चुनावी मौसम में बुरी तरह फ्लॉप गई बिटुआ की भगवा यात्रा

चुनावी मौसम में बुरी तरह फ्लॉप गई बिटुआ की भगवा यात्रा
April 21 15:16 2024

रीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) छद्म देशभक्ति और धर्मोन्माद की अफीम चटा कर लोगों को अंधभक्त बनाने में जुटे संघ-भाजपा देश की महान विभूतियों की जयंती पर धार्मिक रैली या कोई दिखावटी कार्यक्रम आयोजित कर उनकी छवि धूमिल करने के एजेंडे पर पिछले एक दशक से जुटे हैं। इसी मानसिकता के चलते संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर जयंती पर 14 अप्रैल को भी संघी दंगाई बिट्टू ने भगवा यात्रा निकाली। लेकिन जनता उसकी इस गंदी नीयत को पहचान चुकी है और उसने ऐसे कार्यक्रमों से दूरी बना ली है। हालत ये हुई कि बिटुआ को पांच सौ आदमी जुटाने मुश्किल हो गए। रैली फ्लॉप होती देख बिटुआ और उसके दंगाई साथियों ने आंबेडकर जयंती कार्यक्रम में विध्न डालने का प्रयास किया। हथियार लहराते और धर्मेान्मादी नारे लगाते हुए हुड़दंगियों ने माहौल खराब करने का प्रयास किया। आंबेडकरवादियों की सूझबूझ से संघी दंगाई नाकाम रहे।

हिंदुत्व का कार्ड खेल कर सत्ता पर कब्जा करने के एजेंडे के तहत चुनाव आते ही संघ अपने संगठनों के द्वारा भगवा यात्रा, जागरण, कथित बाबाओं की कथा जैसे धार्मिक कार्यक्रमों को आए दिन आयोजन कराने में जुट जाता है। कहने को तो ये आयोजन धार्मिक होते हैं लेकिन इनका उद्देश्य प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से मोदी, भाजपा और उसके प्रत्याशियों के समर्थन में माहौल बनाना ही होता है। चुनाव आयोग यह सब देखने के बावजूद मौन साधे रहता है। लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है, ऐसे में संघी अपने एजेंडे को लागू करने में जुट गए हैं। जिस दंगाई बिट्टू को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने अपना सदस्य मानने से इनकार कर दिया था उसने आंबेडकर जयंती पर भगवा यात्रा निकालने की घोषणा की थी। संघ मामलों के जानकारों के अनुसार इस दिन भगवा यात्रा निकालने का उद्देश्य दलितों को धर्म के नाम पर समेटने और आंबेडकर जयंती पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के जरिए फैलाई जाने वाली जागरूकता से उन्हें दूर रखना होता है। धार्मिक दंगों में संघी इन्हीं दलितों को सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।

खट्टर के चहेते बिटुआ को उम्मीद थी कि चुनावी मौसम में उसकी भगवा यात्रा में हर साल की तरह ढाई हज़ार से अधिक लोग जुट जाएंगे लेकिन तीन सौ लोग जुटना मुश्किल हो गए। ऐसे में मोहल्लों से बच्चों को झंडे पकड़ा कर गाडिय़ों में भर कर लाया गया। रैली फ्लॉप होती देख बिटुआ ने मथुरा वृंदावन, होडल, हथीन, पलवल के कथित गोरक्षकों को फोन कर इज्जत बचाने की गुहार लगाई। वहां से कुछ गाडिय़ों में सौ डेढ़ सौ लोग आए तब जाकर भीड़ पांच सौ के करीब पहुंची।

एनआईटी दशहरा मैदान से यात्रा आरंभ करने से पहले बिट्टू ने नूंह दंगों पर भडक़ाऊ भाषण दिया और दंगों का ठीकरा पुलिस पर फोड़ते हुए बोला कि दूसरा समुदाय नल्हड़ मंदिर में दंगे की तैयारी एक महीने पहले से कर रहा था गुप्तचर विभाग को भी इस बात की जानकारी थी इसके बावजूद जलाभिषेक करने वालों की सुरक्षा में प्रशासन ने केवल होमगार्ड तैनात कर रखे थे। बिटुआ ने ये नहीं बताया कि जलाभिषेक यात्रा में वह हथियारों का जखीरा लेकर क्यों जा रहा था? धौज में तो खुद को जीजा बता कर नूंह वासियों को ललकार रहा था कि ‘फिर न कहना कि बताया नहीं’। और जब नूंह वासी स्वागत करने आए तो चप्पल छोड़ कर रोते हुए क्यों भागा था। खुद तो जान बचाने के लिए दुम दबाकर भाग निकला था लेकिन उसके आह्वान पर पहुंचे अन्य जिलों के युवक दंगे का शिकार हो गए, एक युवक की तो गोली लगने से जान तक चली गई थी।

इसी कायर बिट्टू के दंगाई साथी भगवा यात्रा में भी तलवार-फर्सा आदि लेकर धर्मोन्मादी नारे लगा रहे थे और पुलिस उनसे घातक हथियार जमा कराने की मिन्नत चिरौरी करती रही। एनआईटी तीन चौकी पुलिस ने दावा किया कि उसने दस बारह तलवारें और फर्से जमा करवा लिए लेकिन पूरी रैली में उन्मादी धारदार हथियारों का प्रदर्शन करते हुए चलते रहे। पुलिस ने केवल हथियार जब्त किए, इन लोगों के खिलाफ घातक हथियार रखने का केस भी तो दर्ज करना चाहिए था लेकिन खट्टर के चेले और उसके गुट के खिलाफ ऐसा करने की हिम्मत उसमें नजर नहीं आई, अन्यथा आदर्श आचार संहिता लागू होने के बावजूद सार्वजनिक रूप से हथियार का प्रदर्शन करने वालों को पुलिस तुरंत बुक कर देती।

करीब एक बजे यात्रा शुरू हुई, कहने को तो धार्मिक यात्रा थी लेकिन इसमें जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे आदि राजनीतिक संदेश देने वाले गाने डीजे पर बजाए जा रहे थे। लोगों के शामिल न होने पर यात्रा की लाज छोटे छोटे बच्चों और नाबालिग लडक़ों ने भगवा झंडा थाम कर और नारेबाजी कर बचाई। जो बड़े लोग यात्रा में शामिल थे वे किसी न किसी संगठन के पदाधिकारी होने के कारण अकड़ में थे। कहने को तो ये धार्मिक यात्रा थी लेकिन बिना हेलमेट के एक बाइक पर तीन-चार लोग लदे दिखाई दिए तो कारों की खिड़कियों से बाहर लटक कर और छत पर बैठ कर खुद की जान जोखिम में डालने वाले पूरे रास्ते पुलिस के सामने हुड़दंग करते रहे। यात्रा में संन्यासिनी का चोला ओढ़े दिल्ली से आई बताई जाने वाली आस्था मां का मेकअप और डिजाइनर कपड़े भी लोगों के कौतुहल का विषय बने रहे।

इधर दलित समाज के लोग नंगला से हार्डवेयर चौक की ओर आंबेडकर शोभा यात्रा लेकर निकल रहे थे। हार्डवेयर-प्याली चौक के पास दोनों यात्राओं के समर्थक आमने सामने हुए। उन्हें देखते ही भगवा यात्रा के उन्मादी हथियार लहराते हुए जोर जोर से धार्मिक नारे लगाने लगे, और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। दूसरी ओर से भी कुछ जोशीले युवक जय भीम का उदघोष करते हुए झंडे लेकर आगे बढ़े। आंबेडकरवादियों ने अपने जोशीले युवाओं को कानून हाथ में न लेने और आंबेडकर के मूल्यों का पालन करने की सलाह देते हुए शांत कराया, लेकिन दूसरी ओर हथियारों का लहराया जाना और नारेबाजी बढ़ती गई। बताया जाता है कि अंत में एसीपी विनोद कुमार ने उन्मादियों को किसी तरह शांत करा यात्रा को आगे बढ़वाया। यात्रा दुर्गा बिल्डर्स के मैदान में जाकर समाप्त हुई।

यात्रा भले ही फ्लॉप हुई लेकिन खर्च नहीं होने के कारण यात्रा के नाम पर की गई उगाही़ का मोटा हिस्सा भी बिट्टू को मिलने की चर्चाएं आम रहीं। भगवा यात्रा में कई साल शामिल रहे लोगों के अनुसार हर साल यात्रा के लिए आठ से दस लाख रुपये इक_ा होते थे। यात्रा में कम से कम पांच डीजे होते थे, ढाई से तीन हजार लोगों के खाने-पीने का इंतजाम, अस्सी से सौ कार-जीपों के ईंधन की व्यवस्था, पांच छह बैंड पार्टियां, शामियाना, वीआईपी का इंतजाम होता था। वसूली तो पिछले सालों जितनी ही हुई लेकिन इस बार केवल एक डीजे, बैंड पार्टी ही रखी गई, केवल दशहरा मैदान में भोजन की व्यवस्था की गई बचा हुआ भोजन ही दुर्गा बिल्डर पहुंचा दिया गया यानी वहां भोजन नहीं बनाया गया। कार-जीपें भी पंद्रह-बीस ही थीं, ऐसे में सारा खर्च डेढ़ से दो लाख में ही सिमट गया, बाकी धन की बंदरबांट होगी।

नाटक ही थी एसपीओ प्रमोद की बर्खास्तगी
खट्टर के प्यारे संघी दंगाई बिटुआ के आगे पुलिस आयुक्त राकेश आर्य भी इस कदर नतमस्तक हैं, तभी तो उन्होंने खुलेआम कानून हाथ में लेने के बावजूद उसकी सुरक्षा नहीं हटाई, बल्कि एसपीओ को बर्खास्त करने के साथ तुरंत ही दूसरा गनर उसकी सेवा में भेज दिया कि कहीं चंडीगढ़ में बैठे राजनीतिक आका नाराज न हो जाएं।

नूंह दंगे भडक़ाने के आरोपी बिट्टू बजरंगी को सत्ता के इशारे पर पुलिस ने सुरक्षा मुहैया कराई थी। दो नाबालिग बच्चियों को चॉकलेट देकर अपने घर ले जा रहे श्यामू को बिट्टू के चेलों ने इस शक में पकड़ लिया था कि वह बच्चियों को ले जाकर उनसे गलत हरकत करता। चेलों ने श्यामू को इसलिए भी पकड़ा था कि वो उसे मुसलमान समझे थे। उसे बिटुआ ने भी उसे मुसलमान मान कर चेलों की मदद से जमीन पर गिरा कर डंडे से पीटा था। ये सारी घटना बिटुआ की सुरक्षा में तैनात एसपीओ प्रमोद के सामने हुई। मीडिया में खबर आते ही पुलिस आयुक्त सक्रिय हो गए और बिटुआ को बचाने के सारे उपाय रचाए गए।

सबसे पहले तो श्यामू के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया, इसके बाद बिटुआ के खिलाफ साधारण मारपीट का केस दर्ज कर गिरफ्तारी और जमानत का नाटक किया गया। सुरक्षा वापस लिए जाने और हथियार का लाइसेंस जब्त किए जाने का कारण बताओ नोटिस जारी करने का भी खेल किया गया। इस पर भी बात न बनी तो एसपीओ को बर्खास्त कर पुलिस आयुक्त ने मानो तुरंत इंसाफ की बहुत बड़ी नजीर कायम कर दी।

कारण बताया गया कि बिटुआ कानून हाथ में ले रहा था लेकिन एसपीओ ने अपने अधिकारियों को इसकी सूचना नहीं दी। इधर प्रमोद को हटाया उधर तुरंत ही नया गनर बिटुआ की सेवा में पहुंचा दिया गया। भगवा यात्रा के दौरान बिटुआ ने नए गनर के सामने ही नहीं तमाम पुलिस वालों के बीच भडक़ाऊ भाषणबाजी की, उसके चेलों ने हथियारों का प्रदर्शन किया।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles