ईएसआई मेडिकल कॉलेज स्टाफ को चुनाव में झोंका

ईएसआई मेडिकल कॉलेज स्टाफ को चुनाव में झोंका
May 05 05:30 2024

                                                                                                    चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग
रीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) चुनाव कराने के नाम पर फरीदाबाद प्रशासन ने स्थानीय ईएसआई मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर एवं अन्य स्टाफ को भी चुनावी डयूटी में घसीट लिया है। पहले से मरीजों का दबाव झेल रही स्वास्थ्य सेवायें कितनी भी चरमरा जाये, उन्हें परवाह नहीं।

लोकसभा चुनाव को राष्ट्रीय पर्व का दर्जा दिया गया है। इस पर्व को निष्पक्षता एवं दक्षता से सम्पन्न करने के लिये देश भर की सारी सरकारी मशीनरी को इस काम में लगाया जाता है। इसके लिये देश भर के तमाम जि़ला उपायुक्त अपने-अपने क्षेत्र के मुख्य चुनाव अधिकारी होते हैं। अपनी इस शक्ति के बल पर उपायुक्त जि़ले भर के तमाम सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी में लगाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान तमाम सरकारी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों को तो पहले से ही चुनावों में झोंका जाता रहा है; इस बार बारी आ गई मेडिकल कॉलेज स्टाफ की भी। संदर्भवश स्कूलों के अनेकों शिक्षक तो लगभग पूरा साल ही चुनाव ड्यूटी पर रहते हैं।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार ईएसआई मेडिकल कॉलेज के निम्नलिखित स्टाफ को उपायुक्त महोदय ने चुनावी ड्यूटी में झोंक दिया है।

1. ब्रजेश कुमार प्रसाद-एसोसिएट प्रोफेसर ऑर्थाेपेडिक
2. दीपक तंवर-एसोसिएट प्रोफेसर ऑर्थाेपेडिक
3. दिनेश निरवान-असिस्टेंट डायरेक्टर
4. हरि सिंह हरितवाल-नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट
5. जय प्रकाश-असिस्टेंट नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट
6. मनीष कुमार जैन-ऑफिस स्टाफ
7. मिथलेश कुमार-ऑफिस स्टाफ
8. नरेंद्र सिंह-ऑफिस सुपरिंटेंडेंट
9. निखिल वर्मा-एसोसिएट प्रोफेसर आईसीयू
10. रमेश नाथ-ऑफिस सुपरिंटेंडेंट
11. वीरेंद्र सिंह दहिया-असिस्टेंट डायरेक्टर एडमिनिस्टे्रेशन
12. अनिता अरोड़ा-ऑफिस सुपरिंटेंडेंट
13. अंकित चाहर-ऑफिस असिस्टेंट

उपायुक्त विक्रम सिंह को शायद यह मालूम नहीं कि ईएसआई मेडिकल कॉलेज में कार्यरत स्टाफ सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। ये तमाम लोग कॉर्पोरेशन के कर्मचारी हैं। यहां कार्यरत बड़े से बड़ा अधिकारी भी राजपत्रित नहीं होता। इनका वेतन एवं तमाम सुविधाओं पर होने वाला खर्च किसी सरकार द्वारा नहीं बल्कि कॉर्पोरेशन द्वारा वहन किया जाता है। ईएसआई कॉपोरेशन एक ऐसा राष्ट्रीय संस्थान है जिसे किसी भी सरकार द्वारा किसी प्रकार की कोई ग्रांट नहीं दी जाती। इसका सारा वित्त पोषण देश के उन चार करोड़ मज़दूरों द्वारा किया जाता है जिनका मासिक वेतन 21000 रुपये तक है। कॉर्पोरेशन में एक तिहाई सदस्य मज़दूरों के तथा इतने ही उद्योगपतियों के होते हैं। शेष भारत सरकार के होते हैं और वास्तव में यही सरकारी सदस्य इस संस्थान को चलाते हैं।

दुर्भाग्यवश मज़दूरों की नुमाइंदगी करने वाले नेताओं को न तो फुुरसत है और न ही उनकी कोई रुचि कॉर्पोरेशन के संचालन में है। इसी के चलते सरकार अपनी पूरी दादागिरी से इस कॉर्पोरेशन को मनमाने ढंग से चला रही है। सरकार की इसी दादागिरी के चलते देश भर के तमाम बीमाकृत मज़दूरों को पर्याप्त एवं वांछित मेडिकल सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। फरीदाबाद के ही मेडिकल कॉलेज में जरूरत का आधा स्टाफ भी नहीं है। स्टाफ की यह कमी तो तब है जब कॉपोरेशन के खजाने में मज़दूरों से वसूले गए एक लाख पचपन हजार करोड़ रुपये जमा पड़े हैं। इस पर कोढ़ में खाज वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मेडिकल कॉलेज के 13 स्टाफ को चुनावी ड्यूटी में झोंक दिया गया है।

चुनावों का पुराना इतिहास खंगालने पर पाया गया कि अब से पहले किसी भी डॉक्टर अथवा अस्पताल कर्मचारी को चुनावी ड्यूटी में नहीं घसीटा गया। यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है कि जि़ला स्तर के बीके जैसे तमाम अस्पतालों में डॉक्टरों एवं नर्सिंग स्टा$फ की भारी कमी पहले से ही चली आ रही है। ऐसे में यह सम्भव नहीं कि इन्हें अस्पतालों से निकाल कर चुनावी ड्यूटी में घसीटा जाए।

लेकिन इस सबके बावजूद उस ईएसआई कॉर्पोरेशन के संस्थान से 13 लोगों को, जिनमें वरिष्ठ डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ तथा दफ्तरी स्टा$फ के लोग हैं, को चुनाव में घसीटना, जहां प्रति दिन 4500 मरीज़ ओपीडी में आते हों तथा 800-900 तक मरीज वार्डों में दाखिल हों, कहीं से भी अक्लमंदी का फैसला नज़र नहीं आता। ऐसा लगता है जैसे कि जि़ला प्रशासन इस संस्थान से अपनी खुंदक निकाल रहा हो। संदर्भवश यह जानना भी जरूरी है कि हरियाणा सरकार के चार लाख स्वीकृत पदों में से करीब आधे पद कई वर्षों से खाली पड़े हैं। जाहिर है इसके चलते चुनाव ड्यूटी के लिये कर्मचारियों की कमी पडऩे पर जि़ला प्रशासन इधर उधर से कर्मचारी खोजने का प्रयास करता है।

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Mazdoor Morcha
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