फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) काम नहीं काम का ढिंढोरा पीटने का मोदी-सैनी की भाजपा सरकारों का गुर सरकारी विभागों ने भी अपना लिया है। शिक्षा निदेशालय विद्यालयों को पर्याप्त टीचर, बिल्डिंग जैसी आधारभूत सुविधाएं तो उपलब्ध करा नहीं पा रहा है लेकिन निजी विद्यालयों की स्कूल बसों का ब्यौरा रखने की तैयारी कर रहा है, ऐसा करने से मानो शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन हो जाएगा।
सडक़ पर दौडऩे वाले हर वाहन का पंजीकरण, उसकी फिटनेस, चालक के कौशल की जांच परख करने के लिए आरटीए और ट्रैफिक पुलिस हैं। विद्यार्थियों को लाने-ले जाने वाली बसें भी इसी आरटीए विभाग द्वारा निर्धारित नियमों के तहत चलाई जाती हैं। सडक़ पर ये बसें ठीक से चलें इसके लिए यातायात पुलिस भी तैनात है। इसके अलावा स्कूल प्रबंधन भी अपनी बसों के सुरक्षित चलाए जाने के उपाय का जिम्मेदार है।
महेंद्रगढ़ जिले के कनीना में 11 अप्रैल को स्कूल बस अनियंत्रित होकर पलटने से छह बच्चों की मौत हो गई थी और करीब पंद्रह बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। घटना की जांच में प्रथम दृष्टया चालक का नशे में होना पाया गया था। इस घटना के बाद शिक्षा निदेशालय ने प्रदेश के सरकारी और निजी स्कूलों की बसों का ब्यौरा रखने का फैसला लिया है। निदेशालय ने सभी स्कूलों को गूगल फार्म जारी कर इसमें डेटा अपलोड करने का फरमान सुनाया है। फार्म में स्कूल का नाम, उसकी बसों का नंबर, रजिस्ट्रेशन, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस, चालक का नाम, उसकी शैक्षणिक योग्यता सहित अन्य जानकारियां देनी होंगी। इसके साथ ही सुरक्षित स्कूल वाहन पॉलिसी लागू करने का शपथपत्र भी देना होगा। यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि विद्यालय प्रबंधन गलत जानकारी देता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
शिक्षा मामलों के जानकारों के अनुसार अभिभावकों से हर सेवा के लिए मोटा शुल्क वसूलने वाले अधिकतर निजी व्यापारिक स्कूलों में सुरक्षित स्कूल वाहन पॉलिसी लागू है। प्रत्येक स्कूल बस पर स्कूल की ओर से हेल्पलाइन/ शिकायती नंबर दिया गया होता है, यदि चालक गलत ढंग से वाहन चलाता है तो इस नंबर पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। प्रत्येक बस में चालक, कंडक्टर के अलावा एक अटेंडेंट भी होता है जो बच्चों को स्कूल बस में सुरक्षित चढऩे-उतरने में सहयोग करता है।
शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार केवल फरीदाबाद में ही 1100 निजी स्कूलों में 3883 स्कूल बसें हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि पूरे प्रदेश में सभी निजी स्कूलों में बीस हजार से भी ज्यादा बसें होंगी। शिक्षा निदेशालय यदि ये ब्यौरा रख भी लेता है तो उसका करेगा क्या? ज्यादा से ज्यादा किसी गड़बड़ी की सूचना आरटीए या यातायात पुलिस को दे सकता है, लेकिन यह मुमकिन नहीं लगता, जो शिक्षा विभाग अपने ही काम समय पर नहीं पूरा कर पाता, सत्र शुरू होने के बाद भी स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंचा पाता वो निजी स्कूलों की बीस हज़ार बसों की निगरानी करेगा, कहना मुश्किल है।
महेंद्रगढ़ में हादसा चालक के नशे में होने के कारण हुआ था, चालक नशा न करे यह केवल स्कूल प्रबंधन ही रोजाना सुनिश्चित कर सकता है न कि शिक्षा निदेशालय, यानी बसों का आंकड़ा रखने की कवायद केवल दिखावटी ही है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि सरकार के इशारे पर काम करने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारी निजी स्कूलों की बसों की व्यवस्था भले ही न सुधार पाएं लेकिन राजनैतिक रैलियों में बसों का इंतजाम मुस्तैदी से करेंगे। जैसा कि फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल के प्रदेश अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने सोमवार को दावा किया था कि भाजपा द्वारा 14 अप्रैल को फरीदाबाद में आयोजित विजय संकल्प रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने के लिए निजी स्कूलों की 430 बसें जबरन लगाई गईं। उनका कहना था कि पिछली सरकारें भी ऐसा करती थीं लेकिन बसों में डीजल वो ही भरवाते थे, अब हमें अपनी बसें भी लगानी पड़ती हैं और डीजल भी खुद ही भरवाना पड़ता है।
शिक्षा विभाग स्कूल बसों की गिनती करने के साथ सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर ध्यान दे तो बेहतर होगा, प्रदेश के अधिकतर स्कूल एक या दो शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं, अनेक में सभी विषय के टीचर नहीं हैं, फर्नीचर खराब है तो इमारत नहीं होने या जर्जर होने के कारण कई स्कूल आसमान के नीचे चलाए जा रहे हैं, बहुत से स्कूलों में बच्चों के प्राथमिक उपचार की किट तक एक्सपायर हो चुकी है, कक्षाएं शुरू हो गईं लेकिन किताबें नहीं वितरित की गईं, जैसी अनेक विसंगतियां हैं जिन्हें दूर किया जाना शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
स्कूल बस ड्राइवरों को ट्रेनिंग दिलवायेंगे डीसी विक्रम छह स्कूली बच्चों की मौत से उद्वेलित डीसी $फरीदाबाद विक्रम ने आदेश जारी किया है कि शहर भर के 3338 स्कूली बसों के ड्राइवरों व कंडक्टरों को बाकायदा प्रशिक्षण दिलवाया जायेगा। प्रशिक्षण देने का यह काम सरकारी महकमा रोडवेज़ करेगा। पहला सवाल तो यह पैदा होता है कि हरियाणा रोडवेज के कौन से स्कूल में इन्हें प्रशिक्षण के लिये भेजा जाएगा? क्या रोडवेज़ के पास इतने ड्राइवरों को प्रशिक्षण देने का कोई प्रबन्ध है? जाहिर है इस सवाल पर विचार करने की जरूरत डीसी साहब ने नहीं की। हां, स्कूलों पर अधिक दबाव पडऩे पर, ले-दे कर, इस ‘प्रशिक्षण’ के प्रमाणपत्र जरूर हासिल कर लिये जाएंगे।
दूसरा सवाल यह पैदा होता है कि क्या 10-10, 20-20 साल से ड्राइवरी कर रहे इन ड्राइवरों के लाइसेंस फर्जी हैं? क्या इन्हें लाइसेंस जारी करते वक्त सम्बन्धित अधिकारी ने इनका टेस्ट नहीं लिया था? तीसरा सवाल यह भी बनता है कि उक्त प्रशिक्षण केवल स्कूली ड्राइवरों के लिये ही क्यों शहर में चलने वाले तमाम ड्राइवरों के लिये क्यों नहीं? दरअसल जब भी कोई बड़ी दुर्घटना होती है तो लापरवाही से सोया प्रशासन एकदम हड़बड़ा कर उठ खड़ा होता है। न केवल खड़ा होता है बल्कि अपनी सक्रियता को प्रदर्शित करने के लिये कुछ न कुछ दिखाना चाहता है।