‘स्मार्ट’ जलापूर्ति : जनता त्रस्त, एफएमडीए मस्त, नगर निगम पस्त

‘स्मार्ट’ जलापूर्ति : जनता त्रस्त, एफएमडीए मस्त, नगर निगम पस्त
June 16 01:34 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) गर्मी के मौसम में शहर की जनता पेयजल के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है लेकिन उसे पानी देने के बजाय नगर निगम और फरीदाबाद मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एफएमडीए) अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ कर एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। मोटी तनख्वाहें ले रहे निकम्मे अधिकारियों की फौज के बावजूद शहर के बड़े हिस्से में कई कई दिन पानी नहीं मिल रहा है। निगम अधिकारियों का आरोप है कि एफएमडीए पानी नहीं दे पा रहा है, एफएमडीए अधिकारी कह रहे हैं कि पानी तो पर्याप्त मात्रा में दिया जा रहा है लेकिन निगम आपूर्ति नहीं कर पा रहा। इन दोनों की तू तू मैं मैं में पानी माफिया धड़ल्ले से मुनाफाखोरी करने में जुटा है।

नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार शहर में सामान्य दिनों में लगभग 450 मिलियन लीटर डेली (एमएलडी) पानी की आवश्यकता है लेकिन सभी स्रोतों से मिलाकर भी अधिकतम तीन सौ एमएलडी पानी की आपूर्ति ही की जा पाती है। वर्तमान में महज 192 एमएलडी यानी जरूरत की लगभग आधी पेयजल की आपूर्ति ही की जा पा रही है। निगम के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार 192 एमएलडी तो कागजों पर है धरातल पर तो केवल 160 से 165 एमएलडी पानी ही दिया जा पा रहा है।

नगर निगम कम पानी आपूर्ति के लिए एफएमडीए को दोषी ठहरा रहा है, अधिकारियों के अनुसार एफएमडीए के पास सारी रैनीवेल लाइनें हैं लेकिन आज तक किसी भी रैनीवेल लाइन से नगर निगम के बूस्टरों तक पूरा पानी नहीं दिया गया। वर्तमान में जब पानी का संकट है तो ददसिया, कामरा, कबूलपुर और मंझावली लाइनों से पानी की आपूर्ति जब देखो तब बाधित रहती है क्योंकि इनमें आज तक जेनरेटर की व्यवस्था नहीं है। बताते चलें कि एफएमडीए के पास ये रैनीवेल लाइनें करीब चार साल से हैं, करोड़ों रुपये के बजट बनाने वाला एफएमडीए आज तक इनमें जेनरेटर की व्यवस्था नहीं कर सका। बिजली आपूर्ति ठप होने के कारण अधिकतर समय इनकी जल आपूर्ति बाधित रहती है, जिससे बड़े इलाके में जल संकट की स्थिति बन जाती है। नगर निगम के एसई ओमबीर ने बताया कि पीछे से कम पानी मिलने की वजह से केवल 192 एमएलडी पानी ही सप्लाई की जा रही है। पानी की कमी के कारण एसजीएम नगर, सेक्टर 22, 23 , 24, सैनिक कॉलोनी, एनआईटी, ओल्ड फरीदाबाद, चावला कॉलोनी, बल्लभगढ़ के बड़े इलाके में आपूर्ति नहीं हो पा रही है।

इधर एफएमडीए के अधिकारी सारा ठीकरा नगर निगम पर फोड़ रहे हैं उनका कहना है कि पानी तो पूरा दिया जा रहा है लेकिन नगर निगम के बूस्टर ही आए दिन खराब पड़े रहते हैं, कभी मोटर खराब तो कभी बिजली नहीं ऐसे में नगर निगम सप्लाई कर नहीं पाता और दोष एफएमडीए पर मढ़ता है। नगर निगम पर पानी बर्बाद करने वालों से मिलीभगत का भी आरोप लगाया। इन अधिकारियों का कहना है कि गर्मी में पेयजल आपूर्ति की किल्लत है लेकिन जगह जगह कार वाशिंग की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं, एफएमडीए ने ऐसे वाशिंग स्टेशनों पर पानी की बर्बादी की फोटो भी निगम को भेजी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह भी आरोप है कि गली गली में आरओ प्लांट लगे हुए हैं जिनमें बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी की जाती है लेकिन निगम कोई कार्रवाई नहीं करता। दोनों संस्थानों के अधिकारी ये मानने को तैयार नहीं हैं कि पेयजल आपूर्ति में उनके कारण ही समस्या पैदा हो रही है।
शहर में पेयजल की समस्या नई नहीं है लेकिन घोषणावीर और उद्घाटन के शौकीन पूर्व सीएम खट्टर से लेकर भाजपा विधायकों और मंत्रियों ने जनता के कल्याण के लिए कोई काम नहीं किया। पूर्व सीएम खट्टर ने डेढ़ वर्ष पूर्व सेक्टर 22 मछली मार्केट के निकट दो दशक पुराने जलघर का और डबुआ के पास स्थित 2005 में बने और 2015 से बंद पड़े सूर्य देवता भूमिगत टैँक का जोर शोर से उद्घाटन किया था। तब उन्होंने दावा किया था कि इससे डबुआ कॉलोनी, जवाहर कॉलोनी, उडिय़ा कॉलोनी, गाजीपुर, एसजीएम नगर सेक्टर 22, 23, 24 आदि में पानी की कोई कमी नहीं रहेगी। इन दोनों प्रोजेक्ट पर एफएमडीए द्वारा करोड़ों रुपये बर्बाद कर दिए जाने के बावजूद स्थिति ज्यों की त्यों बल्कि उसे भी बदतर बनी हुई है। नगर निगम के निकम्मे अधिकारियों को भ्रष्ट एवं निकम्मा घोषित करने के बाद उनसे भी ‘बेहतरीन’ अधिकारियों पर आधारित एफएमडीए को ये प्रोजेक्ट सौंपे गए।

32 करोड़ों रुपये बर्बाद करने के बाद एफएमडीए के इन दूध के धुले तथा होनहार अधिकारियों ने जब इन प्रोजेक्टों को चालू किया तो सप्लाई ले जाने वाली पाइप लाइनें फट गईं और सारा पानी बर्बाद हो गया। एफएमडीए के इन होनहार अधिकारियों ने इसका सारा दोष एफसीएफ के मत्थे मढ़ कर अपना पल्ला झाड़ लिया। उनका कहना है कि एमसीएफ की पुरानी पाइप लाइनें गली हुई थीं इसलिए फट गईं। क्या शानदार दलील है ! नगर निगम के निकम्मे अधिकारियों द्वारा किए गए घटिया काम को देखते हुए ही तो एफएमडीए को ये प्रोजेक्ट सौंपे गए थे इसके बावजूद भी यदि दोष उन्हीं पर मढऩा है तो एफएमडीए वाले किस मर्ज की दवा हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार आज तक भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है।
सवाल ये पैदा होता है जनता के खून पसीने की कमाई का करीब 32 करोड़ रुपये कौन डकार गया ? केवल लूट कमाई के लिए बनाए गए एफएमडीए के अधिकारियों को तो खैर कुछ करना था नहीं, लेकिन सीएम खट्टर ने भी यह देखने की जहमत नहीं उठाई कि उद्घाटनों के बाद हुआ क्या? जहमत उठानी ही होती तो पहले यह जांच करवाई जाती कि प्रोजेक्ट बंद क्यों पड़े हैं और इसके लिए कौन अधिकारी उत्तरदायी हैं और किस किसने इस प्रोजेक्टों का पैसा डकारा है। इसके बजाय खट्टर ने 32 करोड़ रुपये डकारने का एक नया तरीका एफएमडीए के रूप में पेश कर दिया।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार जनता को बेहतर जलापूर्ति करने के बजाय निगम और एफएमडीए के बूस्टरों से जल माफिया के टैंकर भरे जाते हैं। माफिया इन टैकरों के लिए आठ सौ से एक हजार रुपये तक वसूलते हैं। कुछ राजनेताओं की राजनीति ही पानी पर चल रही है, वे जानबूझ कर उनके इलाके में पानी की आपूर्ति कम या नहीं करने का दबाव बनाते हैं। जब जनता परेशान होती है तो खुद को सेवादार बताते हुए टैंकरों से पानी सप्लाई करवा कर मसीहा बनते हैं। पार्षद- विधायक पद के दावेदार इस तरह के नेताओं के नाम लिखे टैंकर शहर में हर जगह देखे जा सकते हैं। कुल मिलाकर नगर निगम-एफएमडीए-जल माफिया और राजनेताओं के खेल में जनता को प्यासा रहना पड़ रहा है।

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Mazdoor Morcha
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