छांयसा (मज़दूर मोर्चा) जिस अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज को दो दिन मेे चला देने की घोषणा तत्कालीन सीएम खट्टर ने तीन साल पहले 2 मई 2021 को की थी वह आज तक भी आम जनता के लिये चालू नहीं है। अस्पताल के चारों ओर बसे लाखों ग्रामीणों को आज तक भी इस अस्पताल से किसी प्रकार की कोई मेडिकल सुविधा उपलब्ध नहीं है। न तो ओपीडी, न ही आपातकालीन सेवा और न ही प्रसूति सेवाएं उपलब्ध हैं। एनएमसी (नेशनल मेडिकल कॉउंसिल) द्वारा मान्यता न दिये जाने के बावजूद खट्टर ने यहां बीते दो सालों से मेडिकल कॉलेज चला कर छात्रों से 24 करोड़ की वसूली जरूर कर ली है।
चुनाव की घोषणा होने के बाद हरियाणा सरकार को ध्यान आया कि जब भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार कृष्णपाल गूजर के लिये वोट मांगेंगे तो इस अस्पताल का मुद्दा जरूर उठेगा। इसके चलते बीते सप्ताह हरियाणा सरकार के मेडिकल शिक्षा निदेशक डॉ. साकेत कुमार आईएएस चंडीगढ़ से चलकर छांयसा निरीक्षण करने पहुंचे। तुर्त-फुर्त आपातकाल सेवा तथा ओपीडी चालू होने की घोषणा कर दी। घोषणा तो कर दी लेकिन इसे पूरा करने के लिये जिस स्टाफ, उपकरण तथा दवाओं आदि की जरूरत होती है, वे सब नदारद थे। वार्डों में भर्ती करने के लिये आवश्यक एनओसी का मामला भी ज्यों का त्यों ठंडे बस्ते में पड़ा है।
जनता को बेवकूफ बनाने के लिये स्थानीय सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर के नेतृत्व में उसी समय हवन आदि का ड्रामा करके अस्पताल चालू होने की घोषणा कर दी थी। इस यज्ञ ड्रामे में जि़ले के तमाम भाजपा विधायक एवं मंत्री-संत्री सभी अपनी-अपनी भूमिका निभा गये थे। जनता में विश्वास पैदा करने के लिये यज्ञ के समय सेना की मेडिकल कोर के अधिकारी भी बुलाये गये थे। कुछ दिन बाद यह ड्रामा भी समाप्त हो गया। यहां तैनात रह चुके डायरेक्टर गोला ने अस्पताल चालू होने के बारे में न केवल अखबारों में झूठी खबरें छपवाईं बल्कि पर्चे छपवा कर भी बंटवाए। इसके परिणामस्वरूप आस-पास के ग्रामीण अस्पताल में आने तो लगे लेकिन जल्द ही पोल-पट्टी खुल गई क्योंकि हर आने वाले मरीज़ को बीके अस्पताल के लिये रेफर कर दिया जाता था। यदि बीके ही जाना है तो यहां से रेफर कराने की बजाय लोग सीधे ही वहां जाने लगे।
दरअसल भाजपा की नीयत जनहित में कोई काम करने की बजाय उसका ढिंढोरा पीटने की रहती है। भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मूल आधार ही प्रोपेगेंडा करना है। उनका विश्वास है कि एक झूठ को बार-बार बोलो और जोर- जोर से बोलो तो लोग उसे सच ही मानने लगेंगे।
चुनाव की इस बेला में मेडिकल कॉलेज के साथ-साथ डबल इंजन की सरकार को फतहपुर बिल्लौच का वह एम्स सेंटर भी याद आ गया जिसके लिये गांव की करीब सात एकड़ पंचायती ज़मीन सरकार ने 10 वर्ष पहले घेर कर छोड़ दी थी। क्षेत्रवासियों को इस पर अधिक खुश होने की जरूरत नहीं है। इसे लेकर केवल प्रोपेगेंडा ही किया जा रहा है। कोई काम करने की नीयत नजर नहीं आती।
मेडिकल कॉलेज द्वारा जिला प्रशासन की फटीक से इनकार जि़ला प्रशासन के आला अधिकारी जिस तरह से बीके अस्पताल पर सवार रहते हुए तमाम डॉक्टरों को हडक़ा कर सेवाएं प्राप्त करते हैं, ठीक उसी तरह वे ईएसआई के मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर भी सवारी गांठना चाहते हैं। अपनी प्रशासनिक शक्तियों के नशे में वे भूल जाते हैं कि यह मेडिकल कॉलेज उनके अधीन न होकर सीधे केन्द्रीय श्रम मंत्रालय के अधीन आता है। इस नाते वे उनके विरुद्ध किसी भी प्रकार की कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं कर सकते। हां, वक्त-बेवक्त कोई मौका आने पर ये लोग अपनी खुंदक जरूर निकालने का प्रयास करते रहते हैं।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार बीते दिनों जि़ले के आला अधिकारी ने इस अस्पताल के डॉक्टरों पर दबाव बना कर अपने किसी चहेते की सर्जरी कराने की कोशिश की थी। डॉक्टरों ने साफ इनकार करते हुए उस अधिकारी को समझाया कि यहां केवल बीमाकृत मज़दूर को ही भर्ती किया जा सकता है। इस पर आला अधिकारी ने सुझाव दिया कि बिना रिकॉर्ड में चढ़ाए यानी कि दो नम्बर में यह काम कर दिया जाए। डॉक्टरों ने असमर्थता जताते हुए बताया कि यहां यह सब सम्भव नहीं हो सकता क्योंकि शल्य-चिकित्सा के लिये मरीज़ की फाइल कई हाथों से होकर गुजरने के साथ-साथ ऑनलाइन भी चलती है। आला अधिकारी की नाराजगी के लिये बस इतना ही इनकार काफी है। समझा जाता है कि इसी खुंदक में डॉक्टरों को सबक सिखाने के लिये आला अधिकारी ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है। यदि डॉक्टर अपनी वाली पर उतर आयें तो यह आला अधिकारी उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। अधिक से अधिक डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है और यदि डॉक्टर नौकरी छोड़ भी दें तो उन्हें नौकरियों की कोई कमी नहीं है। दरअसल कोरोना के नाम पर दो साल तक इस अस्पताल पर काबिज रहने से जि़ला प्रशासन के मुंह जो खून लग गया था, वह उन्हें अब भी याद आता है। विदित है कि उस दो साल में जि़ला प्रशासन ने यहां खुल कर चमड़े के सिक्के चलाए थे।
आईवीएफ की स्वीकृति पर कुंडली मारे बैठा अधिकारी जिन दम्पतियों को संतान नहीं होती उन के लिये आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) तकनीक का आविष्कार हो चुका है। फरीदाबाद के लगभग प्रत्येक व्यापारिक अस्पताल में यह सुविधा बीते कई वर्षा से उपलब्ध है। कॉर्पोरेशन का यह मेडिकल कॅालेज अस्पताल भी बीते दो वर्षों से यह सुविधा अपने मरीजों को देने का प्रयास कर रहा है। लेकिन हरियाणा सरकार है कि इस मामले को दो साल से लटकाये बैठी है। पहले तो येे बहाना था कि इस बाबत अभी कोई नियम नहीं बनाये गये हैं।
बीते करीब छ: माह पूर्व नियमावली भी बन गई इसके अनुसार जि़ले का सिविल सर्जन व कुछ डॉक्टरों की एक कमेटी इसके लिये आने वाले आवेदनों का विश्लेषण एवं जांच आदि करेगी। समझा जाता है कि सिविल सर्जन की कमेटी ने मेडिकल कॉलेज के आवेदन पर विचार करने तथा अस्पताल का निरीक्षण करने के बाद आवेदन को स्वीकृत करना चाहा तो इसके चेयरमैन एवं जि़ला के अतिरिक्त उपायुक्त आनन्द शर्मा आईएएस ने इसे ठंंडे बस्ते में रखवा कर अपने अहम को तुष्ट किया।
संदर्भवश इस तकनीक के द्वारा ही सेरोगेसी यानी किराये की कोख का धंधा भी खूब चलता है। इसके अलावा भी तमाम व्यापारिक अस्पताल इस तकनीक के बलबूते अपने ग्राहकों से 5 से 15 लाख तक की वसूली करते हैं। जाहिर है कि कॉर्पोरेशन के इस संस्थान में इस सुविधा के उपलब्ध होने से व्यापारिक अस्पतालों के धंधे पर विपरीत प्रभाव पडऩा तो तय है। समझने वाली बात यह है कि उक्त आला अधिकारी हो या पूरी हरियाणा सरकार इस पर कुंडली मारे बैठे रहें, डॉक्टरों एवं संस्थान को इससे कोई घाटा होने वाला नहीं। घाटा हो रहा है तो केवल उन गरीब बीमाकृत मज़दूरों का जिन्हें यहां से यह सुविधा मुफ्त मिलने वाली है।