मंत्री गूजर के भांजे अमर चेची ने दिनांक 29 मार्च की शाम 16 सेक्टर स्थित ओम स्वीट्स में सीआईडी के एएसआई पंकज कुमार और उनके रिश्तेदार को जमकर पीटा। रंजिश यह थी कि बीते दिनों हरियाणा पुलिस मुख्यालय द्वारा प्रकाशित पुलिस के दल्लों की सूची में अमर चेची का नाम पंकज ने डलवाया था।
पंकज ने बुरी तरह से पिटने की लिखित शिकायत पास ही स्थित पुलिस चौकी में दी लेकिन पुलिस रपट लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। शिकायत देने के एक दिन बाद भी केस दर्ज नहीं होने पर महकमें में रोष के सुर उठने लगे, पुलिसकर्मियों में उबाल आते देख अमर चेची के खिलाफ फर्जी धाराओं में केस दर्ज कर कर्तव्यों की इतिश्री कर ली गई। मंत्री के इशारे पर पुलिस के आला अधिकारियों ने धारा 332 यानी सरकारी मुलाजिम पर हमला, 353 यानी लोक सेवक को डराने की नीयत से हमला, 379 बी यानी मारपीट कर कीमती सामान छीनना जैसी गंभीर धाराएं नहीं लगने दीं।
सवाल है कि क्या पुलिस कमिश्नर राकेश आर्य पुलिस वालों के पिटने पर ऐसे ही मुकदमे दर्ज करवाएंगे? ऐसे ही पुलिस कर्मियों को पिटवाएंगे? आला अधिकारियों की ऐसी हरकतों से मातहत पुलिसकर्मियों का मनोबल गिरता है।
खास बात ये है कि सीआईडी महकमा सीधे मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करता है, उसके एएसआई पर हमला हुआ और मुख्यमंत्री चुपचाप बैठे रहे, माना जा सकता है कि गुंडे अमर चेची को सीएम का भी समर्थन प्राप्त है। केस बहुत ही हल्का था तो पुलिस ने अमर चेची की सम्मानपूर्वक गिरफ्तारी कर जमानत भी दे दी। बताते चलें कि जब पुलिस के दल्लों की सूची जारी हुई थी तब अमर चेची और राजू पंडित ने तत्कालीन डीसीपी मुकेश मल्होत्रा को उनके कार्यालय में ही ये कहते हुए गालियां सुनाई थीं कि तुझे हमने सिफारिश कर डीसीपी लगवाया और तू हमारी ही सूची बना रहा है, बताते हैं कि डीसीपी मल्होत्रा ने घिघियाते हुए सफाई दी थी कि उन्होंने सूची नहीं बनवाई, बल्कि सीआईडी ने बनाई थी। यानी गुंडों के आगे नतमस्तक डीसीपी ने महकमे की गुप्त जानकारी उन्हें बता दी थी।
अमर चेची तब से ही सीआईडी के एएसआई पंकज से बदला लेने की फिराक में था, और सार्वजनिक स्थल पर पुलिस कर्मी को पीट कर उसने अपना आतंक व रसूख जता भी दिया, एफआईआर में मनमर्जी धाराएं लगवा कर उसने ये भी साबित कर दिया कि पुलिस भी उसकी मुट्ठी में है।
संदर्भवश, मंत्री गूजर के चेची जैसे गुंडों ने 10 जून 2015 में जब थाना ओल्ड फरीदाबाद में घुस कर पुलिसकर्मियों पर हमला किया था तो तत्कालीन सीपी सुभाष यादव के नेतृत्व पर भरोसा करते हुए तत्कालीन डीसीपी क्राइम विजय प्रताप सिंह ने मौके पर थाने में पहुंच कर तमाम गुंडों की न केवल यादगार खातिर तवाजो की बल्कि मजबूत धाराओं में केस भी दर्ज किए। उस वक्त गूजर बिलबिला कर रह गए लेकिन सत्ता के बल पर चौबीस घंटे के अंदर अंदर मुकदमे की तफ़्तीश फरीदाबाद पुलिस से लेकर अपने गूजर भाई केपी सिंह डीजीपी स्टेट क्राइम के हवाले करवा दी थी। समझा जा सकता है कि गुंडों को पालने व संरक्षण देने का किशनपाल गूजर का इतिहास कोई नया नहीं है।