फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शासन-प्रशासन की कतई कोई इच्छा नहीं है कि नागरिकों को बिना मिलावट के शुद्ध खाद्य सामग्री उपलब्ध होती रहे। हां, मिलावट की रोकथाम के नाम पर अफसरों व नेताओं का वसूली- धंधा चलता रहे, इसके लिये छापेमारी जरूर की जाती है।
यूं तो हर समय मिलावटखोरी का धंधा चलता रहता है लेकिन त्योहारी मौसम में, क्योंकि खपत ज्यादा बढ़ जाती है, इसलिये मिलावटखोरी भी बहुत बढ़ जाती है। इसे रोकने का जैसा काम हर समय व हर स्थान पर होते रहना चाहिये वह यदा-कदा ही, खास कर त्योहारी मौसम में ही केवल इसलिये किया जाता है कि मिलावटखोर मिलावट पकडऩे वाले महकमे को पहचानते रहें।
इसी प्रक्रिया के तहत दिनांक सोमवार को सेक्टर 28 स्थित एक दुकान से डेयरी उत्पादों के चार नमूने भरे गये। यहां से दूध, मावा,घी आदि के नमूने भरे गए। और जीवन नगर की दो दुकानों से छ: नमूने लिये गये। मजे की बात तो यह है कि छापेमारी के विरोध में तुरन्त सभी दुकानें बंद हो गई। यदि सैम्पल लेने की ये प्रक्रिया सातों दिन व चौबीसों घंटे चलती रहे तो ये दुकानदार कब तक अपनी दुकानें बंद रख पाएंगे? दूसरा बड़ा एवं मजेदार मुद्दा यह है कि लिये गये सैम्पल पंचकूला स्थित जांच प्रयोगशाला में भेजे जाते हैं। वहां से इनके परिणाम कब आएंगे कोई नहीं जानता। इतना ही नहीं सम्बन्धित दुकानदार सैम्पल पास कराने के लिये उस प्रयोगशाला तक भी पहुंच जाते हैं और वहां लेनदेन करके अपना जुगाड़ फिट कर लेते हैं। इतना ही नहीं सैम्पल फेल होने पर सजा भी मात्र साल-छ: महीने की ही होती है। वैसे सैम्पल लेने-देने की यह नौबत बहुत कम ही आती है। लगभग तमाम मिलावटखोर सैम्पल लेने वालों से मिले-जुले रहते हैं और बंधी मंथली यथा समय अदा करते रहते हैं। सैम्पल तो केवल उन्हीं के भरे जाते हैं जिनसे मंथली लेन देन का सौदा न पट रहा हो।
यदि वास्तव में ही शासन-प्रशासन अपने नागरिकों को मिलावटखोरी से सुरक्षित रखना चाहता तो यदा-कदा की अपेक्षा लगातार सैम्पलिंग होती रहे और सैम्पल को पंचकूला भेजने की अपेक्षा वहीं मौके पर ही, सार्वजनिक तौर पर मिलावट सिद्ध करके दोषी को कड़ी सजा दी जाए। मौजूदा व्यवस्था में लिये गये सैम्पल तो पंचकूला पहुंच जाते हैं और मिलावटी माल नागरिकों के पेट में पहुंचता रहता है। क्या लाभ है ऐसी बेहूदा जांच व्यवस्था का?