फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने के हथकंडे अपना रही भाजपा के नेता अपनी रैली में भीड़ जुटाने के लिए वोटरों को धमकाने पर उतर आए हैं। शिक्षामंत्री सीमा त्रिखा द्वारा 14 अप्रैल को एसजीएम नगर के बौद्ध विहार पार्क में विजय संकल्प रैली का आयोजन किया गया था। इसमें एसजीएम नगर, एनआईटी, तीन, पांच, बडख़ल, राजा चौक, मुल्ला होटल के आसपास रहने वाले लोगों को रैली में शामिल करने के लिए धमकी दी गई कि अगर नहीं पहुंचे तो सीवर जाम करवा दिया जाएगा और साफ नहीं करवाया जाएगा।
खुद को सीमा का खास और पार्षद पद का प्रत्याशी बताने वाले संजय महेन्द्रू ने शिक्षामंत्री का ये फरमान सुना कर लोगों को पकड़ पकड़ कर रैली में पहुंचाया। जिन्हें धमकाया नहीं जा सकता था उन्हें विकास कार्य कराने का प्रलोभन दिया गया। महेन्द्रू की तरह ही अन्य इलाकों में भी सीमा के गुर्गे इसी तरह लोगों को रैली में पहुंचाने के लिए जुटे रहे थे। इतने से भी संतुष्टि नहीं हुई तो मैडम ने अपने शिक्षामंत्री पद के रसूख का इस्तेमाल करते हुए डीईओ को प्राइवेट स्कूलों की बसें रैली में लगाने का हुक्म सुना दिया। स्कूलों की सैकड़ों बसें लगा दी गईं, इतना सब करने के बावजूद कार्यक्रम स्थल पर लगाई गईं 1200 कुर्सियां भी नहीं भरी जा सकीं।
डॉ. आंबेडकर जयंती पर भाजपा द्वारा बडख़ल विधानसभा और तिगांव विधानसभा में आयोजित विजय संकल्प रैलियां बुरी तरह फ्लॉप रहीं। रैलियों का समय इस तरह निर्धारित किया गया था कि एक जगह की भीड़ दूसरी जगह पहुंचा दी जाए लेकिन दिन में आयोजित हुई तिगांव रैली में ही करीब सत्तर फीसदी कुर्सियां खाली रह गईं। नए नए सीएम नायब सिंह सैनी के आने की घोषणा भी जनता को उत्साहित न कर सकी। रैली की सफलता के लिए बीते चार पांच दिन से जुटे कृष्णपाल गुर्जर भी खाली कुर्सियां देख जनता की नाराजगी समझ गए। यही कारण है कि उन्होंने शाम की रैली में दस लाख वोटों से जीतने का दावा भी नहीं किया।
सीमा त्रिखा ने बौद्ध विहार में रैली इसलिए रखी थी कि पास ही स्थित वाल्मीकि बस्ती के लोगों को सस्ते में खरीद कर ले आएंगे लेकिन भीम के नारे लगाने वाले किसी भी कीमत पर बिकने को तैयार नहीं हुए। पंजाबी बहुल विधानसभा क्षेत्र होने के कारण पूर्व सीएम खट्टर को भी बुलाया गया था लेकिन बिरादरी वाले उन्हें सुनने नहीं पहुंचे, सुनने को रह भी क्या गया था दस साल से सुनते ही तो आ रहे थे। दस साल तक कुछ नहीं करने वाले सीएम रहे खट्टर के पास उपलब्धियां गिनाने को तो कुछ था नहीं सो करनाल में सबसे ज्यादा वोट से जीतने का दावा कर स्थानीय जनता को मूर्ख बनाते नजर आए।
दोनों ही रैलियों में जो खास चीज देखने को मिली वह थी आम जनता का भाजपा और कृष्णपाल से मोहभंग। रैली में जो चंद लोग दिखाई दिए उनमें अधिकतर भाजपा के कार्यकर्ता, उनके परिवार के सदस्य, जन प्रतिनिधियों के लगुए भगुए और उनके द्वारा साम-दाम-दंड-भेद के जरिए बटोर कर लाए गए मुट्ठी भर लोग थे। आम जनता के दूरी बनाने से केंद्रीय और राज्य स्तरीय नेताओं को समझ में आ गया है कि इस चुनाव में उनकी नैया डूबने वाली है।