भीड़ जमा होतीे रही। रात 12 बजने पर जब दोनों बाल संगी खा-पीकर निश्चिंत हुए तब सिद्धजी कहने लगे। देखा तमाशा? कैसे रुपया झड़ता है? अभी तक तो हम गिन ही नहीं पायें हैं कि कितना रुपया आया है।

मात्र्तण्डनाथ कहने लगा, साथी, तुमने इतनी ठगविद्या कहां सीखी? ऐसा नाटक पसारे हो इसे लोग नहीं समझ रहे हैं? सिद्धजी-यहां पर ऐसे-ऐसे लोग पहुंच रहें हंै कि वो अपनी गरज में अन्धे हैं। जिसका कार्य सिद्ध हो जाता है वो समझता है कि मेरे ही प्रसाद से हुआ। जिसका नहीं होता है वो अपना भाग्य का दोष देकर घर चला जाता है। सिद्धजी ने अभिमानपूर्वक एक बड़ा पोथा मात्र्तण्ड के सामने पटकते हुए कहा-देखो कैसे-कैसे सर्टिफिकेट हैं। ये कलक्टर साहब का, ई कमिश्नर साहब का, ये जज साहब का, ई सदर आला साहेब का, जब ये सब छपेगा तो देखना। मात्र्तण्ड कहने लगा, ए साथी, ऐसे-ऐसे लोगों को तुम कैसे बेवकूफ बना देते हो? सिद्धजी अंगड़ाई लेते हुए कहने लगे कि बात बनाने की भी एक बुद्धि होती है, हम ऐसे अंदाज से फल कहते हैं कि प्राय: दस में पांच बातें मिल ही जाती हंै। देखो कल हलवाई मुकदमा जीत गया तो एक थाल मिठाई दे गया, कल सिनेमा के मैनेजर को बेटा हुआ तो मुफ्त में ही टिकट भेज दिया। यहां के जितने भी बड़े लोग वकील-मुख्तार सब मेरे जजमान ही हैं दुकानदार सब चेले ही हैं जिस सामान की जरूरत पड़ती है मुफ्त में ही मिल जाता है जिधर जाते हैं उधर ही चढ़ौना चढ़ता है।

मात्र्तण्ड कहने लगा-साथी, हम तो गोलाध्याये में लटके रह गये और तुम तो त्रिकालदर्शी बन गए, ज्योतिष का फल दूसरे को मिले या नहीं तुमको तो खूब फलित हुआ। सिद्धजी गर्व से कहने लगे कि यहां नित्य दस-बीस ब्राह्मण का पुरश्चरण दिला देते हैं। सब ह्रीं-ख्रीं करते हलवा-पूड़ी खाते हुए मेरी जय-जयकार मनाते हैं , तुमको भी महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान दिला देंगे अच्छी कमाई होगी। गांव पर जाकर धान-खेसारी काटोगे इससे अच्छा है कि यहीं लड्डू खाओ। थोड़ा आडम्बर करने आ जायेगा तो तुमको तांत्रिकजी कह कर प्रसिद्ध कर देंगे।
मात्र्तण्ड कहने लगा-बस, अब अपने घर का हाल-चाल कहो। सिद्धजी कहने लगे-साथी, तुम से क्या छिपाना, परिवार के दुख से तंग हैं। छोटे भाई को एक कपड़ों का दुकान खुलवाई लेकिन उसने सब पूंजी ही डुबो दी। भतीजे का नाम अंग्रेजी स्कूल में लिखवाया लेकिन वो तीन साल से फेल ही हो रहा है, स्त्री बराबर बीमार ही रहती है और संतान सुख भी नहीं मिला। तब तक एक व्यक्ति घबराये हुए आकर कहने लगा-सिद्धजी, भारी अनर्थ हो गया, आज ग्यारह दिन से जिसका पुरश्चरण हो रहा है उसके घर में कोहराम मचा है लग रहा है वो नहीं बचा। सिद्धजी कहने लगे तुम भारी बेवकूफ हो हम तो कहे थे कि पूरा दक्षिणा पहले हथिया लो, अब तो एक कौड़ी भी नहीं देगा।

मात्र्तण्ड थोड़ा देर गुम हो कर कहने लगा-साथी, हमको जाने दो मेरे से ये छल विद्या नहीं हो पाएगी। इतना झूठ बोलकर पैसा उपार्जन करने से घर पर रह कर खेती करना भला है। अब सिद्धजी कहने लगे-तुम भारी देहाती बेवकूफ ही रह गए। इस झूठ से संसार में कोई नहीं बचा है। वैद्य फीस लेकर शरीर को शान्ति देता है और हम फीस लेकर आत्मा को शान्ति देते हैं। अब मात्र्तण्ड ने गांव की यात्रा स्थगित की। दूसरे दिन सिद्धजी के आश्चर्य ज्योतिष कार्यालय में एक नवीन विज्ञापन दृष्टिगोचर हुआ।

तान्त्रिकाचार्य-मौनी बाबा श्री मात्र्तण्डनाथ स्वामी आप बारह वर्षों तक हिमालय की कंदरा में तपस्या करने के अनन्तर नगरवासियों के सौभाग्य से यहां पधारे हैं। आप, हस्त रेखा और मुखाकृति देखकर ही संकेत द्वारा पूर्व जन्म और पर जन्म का वृत्तांत बता देते हैं। जिन सज्जनों को अपना भूत-भविष्य जानने की इच्छा हो, वे महात्माजी के दर्शन से लाभ उठावें।

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Mazdoor Morcha
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