फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) जिले की सिविल पुलिस, सीआईए, सीएम फ़्लाइंग, सीआईडी और एंटी करप्शन ब्यूरो में तैनात मोटी कमाई के शौकीन कर्मचारियों का भ्रष्ट गुट बहुत पहले से सक्रिय है। भ्रष्टाचारियों का ये गुट लूट कमाई के लिए न सिर्फ बदमाशों व अराजकतत्वों से सांठ गांठ किए हुए है बल्कि बेगुनाहों पर वर्दी का रौब झाडक़र जेल भेजने का डर दिखा उनसे भी मोटी वसूली करता है। पुरानी कारों के कारोबारी उमेश बसवाल के मामले में एफआईआर दर्ज होने के कारण सीआईए और एसीबी (विजिलेंस) के भ्रष्ट कर्मचारियों की मिलीभगत का खुलासा तो हो गया लेकिन अभी भी बहुत से भ्रष्ट और लूट कमाई करने वाले कर्मचारी इन विभागों में सक्रिय हैं।
उमेश बसवाल ने 17 अगस्त 2022 को महानिदेशक एसीबी कार्यालय में जबरन वसूली, बंधक बनाकर मारपीट करने की शिकायत की थी। उमेश के मुताबिक सीआईए बडख़ल इंचार्ज एसआई नरेंद्र शर्मा, हेड कांस्टेबल रोहताश और सुमित उर्फ भूरा सहित अन्य कर्मचारी उन्हें झूठे केस में फंसाने की धमकी देकर उनसे 35 लाख रुपये लूट चुके हैं। उनकी शिकायत पर एसीबी के इंस्पेक्टर अनिल को इसकी जांच सौंपी गई। बडख़ल सीआईए से रोहताश ने उमेश बसवाल को फोन कर उनसे 1.60 लाख रुपये मांगे थे।
इनमें से 1.10 लाख रुपये वो उनकी दुकान पर आकर ले जा चुका था, जिसकी सीसीटीवी फुटेज भी है। बाकी 50 हजार रुपये की उनसे मांग की जा रही थी। सीआईए टीम को रंगेहाथ पकड़वाने के लिए उमेश ये रुपये लेकर एसीबी टीम के साथ सीआईए बडख़ल कार्यालय गए थे। आरोपी सुमित उर्फ भूरा का सगा भाई जागेश एससीबी टीम में था। उमेश जब रुपये लेकर सीआईए कार्यालय में दाखिल हो रहे थे जागेश ने तेज आवाज में भाई सुमित उर्फ भूरा को एसीबी के आने का गुप्त संकेत दे दिया। आवाज सुनकर सुंंमित सहित सभी पुलिसकर्मी दीवार कूद कर फरार हो गए थे। सीआईए ब्रांच में केवल इंचार्ज नरेंद्र शर्मा मिले थे और उन्होंने उल्टे उमेश को पीट कर भगा दिया था। अब करीब डेढ़ साल बाद इस मामले में उमेश बसवाल की शिकायत पर क्राइम ब्रांच बडख़ल की टीम पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा सात, जबरन उगाही करना आदि धाराओं में केस दर्ज कराया गया है। शिकायतकर्ता एसीबी के डीएसपी अर्जुन राठी ने बताया कि केस की जांच इंस्पेक्टर जय भगवान कर रहे हैं।
उमेश बसवाल का केस इसलिए खुल गया क्योंकि वे निर्दोष थे। शहर के अनेक कबाड़ी, सुनार, कार कारोबारी जो चोरी का सामान खरीदते है, वे सीआईए और पुलिस को हर महीने चढ़ावा चढ़ाते हैं। इसी तरह सट्टा खिलाने वाले, अवैध शराब की तस्करी, स्मैक आदि नशे के कारोबारियों का भी हफ्ता बंधा है। अवैध हथियार कारोबारी, पशु तस्कर से लेकर झपटमार, चोरों तक से वसूली होती है। क्योंकि ये अपराधी हैं इसलिए शिकायत नहीं करते बल्कि झूठे केस में फंसाए जाने, जेल जाने से बचने केे लिए चढ़ावा चढ़ाते रहते हैं। 2017-18 में सीआईए बदरपुर बॉर्डर इंचार्ज रहे एक इंस्पेक्टर पर भी रेड के दौरान हाथ लगा करीब तीन किलोग्राम सोना हड़पने का आरोप लगा था, उनके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू हुई, परंतु वह अभी आराम से नौकरी कर रहे हैं।
रेड की जानकारी लीक करने का यह पहला मामला नहीं है, हाल ही में एसीबी की कई रेड असफल रहीं। नगर निगम के नगर स्वास्थ्य अधिकारी नितीश परवाल, पलवल में जीएसटी इंस्पेक्टर सुरेंद्र कुमार को रंगेहाथ पकड़े जाने से पहले ही एसीबी की कार्रवाई की जानकारी हो गई थी और दोनों ही भाग निकले थे, हालांकि बाद में उन्हें पकड़ा गया और केस दर्ज किया गया। जानकारी लीक करने के कारण ईएसआई मनोज कुमार तो एसीबी से हटाए भी जा चुके हैं।
सेक्टर 75 में डीआईजी की कोठी के नाम से प्रसिद्ध बंगले में काफी समय तक रहने वाले ईसआई मनोज पर भ्रष्टाचार, दुष्कर्म, वसूली आदि के आरोप हैं बावजूद इसके वह आज भी खुद को एक सेवानिवृत्त आईजी का खास बता कर खुलेआम वसूली कर रहा है।
मनोज का इतिहास ये है कि वह करीब पंद्रह साल तक सीआईडी में तैनात रहा। वहां भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा तो आका ने उसका तबादला विजिलेंस में करा दिया। विजिलेंस में रहकर उसकी भ्रष्ट कार्यशैली नहीं बदली और वह रुपये लेकर छापे की सूचना लीक करने लगा। करतूत का खुलासा हुआ तो उसे हटा कर एचएसवीपी सेल में लगा दिया गया, यहां भी उसकी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया। खास ये है कि इतने गंभीर आरोप होने के बाद भी उसकी पदोन्नति होती रही। मई 2020 में पलवल की एक महिला ने मनोज के खिलाफ चार लाख रुपये हड़पने और दुष्कर्म का केस दर्ज कराया था।
पीडि़ता का पति आपराधिक मामले में जेल में बंद था। आरोप है कि पति को छुड़ाने और जेल मे सहूलियत दिलाने के नाम पर मनोज ने महिला से साढ़े चार लाख रुपये हड़प लिए। यही नहीं पति के केस के सिलसिले में कहीं ले जाने के बहाने कार में नशीला पदार्थ पिला कर उससे दुष्कर्म किया और वीडियो भी बना डाली। केस तो दर्ज हो गया लेकिन पुलिस मनोज को आज तक दोषी नहीं ठहरा सकी है। वह आज भी खुद को आला पुलिस अधिकारी बताकर शहर में कारोबारियों, सट्टेबाज, चोरी का सामान बेचने और अवैध कारोबार करने वालों से वसूली कर रहा है। वर्तमान में मनोज भागे प्रेमी जोड़ों के आश्रय का इंचार्ज है, बताया जाता है कि वहां हाजिरी लगाने के बाद वह उगाही करने शहर में निकल जाता है।
मनोज की तरह ही अन्य पुलिसकर्मी भी लूट कमाई में लगे है। दो सौ करोड़ घोटाले का केंद्र नगर निगम में भी सीआईए और सीएम विंडो के कुछ कर्मचारियों द्वारा आरोपी अधिकारियों को जांच में फंसाने या निकालने के नाम पर वसूली की चर्चा रही है। नगर निगम सूत्रों के अनुसार जलकल विभाग के निरीक्षक विनेश हुड्डा का एक रिश्तेदार संदीप विजिलेंस में और दूसरा कांस्टेबल दीप सीएम फ्लाइंग में तैनात थे। दो सौ करोड़ घोटाले का खुलासा होने के बाद विनेश हुड्डा के इस त्रिगुट ने जांच में दायरे में आने वाले अधिकारियों को जमकर दुहा था। उगाही के लिए अमित लूथरा नामक बिचौलिए को लगाया गया था। नगर निगम में पुलिस के खुफिया विभाग के गैर वर्दीधारी कुछ कर्मचारी खुद को आला अधिकारी बता कर लूट कमाई कर रहे हैं।
सीआईए में तैनाती ही मोटी कमाई की गारंटी होती है, यहां सच को झूठ और झूठ को सच बनाने के पैसे चलते हैं। यह बात विभाग के अदना से लेकर आला अफसर तक सबको मालूम है। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि मोटी कमाई के इन विभागों में तैनाती पाने के लिए भी बड़ा चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। जाहिर है कि इस चढ़ावे में एक हिस्सा आला अधिकारियों तक पहुंचता होगा। यानी विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी आला अधिकारियों को है लेकिन वे आंखें बंद किए रहते हैं।
एसीबी ने सीआईए बडख़ल इंचार्ज सहित पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया है, इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू होनी चाहिए थी लेकिन इस संबंध मेें आला अधिकारी चुप हैं। पुलिस आयुक्त राकेश आर्य ने बताया कि मामले की जांच एसीबी कर रही है, उसके पास ही सारे दस्तावेज हैं, हम इसमें कुछ नहीं कर रहे।