‘अमृत काल’ में, भूखा-कंगाल भारत, मज़दूरों की असुरक्षा के मामले में ‘विश्वगुरु’ बन चुका है!!

‘अमृत काल’ में, भूखा-कंगाल भारत, मज़दूरों की असुरक्षा के मामले में ‘विश्वगुरु’ बन चुका है!!
April 28 13:13 2024

“बदलते पर्यावरण के मद्देनजऱ, कार्य क्षेत्र पर सुरक्षा एवं स्वास्थ्य सुनिश्चित करना” विषय पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट से हम ये समझने में ज़रूर क़ामयाब हो जाते हैं कि भारत के बाहर भी, मतलब दुनिया के दूसरे देशों में भी मज़दूर काम करते-करते मर जाने के लिए छोड़ दिए गए हैं। इस देश में तो श्रम कार्यालयों में मौजूद ‘स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग’ में ताले लटक रहे हैं। ये विषय सरकार के एजेंडे से कब का गायब हो चुका। जो मज़दूर जिंदा है वह अपनी बदौलत ही जिंदा है।

सरकारी आंकड़ों के ही अनुसार हर रोज़ औसतन 3 मज़दूर कारखानों में ज़रूरी सुरक्षा उपकरण न होने की वजह से अपनी जान गंवाते हैं। श्रम मंत्रालय ने संसद को बताया कि 2016-21 वाले पांच सालों में, कुल 6500 मज़दूर कारखानों में काम के दौरान मारे गए, ट्रेड यूनियनों ने इन आंकड़ों को मानने से यह कह कर इनकार किया कि दुर्घटनाओं में मज़दूरों के अपंग हो जाने अथवा मौत हो जाने पर जब ‘दुर्घटना रिपोर्ट’ ही बननी बंद हो गई, क़सूरवार मालिकों पर कोई कार्रवाई ही नहीं होती तो ये आंकडे सरकार के पास कहां से आए? मोदी सरकार असुविधाजनक आंकडे इकट्ठे ही न करने, कर लिए तो प्रकाशित न करने और आंकड़ों में फर्जीवाड़ा करने में विशेष योग्यता हासिल कर चुकी है!!

मज़दूरों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा में कार्यरत एनजीओ ‘सेफ इन इंडिया फाउंडेशन’ ने हरियाणा और महाराष्ट्र में ऑटो सेक्टर सप्लाई चेन में काम कर रहे मज़दूरों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य का सर्वे किया। उनकी रिपोर्ट ‘कुचले गए 2023 (Crushed 2023)’ में उपलब्ध आंकडे भयावह हैं। हरियाणा में प्राणघातक दुर्घटनाओं का मात्र 6त्न ही रिपोर्ट होता है। उनमें भी सज़ा नहीं होती। हाथ-पैर कटने अथवा मौत हो जाने वाले दुर्घटनाओं में, 25त्न की वजह ये है कि आधुनिक मशीनों में अत्यंत कुशलता वाले काम में चौक से लाए, दिहाड़ी मज़दूरों को ही लगा दिया जाता है। पीडि़त मज़दूर कहते हैं कि सुपरवाइजर ने उन्हें ये काम करने को मज़बूर किया। दूसरी वजह; बिना आराम लगातार ओवरटाइम से उत्पन्न थकान। 70 त्न दुर्घटनाएं, जिनमें मज़दूरों की उंगलियां कट गईं, जिन्हें ‘डबल स्ट्रोक’ और ‘लूस पार्ट्स’ कहा जाता है, इस वजह से हुई क्योंकि मशीन की नियमित मरम्मत नहीं कराई गई।

73त्न दुर्घटनाओं में ईएसआई कार्ड दुर्घटना होने के बाद ही बना। मालिक ईएसआई की कटौती खा जाते हैं, यह अब सामान्य बात हो गई है। यही तो है मोदी सरकार द्वारा उद्योगपतियों को उपलब्ध, ‘व्यवसाय की सुगमता’ !! झोले भर-भर कर चुनावी बांड, यूं ही, बेवजह नहीं दिए जा रहे !!

उंगलियां कटने, कुचले जाने की 97त्न वारदातें फैक्ट्री के अंदर होती हैं जबकि मालिक उन्हें अक्सर बाहर सडक़ पर हुई दुर्घटनाएं बताते हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में, 2022 में कुल 800 मज़दूरों ने अपनी उंगलियां गवाईं, जो कि 2021 के मुकाबले 81त्न अधिक हैं। ‘सेफ इन इंडिया’ संस्था ने पाया कि उंगलियां कटने वाले मज़दूरों में, लगभग आधे मज़दूरों की उम्र 30 साल से कम थी, 90त्न को मालिकों ने काम से निकाल दिया और उनके परिवार कंगाली-भुखमरी में डूब गए। इन मज़दूरों में अधिकतर विस्थापित मज़दूर थे। फैक्ट्री में या तो कोई यूनियन नहीं थी या मालिकों की बनवाई हुई यूनियन थी। वैसे भी मज़दूरों से यूनियन बनाने का 1926 में हासिल उनका अधिकार छिन चुका है। रिपोर्ट यह हकीक़त भी बताती है कि मज़दूरों के हाथ- उंगलियां कटने के मामले में, उत्तराखंड की स्थिति हरियाणा और महाराष्ट्र से भी बदतर है।

अधिकतर दुर्घटनाएं ‘प्रेस मशीन’ में ही होती हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र में ऐसी गंभीर दुर्घटनाओं की जि़म्मेदार किसी भी प्रेस मशीन में ‘सेफ्टी सेंसर’ नहीं मिला जिसका होना अनिवार्य है। 91त्न प्रेस मशीन में सेफ्टी सेंसर है ही नहीं। उंगलियां गवा चुके मज़दूरों का यह भी कहना था कि मशीन का सेफ्टी ऑडिट, उनकी याद में या तो हुआ ही नहीं या होते वक़्त उन्हें बाहर निकाल दिया गया। जहां हर साल सैकड़ों मज़दूर, मामूली ऑक्सीजन मास्क न मयस्सर होने से सीवर टैंक की सफ़ाई करते हुए दम घुटकर मर जाते हों, आग बुझाने के संयत्र न होने से मज़दूर हर रोज़ जिंदा जलकर मर रहे हों, वहां प्रेस मशीनों में ‘सेफ्टी सेंसर’ की क्या उम्मीद की जाए!! मुनाफ़े की चक्की चकनाचूर हुए बगैर मज़दूरों को सुरक्षा नहीं मिलने वाली।

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Mazdoor Morcha
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