डीईओ कार्यालय :सबके मुुंह में लगा है भ्रष्टाचार का खून

डीईओ कार्यालय :सबके मुुंह में लगा है भ्रष्टाचार का खून
May 26 09:24 2024

ऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शिक्षा की दुकानें बन चुके विद्यालयों से होने वाली मोटी लूट कमाई का खून डीईओ कार्यालय में आला अधिकारियों से लेकर बाबुओं तक के मुंह में लग चुका है। यही कारण है कि लूट कमाई का हिस्सा नहीं मिलने पर कर्मचारी बगावत पर उतरने को तैयार हैं। अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए बेनामी ईमेल और आरटीआई को हथियार बना कर इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी 30 अप्रैल को रिटायर हुई डीईओ आशा दहिया के कार्यकाल में हुई खरीद, डील व अन्य कमाई के संबंध में डाली गई एक आरटीआई आजकल डीईओ कार्यालय में चर्चा का विषय बनी हुई है। चर्चा है कि लूट कमाई में हिस्सापत्ती नहीं मिलने के कारण एक बाबू ने यह आरटीआई लगवाई थी, हालांकि अब उसे मना लिया गया है।

शिक्षा विभाग में अधिकारियों-कर्मचारियों की ऊपरी कमाई का महत्वपूर्ण साधन निजी स्कूलों को मान्यता की अनुमति देना है। क्योंकि मान्यता के मानक इतने कड़े हैं कि निजी तो क्या एक भी सरकारी स्कूल इस पर खरा नहीं उतरता, ऐसे में निजी स्कूल के मालिकान लाखोंं रुपये चुका कर मान्यता प्रमाणपत्र खरीदते हैं। यह तो आम साधारण स्कूलों का रेट है। कई बड़े नामी स्कूल जो मान्यता की सारी शर्तें पूरी भी करते हैं, उन्हें भी बाबू कुछ न कुछ चढ़ावा लिए बिना मान्यता का प्रमाणपत्र नहीं जारी करते।

ऊपरी कमाई का दूसरा साधन निजी स्कूलों को स्थायी यूडाइस कोड (यूनिफाइड डिस्ट्रक्ट इन्फार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) दिलाना है। इस कोड के बिना किसी स्कूल का संचालन नहीं हो सकता, और केंद्र व राज्य सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में चलाई जा रही योजना, छात्रवृत्ति आदि का लाभ नहीं मिल सकता। यह कोड दिलाने का वर्तमान रेट एक लाख रुपये बताया जा रहा है। निजी स्कूल प्रत्येक शिक्षा सत्र में एडमिशन फीस के रूप में अभिभावकों से मोटी रकम वसूलते हैं, इसके अलावा यूनीफार्म, स्टेशनरी, किताबों पर भी मोटा कमीशन वसूला जाता है। इन अनैतिक कार्यों में बाधा न उत्पन्न हो इसके लिए भी निजी स्कूल संचालक डीईओ कार्यालय में चढ़ावा चढ़ाते हैं।

निजी स्कूलों के अलावा सरकारी विद्यालयों के लिए समय समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, शारीरिक प्रशिक्षण, खेल, विभिन्न प्रतियोगिता आदि के आयोजन के लिए बजट जारी किया जाता है। बजट सरकार से शिक्षा निदेशालय, निदेशालय से डीईओ कार्यालय, बीईओ कार्यालय से गुजरता हुआ विद्यालय तक पहुंचता है, हर स्तर से कमीशन बंधा होता है। जाहिर है कि वहां भी खरीदी में हिस्सापत्ती होती है। इनके अलावा सरकारी स्कूलों में निर्माण, मरम्मत, शिक्षण, शिक्षणेतर सामग्री की खरीद भी डीईओ कार्यालय की लूट कमाई का बड़ा साधन हैं।

जिला शिक्षा अधिकारी और उनके बाबू की ऊपरी कमाई का बड़ा हिस्सा सरकारी शिक्षक भी हैं। इन शिक्षकों से उनकी तैनाती, तबादला और एसीपी (एश्योर्ड कॅरियर प्रोग्रेशन) के लिए मोटा चढ़ावा मांगा जाता है। यही नहीं महिला शिक्षकों को (चाइल्ड केयर लीव) इस दौरान मिलने वाले वेतन का निश्चित हिस्सा पेशगी लेने के बाद ही दी जाती है। यह छुट्टी क्योंकि डीईओ के आदेश पर दी जाती है तो इस रकम में सबसे बड़ा हिस्सा उनका ही माना जाता है, बाकी बाबुओं में बंटता है। ये काम केवल डीईओ स्तर पर ही नहीं चंडीगढ़ मुख्यालय तक चलता है। मुख्यालय तो डीईओ कार्यालयों का भी बाप है, वहां तो हर काम के लिए अच्छी सेवा पानी करना पड़ता है।

इन सब तरीकों से होने वाली ऊपरी कमाई के लिए प्रवीण जैसे क्लर्क हर डीईओ के खास हो जाते हैं। हाल ही में सेवानिवृत्त हुईं डीईओ आशा दहिया पर उनके कार्यकाल में स्कूलों को मान्यता दिलाने, यूडाइस कोड दिलाने, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम पर करोड़ों रुपये हड़पने का आरोप लगा था। लूट कमाई में मैडम के एजेंट के रूप में क्लर्क प्रवीण और अंग्रेजी के प्रवक्ता अभयेंदर का नाम उछला था। बताया जा रहा है कि इस लूट कमाई में संबंधित अनुभाग के लिपिकों को भी मलाई चटाई गई थी लेकिन विभाग के एक तेज तर्रार और वीर प्रकार के बाबू को हिस्सापत्ती नहीं मिली थी।

इससे नाराज बाबू ने अपनी वीर बुद्धि का परिचय देते हुए डीईओ आशा दहिया के कार्यकाल में थोक के भाव दी गईं मान्यताओं, उनके मानकों की स्थिति, खरीद और खरीदी गई वस्तु की गुणवत्ता, किए गए खर्च आदि का विस्तृत ब्यौरा एक स्टेशनरी आपूर्तिकर्ता मुंजाल के नाम से आरटीआई लगवा कर मांग लिया। आरटीआई लगते ही विभाग में हलचल मच गई। बताया जाता है कि सभी बाबुओं ने मिल कर वीर साथी को उनका हिस्सा ईमानदारी से पहुंचाने का आश्वासन देकर मना लिया। तय हुआ है कि आइंदा भी बाबू का तेज शांत रहे इसलिए ऊपरी कमाई का हिस्सा भी उन तक पहुंचता रहेगा।

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Mazdoor Morcha
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