विदाई से पहले करोड़ों रुपये हड़पने में जुटीं डीईओ आशा दहिया

विदाई से पहले करोड़ों रुपये हड़पने में जुटीं डीईओ आशा दहिया
April 28 11:58 2024

डीईओ कार्यालय बना स्कूलों को मान्यता बेचने की दुकान

निजी स्कूलों को मान्यता देने के नाम पांच से सात लाख रुपये तक हुई वसूली

ऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) जिला शिक्षा अधिकारी आशा दहिया सेवानिवृत्ति से पहले निजी स्कूलों को मान्यता देने के एवज में करोड़ों रुपये डकारने में जुटी हैं। लूट कमाई में बाधा बन रहे बीईओ मनोज मित्तल को डीईओ ने आधे दिन की छुट्टी लेने को मजबूर किया। मनोज मित्तल का चार्ज संभालने वाले अन्य प्रिंसिपल को धमका कर मैडम ने अपना काम करा लिया। विभाग में चर्चा है कि एक एक निजी स्कूल से मान्यता दिलाने के नाम पर मैडम ने पांच से सात लाख रुपये वसूले हैं। मैडम सिर्फ मान्यता देने में ही वसूली नहीं कर रहीं, कमाई का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं दे रहीं, पूर्व डीईओ मुनेश चौधरी को लूट कमाई कराने वाला मान्यता के धंधे का पुराना दल्ला क्लर्क प्रवीण कुमार अब अपनी सेवाएं आशा दहिया को दे रहा है।

गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सख्ती के बाद ऐसे स्कूलों के मालिक मान्यता प्राप्त करने के डीईओ कार्यालय की परिक्रमा कर रहे हैं। डीईओ कार्यालय के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार सभी क्लस्टर रिसोर्स सेंटर (सीआरसी) से पचास के करीब निजी स्कूलों ने मान्यता के लिए आवेदन किया था। मैडम आशा दहिया को लूट कमाई की जल्दी थी तो उन्होंने सोमवार को सभी आवेदन बीईओ मनोज मित्तल को भेज कर उन पर हस्ताक्षर कर अग्रसारित करने का फरमान सुना दिया। बीईओ ने बिना सत्यापन और भौतिक जांच किए किसी भी स्कूल की मान्यता के आवेदन पर हस्ताक्षर करने में असमर्थता जताई। इस पर नाराज डीईओ ने उन्हें तुरंत छुट्टी पर जाने और अपना चार्ज किसी को सौंपने का सख्त मौखिक फरमान सुना दिया। मजबूर मनोज मित्तल ने ईमेल पर आधे दिन की छुट्टी डाली और अपना चार्ज एक स्कूल के प्रिंसिपल को देकर चले गए। मैडम ने उस प्रिंसिपल पर तगड़ा दबाव बनाया और मान्यता आवेदनों पर तुरंत हस्ताक्षर कर डीईओ कार्यालय पहुंचाने का आदेश दिया। मरता क्या न करता वाली स्थिति में फंसे प्रिंसिपल ने आला अधिकारी की खुशी के लिए हस्ताक्षर कर सभी आवेदन पहुंचा दिए।

मान्यता प्रक्रिया की औपचारिकता कराने के बाद डीईओ ने उन आवेदनों को छांट कर अलग किया जिनके प्रबंधन ने मैडम की आशा के अनुरूप चढ़वा पेश किया था। चर्चा है कि विद्यालयों को मान्यता दिलाने के नाम पर कम पांच लाख से सात लाख रुपये लेन देन हुआ है। अब न लेने वाला कहता है कि उसने लिया और न ही देने वाला बताता है कि कितने रुपये देने के बाद ‘मान्यता’ नामक कागज हासिल किया है। लेकिन यदि पचास में से तीस स्कूलों ने ही रुपया दिया होगा तो भी ये रकम दो करोड़ के आसपास पहुंचती है। जाहिर है कि इतनी बड़ी रकम कोई भी अधिकारी अकेले नहीं हड़प सकता तो मैडम ने भी ऊपर के अधिकारियों को खुश करने के लिए उन्हें भी हड्डी तो डाली ही होगी। वैसे बताते चलें कि आशा दहिया मैडम ने फरीदाबाद का डीईओ पद पाने के लिए पूर्व शिक्षामंत्री कंवरपाल गूजर की अच्छी खासी सेवा की थी। मुट्ठी गर्म होने के बाद ही गूजर ने उन्हें यहां भेजा था। जाहिर है कि अधिकारी ज्यादा हासिल करने के लिए ही कुछ देकर पद खरीदते हैं।

अब कंवरपाल गूजर के पास शिक्षामंत्रालय रहा नहीं इसलिए वो तो टुुकुर टुकुर देख रहा होगा कि माल तो गया लेकिन विभाग में बैठे उच्च अधिकारी के हाथ में नकेल तो हमेशा रहती है, इसलिए वे तो वसूली किए बगैर मैडम दहिया को छोडऩे वाले नहीं हैं। सवाल तो मौजूदा शिक्षा मंत्री सीमा त्रिखा पर भी बनता है वे इस शहर में बैठी कौन सा भाड़ झोंक रही हैं? क्या उन्हें नजर नहीं आ रहा जिनको मान्यता का कागज बेचा जा रहा है क्या उन स्कूलों ने दस दिन में मान्यता की सभी शर्तेंं पूरी कर दीं। इस मामले पर गतांक में मजदूर मोर्चा ने बड़ा स्पष्ट लिखा था कि मान्यता को लेकर जो शर्तें लगाई गई हैँ वो किसी ने भी पूरी नहीं करनी और तो और सरकारी स्कूल भी पूरी करते और न ही सरकार पूरी कराना चाहती है। ये शर्तें विशुद्ध रूप से लूट कमाई के लिए ही बनाई गई हैं। शिक्षा विभाग द्वारा मोटी रिश्वतें लेकर बेचे गए मान्यता पत्र के बावजूद भी स्कूलों की दशा में किसी प्रकार का सुधार होने की कोई संभावना नहीं हो सकती। हां, उक्त दी गई मोटी रिश्वतों की भरपाई के लिए स्कूल वाले अवश्य ही गरीब बच्चों का शोषण करेंगे। और हमारी मौजूदा शिक्षामंत्री सीमा त्रिखा जी टुकुर टुकुर देखती रहेंगी।

यूडाइस कोड दिलाने के लिए निजी स्कूलों लाखों का चढ़ावा चढ़ाया

डीईओ मैडम आशा दहिया ने सिर्फ स्कूलों की मान्यता दिलाने के लिए ही लूट कमाई नहीं की, निजी स्कूलों को स्थायी यू डाइस (यूनिफाइड डिस्ट्रक्ट इन्फार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) कोड दिलाने के लिए भी लाखों रुपयों की ऊपरी कमाई की।

डीईओ कार्यालय सूत्रों के अनुसार केंद्रीय सरकार की योजना यूडाइस के तहत जिले में सभी स्कूलों को कोड आवंटित किए गए हैं। पचास के करीब ऐसे निजी स्कूल थे जिन्हें औपचारिकताएं पूर्ण न होने के कारण अस्थायी यूडाइस कोड दिया गया था। अप्रैल में इस कोड की समय सीमा समाप्त हो गई। दोबारा कोड पाने के लिए इन्हें आवेदन करना था। सूत्रों के अनुसार डीईओ मैडम ने ऐसे निजी स्कूलों की सूची तैयार करवा उन्हें स्कूल बंद करवाने की चेतावनी दी, बचाने के लिए एक लाख रुपये का रेट तय किया। फिर क्या था, निजी स्कूल संघ के एक आला अधिकारी ने बिचौलिये की भूमिका निभाई और सौदा सत्तर हजार रुपये प्रति विद्यालय पर तय हुआ। सौदा तय होते ही मैडम ने सभी सीआरसी को रात आठ बजे ऑफिस बुला कर निजी स्कूलों के यूडायस आवेदन फार्म पर हस्ताक्षर करवा लिए। सूत्रों के अनुसार करीब पचास स्कूलों के फार्म आए थे, सीआरसी के हस्ताक्षर होने के बाद मैडम ने अपने हिसाब से एप्लीकेशन फारवर्ड किए, इस सबमें बीस लाख रुपये से भी अधिक की मलाई खाई गई।

कास्ट्यूम ग्रांट के नाम पर भी लाखों का खेल, दल्ले प्रवीण के माध्यम से हुई काली कमाई
डीईओ आशा दहिया की लूट कमाई के धंधे में उनके दो विश्वासपात्र क्लर्क प्रवीण कुमार और अंग्रेजी के प्रवक्ता अभयेंदर अहम भूमिका निभाते हैं। हाल ही में हुए कास्ट्यूम घोटाले में प्रवीण कुमार ने 85 हजार रुपये बनाए जबकि मैडम को साढ़े पांच लाख रुपये से अधिक का फायदा हुआ। दरअसल, नौ फरवरी 2024 को शिक्षा निदेशालय ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कास्ट्यूम आदि खरीदने की मद में चुने हुए प्रत्येक विद्यालय के लिए पचास हजार रुपये अनुदान राशि जारी की थी। जिले में 17 विद्यालय चुने गए थे। विद्यालयों को अपने स्तर पर सामान खरीद कर बिल डीईओ कार्यालय में लगाना था, ऐसा करने में डीईओ मैडम को कुछ नहीं मिलता। लूट कमाई और कमीशनबाजी के माहिर क्लर्क प्रवीण कुमार ने ग्रांट हड़पने की तरकीब निकाली। उसके सुझाव पर डीईओ ने सभी विद्यालयों के लिए सामान की खरीद अपने स्तर पर करवा दी, ये सामान पचास हज़ार रुपये बिल के साथ विद्यालयों को भेज दिया गया। प्रधानाचार्यों पर दबाव बनाया गया कि सामान रखें और बिल पर तुरंत हस्ताक्षर कर डीईओ कार्यालय भेजें। डीईओ कार्यालय से भेजा गया सामान काफी घटिया था और लोगों ने पूरे सामान की कीमत दस से बारह हजार रुपये आंकी। जो प्रिंसिपल दबंग थे और चोरी चकारी में यकीन नहीं करते थे, उन्होंने न तो बिल पर हस्ताक्षर किए और न ही सामान लिया। जो प्रिंसिपल काले कारनामों में माहिर थे या दब्बू थे उन्होंने चुपचाप सामान रखा और बिल पर हस्ताक्षर कर भेज दिया।

बताया जा रहा है कि प्रवीण ने सप्लाई करने वाले को स्कूलों में सामान नहीं लिए जाने का झांसा दिया और सामान पास कराने के लिए पांच हजार रुपये प्रति स्कूल कमीशन झटक लिया। सूत्रों के अनुसार निदेशालय की साढ़े आठ लाख रुपये ग्रांट में से बमुश्किल दो लाख रुपये खर्च किए गए बाकी डीईओ मैडम, ट्रेजरी आदि वालों ने बंदरबांट कर डाली। मैडम का दूसरा खास अभयेंदर उनके लिए निजी स्कूलों के बिचौलिए और कलेक्शन एजेंट के रूप में काम करता है। अभयेंदर निजी स्कूलों से मैडम के लिए कमाई करता है।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles