फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) किसी भी कल्याणकारी सरकार का प्रथम दायित्व अपने नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा के बाद शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी करना होता है। हरियाणा की डबल इंजन की सरकार ने अपने इन तीनों दायित्वों से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है।
शिक्षा के नाम पर आए दिन ङ्क्षढंढोरा पीटने वाली हरियाणा सरकार जनता को बहकाती रहती है। उसने सैंकड़ों महाविद्यालय खोल दिये हैं। उन महाविद्यालयों में फिलहाल स्टाफ की स्थिति को नज़र अंदाज भी कर दिया जाए तो भी वहां छात्रों के लिये पर्याप्त सीटें नहीं हैं। हाल ही में प्रकाशित समाचारों के अनुसार फरीदाबाद के चार सह शिक्षा महाविद्यालयों में उपलब्ध 1500 सीटों के लिये 2500 छात्रों ने दाखिले के लिये आवेदन किया है। ये आवेदन तो केवल बीए पाठ्यक्रम के लिये हैं। बीबीए, बीसीए, एमबीए आदि पाठ्यक्रमों के लिये तो मारा-मारी और भी अधिक है क्योंकि ये पाठ्यक्रम सीधे रोजगारपरक समझे जाते हैं।
विदित है कि साधन सम्पन्न व अधिक योग्य छात्र दिल्ली स्थित विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने को प्राथमिकता देते हैं। जाहिर है कि उनकी नज़रों में यहां के शिक्षण-संस्थान अपेक्षाकृत निम्न स्तरीय समझे जाते हैं। यहां तो केवल मजबूरी में ही दाखिला लेना पड़ता है। दुर्भाग्यवश जब यहां भी दाखिला न मिले तो छात्र बेचारे कहां जाएं? ऐसे में वे शिक्षा के व्यापारियों के चंगुल में फंसते हैं। इससे भी दुखदायी बात तो यह है कि पत्राचार तथा प्राइवेट रूप से पढ़ाई करना भी सरकार ने अत्यधिक महंगा कर रखा है। पत्राचार द्वारा पढ़ाई करने वाले छात्रों से, कॉलेज में पढऩे वाले छात्रों से कहीं अधिक वसूली की जाती है। वैसे तो सरकार ढोल हर जिले में मेडिकल कॉलेज का पीटती हैं लेकिन उससे साधारण कॉलेज भी नहीं चलाए जा रहे हैं।
जाहिर है सरकार ने भी शिक्षा को लूट कमाई का अच्छा धंधा बना लिया है। इस काले धंधे में केंद्र सरकार की इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी सबको मात दे रही है। एक जमाना था कि सरकार शिक्षा पर खर्च किया करती थी और अब सरकार इससे काली कमाई कर रही है। स्कूलों की स्थिति भी इससे कोई भिन्न नहीं है। वहां भी 100 सीटों के लिये हजार आवेदन आते हैं। इस स्थिति के बावजूद सरकार ड्रामेबाजी करते हुए शिक्षकों को आदेश देती है कि वे अधिक से अधिक बच्चों को स्कूलों में प्रवेश करायें। स्कूल व कॉलेजों की संख्या बढ़ाने की बजाय सरकार खोखली घोषणाओं पर अधिक जोर लगाती है। सरकार की इस जनविरोधी नीति के चलते शिक्षा केवल साधन-सम्पन्न लोगों के लिए ही रह गई है।