सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कोविशील्ड वैक्सीन के साइड इफेक्ट का मामला, जांच की मांग

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कोविशील्ड वैक्सीन के साइड इफेक्ट का मामला, जांच की मांग
May 05 06:43 2024

जेपी सिंह
फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका द्वारा इस बात को स्वीकार करने की रिपोर्ट के बाद कि उसका कोविशील्ड वैक्सीन दुर्लभ दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है, एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उक्त वैक्सीन के दुष्प्रभावों और जोखिम कारकों की जांच करने के साथ-साथ उनके मुआवजे के लिए मेडिकल एक्सपर्ट पैनल के गठन की मांग की, जो वैक्सीनेशन अभियान के कारण गंभीर रूप से अक्षम हो गए या मर गए।

यह याचिका वकील विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई, जिसमें एस्ट्राजेनेका की इस स्वीकारोक्ति पर प्रकाश डाला गया कि उसका COVID-19 के खिलाफAZD1222 वैक्सीन (भारत में लाइसेंस प्राप्त और कोविशील्ड के रूप में बेचा जाता है) कम प्लेटलेट काउंट और “बहुत दुर्लभ” मामलों में रक्त के थक्कों के गठन का कारण बन सकता है। याचिका में कहा गया है कि “एस्ट्राजेनेका ने वैक्सीन और थ्रोम्बोसिस के बीच थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के साथ संबंध को स्वीकार किया, जो असामान्य रूप से प्लेटलेट्स के घटने और खून के थक्के बनने की विशेषता वाली मेडिकल स्थिति है।”

तिवारी कहते हैं कि इस फॉर्मूले को पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को लाइसेंस दिया गया और देश में 175 करोड़ से अधिक कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के बाद से दिल का दौरा पडऩे और व्यक्तियों की अचानक मृत्यु के कारण होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है। याचिका में कहा गया है कि “COVISHEILD के डेवलपर द्वारा यूके की अदालत में दायर किए गए दस्तावेज़ के बाद हम COVISHEILD वैक्सीन के जोखिम और खतरनाक परिणामों के बारे में सोचने के लिए मजबूर हैं, जो बड़ी संख्या में नागरिकों को दी गई।”

तिवारी का कहना कि कोविशील्ड वैक्सीन भारत सरकार के दृष्टिकोण और आश्वासन पर लगाए गए कि यह सुरक्षित है। यूनाइटेड किंगडम में वैक्सीन क्षति भुगतान प्रणाली का हवाला देते हुए प्रार्थना की गई कि वैक्सीन से गंभीर रूप से दिव्यांग हुए लोगों को मुआवजा दिया जाए और केंद्र सरकार इस मामले को प्राथमिकता पर ले ताकि भविष्य में लोगों के स्वास्थ्य को खतरा न हो।

याचिका में मांगी गई राहतें इस प्रकार है
(1) स्वास्थ्य सुरक्षा के हित में कोविशील्ड की जांच के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के मेडिकल एक्सपर्ट्स का मेडिकल एक्सपर्ट्स पैनल गठित करने के निर्देश जारी करें, जिसका नेतृत्व इसके निदेशक और भारत के सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड माननीय जज द्वारा किया जाएगा।
(2) उन नागरिकों के लिए वैक्सीन क्षति भुगतान प्रणाली स्थापित करने के लिए भारत संघ को निर्देश जारी करना, जो कोविड-19 के दौरान वैक्सीनेशन अभियान के परिणामस्वरूप गंभीर रूप से दिव्यांग हो गए।
(3) भारत संघ को उन लोगों को मुआवजा देने के लिए निर्देश जारी करना, जो कोविड-19 के दौरान लगाए गए कोरोना वैक्सीन के दुष्प्रभावों के कारण गंभीर रूप से दिव्यांग हो गए या जिनकी मृत्यु हो गई।

गौरतलब है कि ब्रिटेन स्थित फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया है कि इसका कोविड टीका कोविशील्ड रक्त के थक्के जमाने संबंधी दुष्प्रभाव उत्पन्न कर सकता है, लेकिन इनके बीच कोई संबंध होने की जानकारी नहीं है। ब्रिटेन के एक अखबार ने अदालती दस्तावेज के हवाले से यह दावा किया है। ‘द डेली टेलीग्राफ’ की रिपोर्ट के अनुसार, 51 वादियों द्वारा एक सामूहिक कार्रवाई के अनुरोध पर फरवरी में लंदन स्थित उच्च न्यायालय में एक कानूनी दस्तावेज सौंपा गया था।

एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया था कि कोविड-19 से बचाव के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद किया गया टीका ‘‘बहुत दुर्लभ मामलों में’’ रक्त के थक्के जमा सकता है और प्लेटलेट की संख्या को घटा सकता है। एस्ट्राजेनेका वैक्सजेव्रिया टीके का उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने भी किया था और इस टीके को भारत में ‘कोविशील्ड’ नाम से जाना जाता है।कोविशील्ड बनाने वाली ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका ने पहली बार अदालती दस्तावेजों में माना है कि उसकी कोविड 19 वैक्सीन दुर्लभ दुष्प्रभाव पैदा कर सकती है। इस दिग्गज फार्मास्युटिकल कंपनी द्वारा इस बात को स्वीकार किये जाने के बाद दुनिया भर में स्वास्थ्य से जुड़े कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे वैक्सीन को लेकर आम लोगों के विश्वास भी अब प्रभावित हो सकते हैं।

ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ ने इसको लेकर बीते 28 अप्रैल को खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की है। द टेलीग्राफ की इस रिपोर्ट के मुताबिक, कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने पहली बार अदालती दस्तावेजों में स्वीकार किया है कि वैक्सीन से दुर्लभ दुष्प्रभाव हो सकता है। कंपनी ने माना है कि उसकी वैक्सीन, बहुत ही दुर्लभ मामलों में, थ्रोम्बो साइटोपेनिया सिंड्रोम या टीटीएस का कारण बन सकती है। इसके साथ ही इसे लेने वाले में थ्रोम्बोसिस नामक एक दुर्लभ दुष्प्रभाव भी हो सकता है। हालांकि वैक्सीन निर्माता ने अदालती दस्तावेज़ों में कहा है कि कोविशील्ड, दुर्लभ मामलों में ही ऐसी स्थिति का कारण बन सकती है। इसके कारण होने वाले साइड इफेक्ट में खून के थक्के जम सकते हैं और प्लेटलेट की संख्या कम हो सकती है जिसके कारण हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।

कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने इस बात को तब स्वीकार किया है जब वह इस वैक्सीन के कारण कुछ केस में मानव स्वास्थ्य को होने वाले गंभीर नुक्सान और कई मौतों के आरोपों से जुड़े मुकदमों को झेल रही है। माना जा रहा है कि कंपनी को कई मिलियन पाउंड का हर्जाने का भुगतान करना पड़ सकता है।
एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कोविशील्ड वैक्सीन का व्यापक रूप से इस्तेमाल भारत सहित दुनिया के कई देशों में हो चुका है। भारत में जहां इसका उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा किया गया था।

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ माने जाने वाले डॉ. जगदीश जे हीरेमथ बताते हैं कि “थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के साथ थ्रोम्बोसिस एक दुर्लभ स्थिति है जिसमें शरीर की रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्के(थ्रोम्बोसिस) बन जाते हैं और खून में प्लेटलेट्स की संख्या कम (थ्रोम्बो साइटोपेनिया) हो जाती है।
इस स्थिति को कुछ कोविड 19 टीकों से जुड़े एक अत्यंत दुर्लभ साइड इफेक्ट के रूप में देखा गया है, विशेष रूप से वे जिन्हें एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (कोविशील्ड) जैसे एडेनोवायरस वैक्टर वाली वैक्सीन दी गई थी। टीटीएस इसलिए होता है, क्योंकि मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी बनाकर टीके के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देती है, जो रक्त के थक्के जमने में शामिल प्रोटीन पर हमला करती है।

रिपोर्ट कहती है कि कोविशील्ड टीकाकरण के बाद टीटीएस होने का सटीक तंत्र को पूरी तरह से समझा नहीं गया है। हालांकि डॉ. जगदीश जे हीरेमथ कहते हैं कि यह अनुमान लगाया गया है कि टीका एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकता है। जो कि प्लेटलेट सक्रियण और रक्त के थक्कों के गठन की ओर ले जाता है, जो ऑटोइम्यून हेपरिन-प्रेरित थ्रोम्बो साइटोपेनिया के समान है। टीटीएस बेहद दुर्लभ है, यह बहुत कम केस में ही हो सकता है। यह निर्भर करता है कि इस वैक्सीन को लेने वाले कि उम्र, लिंग क्या है, कुछ केस में आनुवंशिक कारण भी इस स्थिति के जिम्मेदार हो सकते हैं।

टीटीएस की स्थिति में आमतौर पर गंभीर सिरदर्द, धुंधली दृष्टि, सीने में दर्द, पैरों में सूजन, लगातार पेट दर्द और टीकाकरण के कुछ हफ्तों के भीतर सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखते हैं। इस स्थिति से ठीक होने के लिए शीघ्र पता लगाना और इलाज जरूरी है। इसलिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और मरीजों दोनों को इन लक्षणों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूके में एस्ट्राजेनेका को इस दावे पर मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है कि उसके टीके के कारण दर्जनों मामलों में मौतें हुईं और गंभीर इंज्यूरीज सामने आईं। अदालत में, वकीलों ने तर्क दिया कि ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर एस्ट्राजेनेका फार्म कंपनी की बनी ष्टह्रङ्कढ्ढष्ठ-19 वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स से कई परिवारों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है।

पहला मामला 2023 में जेमी स्कॉट द्वारा दर्ज किया गया था, जिन्हें अप्रैल 2021 में टीका लगाया गया था। एस्ट्राजेनेका द्वारा निर्मित टीका लेने के कुछ दिनों बाद, स्कॉट ने दावा किया कि ब्लड क्लॉट बनने और ब्रेन में ब्लीडिंग होने के कारण उन्हें परमानेंट ब्रेन इंजरी हुई। यूके हाई कोर्ट में एस्ट्राजेनेका कंपनी के खिलाफ इस मामले से जुड़े 51 केस दर्ज हैं और 100 मिलियन पाउंड तक के मुआवजे और हर्जाने की मांग है।

एस्ट्राजेनेका ने अदालत में स्वीकार ये किया कि दुर्लभ साइड इफेक्ट संभव हैं, लेकिन अभी तक यह स्वीकार नहीं किया कि टीके में कोई दोष था, वो प्रभावी नहीं था या इससे कोई इंजरी या मृत्यु हुई कंपनी ने कहा,यह माना जाता है कि वैक्सीन, बहुत ही दुर्लभ मामलों में, टीटीएस का कारण बन सकती है लेकिन कैजुअल मैकेनिज्म का कारण अभी पता नहीं है।
इसके अलावा, टीटीएस वैक्सीन (या किसी भी वैक्सीन) की अनुपस्थिति में भी हो सकता है। किसी भी इंडिविजुअल मामले के पीछे इसके होने का पता लगाना के लिए एक्सपर्ट एविडेंस की जरूरत है।ब्रिटेन सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

वाशिंगटन पोस्ट ने भारत सरकार पर हमला तेज किया, संपादकीय लिख कर की मांग- पन्नुन मामले की हो पूरी और ईमानदारी से जांच नई दिल्ली। वाशिंगटन पोस्ट ने भारत सरकार पर अपना हमला और तीखा कर दिया है। उसने अलग से लिखे गए संपादकीय में खालिस्तानी एक्टिविस्ट गुरपतवंत सिंह पन्नुन की हत्या की नाकाम साजिश में भारत सरकार के शामिल होने का आरोप लगाने के साथ ही पूरी योजना की गहराई और ईमानदारी से जांच करने की मांग की है। न्यूज़पेपर के संपादकीय बोर्ड ने कहा कि भारत को इस भय पैदा करने वाले सुपारी हत्या केस की गहराई से जांच करनी चाहिए।

भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ और उसके पूर्व मुखिया सामंत गोयल पर हत्या के प्लाट में शामिल होने के मसले पर विस्तार से स्टोरी करने के एक दिन बाद एक बेहद मारक पीस में पोस्ट ने कहा कि अमेरिका को भी यह बात बिल्कुल साफ कर देनी चाहिए कि ‘यह देश अपनी जमीन पर इस तरह के अपराध को बर्दाश्त नहीं करेगा’। पेपर ने आगे कहा कि अमेरिकी सरकारी एजेंटों द्वारा नाकाम कर दिए गए हत्या की साजिश की जांच के लिए खासकर भारत आगे नहीं आ रहा है। एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल कुछ सप्ताह पहले जांच में अपडेट जानने के लिए नई दिल्ली की यात्रा पर गया था लेकिन सार्थक प्रगति के बहुत छोटे प्रमाण के साथ वह अमेरिका लौटा।

पोस्ट ने कहा कि हत्या का प्लॉट एक पूरी और ईमानदारी भरी जांच की मांग कर रहा है जिसे होना अभी बाकी है। “ऐसा लगता है कि जिन्होंने षड्यंत्र को अंजाम दिया वो भारत सरकार में उच्च स्तर पर काम करते रहे हैं।” पोस्ट ने फ्रीडम हाउस, जो लोकतंत्र के स्तर और दुनिया में प्रेस की स्वतंत्रता को नापने का काम करता है, को कोट करते हुए भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया है जो पराराष्ट्रीय उत्पीडऩ को अंजाम देने का प्रयास करते रहे हैं। इस सूची में ढेर सारी तानाशाह या फिर अर्ध तानाशाह सरकारों वाले देश हैं जिसमें रूस, चीन, तुर्की, ईरान, बेलारूस, रवांडा और मिस्र शामिल हैं।

पेपर ने कहा कि पराराष्ट्र उत्पीडऩ वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है। और यह सरकारें बेहिसाब तरीके से आलोचकों, एक्टिविस्टों, विक्षुब्धों और पत्रकारों को अपनी सीमाओं से दूर दंडित करने, उनका अपहरण करने या फिर उनकी हत्या करने का प्रयास कर रही हैं। और यह सब कुछ दूसरे देशों के कानूनों और नियमों का उल्लंघन करते हुए किया जा रहा है।
पोस्ट में सिख अलगाववादी एक्टिविस्ट हरदीप सिंह निज्जर की वैंकुवर के पास की गयी हत्या का भी जिक्र किया गया है। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दिल्ली के साथ अपने रिश्तों को बिल्कुल ठंडे बस्ते में डाल दिया जब उन्होंने कहा कि निज्जर की हत्या में भारत के हाथ का कनाडा के पास पुख्ता प्रमाण है।

पोस्ट ने इस बात को चिन्हित किया है कि अमेरिकी प्लान में कथित भारतीय साजिशकर्ता गुरुद्वारा पार्किंग में निज्जर की गोली मार कर हत्या किए जाने के दो दिन बाद लिखता है कि पन्नुन की हत्या अब एक प्राथमिकता बन गयी है। पोस्ट ने कहा कि कथित षड्यंत्र उस समय आकार ले रहा था जब पीएम मोदी का राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा ह्वाइट हाउस में पूरे तामझाम के साथ स्वागत हो रहा था। न्यूजपेपर ने इस बात को चिन्हित किया कि अमेरिका इस दिशा में बहुत धीमी गति से चल रहा है क्योंकि तेजी से बढ़ते चीन का मुकाबला करने के लिए भारत के साथ उसे लंबी दूरी का रिश्ता बनाना उसकी रणनीतिक हितों का हिस्सा है।

और यह बात अब किसी से छुपी नहीं है कि अमेरिका वैश्विक स्तर पर चीन को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है। भारत सरकार ने कहा है कि पन्नुन के मामले की वह अभी भी जांच कर रहा है लेकिन इसके साथ ही उसने आगे कहा कि लक्ष्य बनाकर किसी की हत्या करना उसकी नीति का हिस्सा नहीं है। पोस्ट ने कहा कि अमेरिका ने भारत के मामले पर बेहद नरमी के साथ पेश आया है लेकिन वह ऐसा हिंट देता हुआ दिखता है कि यह उसी तरह से नहीं रहेगा। उसने संकेत दिया कि सीआईए निदेशक विलियम बर्न्स और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी शायद और कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उसने इस बात को चिन्हित किया कि प्रशासन ने बेदखली, प्रतिबंध या फिर दूसरे दंड नहीं लगाए हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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Mazdoor Morcha
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