अंधी मुनाफाखोरी के लालच में कम्पनी मालिकान अपने मज़दूरों के जान की कोई कीमत नहीं समझते। इसी हकीकत के मद्देनजर कारखानों में सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया था। इनके तहत सरकार का श्रम विभाग समय-समय पर कारखानों की जांच करके सुरक्षा नियमों के लागू होने की पुष्टि करता था। नियमों की उल्लंघना करने वाले कारखानेदारों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती थी। यह बात अलग है कि कार्रवाई करने के बदले अधिकारी मोटी रिश्वतें लेकर खामोश हो जाते थे। सरकार ने रिश्वतखोरी से निपटने के बजाय श्रम विभाग को ही ताला लगा दिया।
जहां तक बात है कि बॉयलर फटने की, तो इसका एकमात्र कारण बॉयलर का सामयिक परीक्षण न होना है। विदित है कि किसी भी कारखाने में कोई भी बॉयलर तब तक नहीं लगाया जा सकता जब तक कि बॉयलर निरीक्षक उसका परीक्षण करके उसके सुरक्षित होने का प्रमाणपत्र जारी न कर दे। इतना ही नहीं एक निश्चित समय अवधि पर इसका पुनर्निरीक्षण होना भी अनिवार्य है। बॉयलर नियमावली के अनुसार वही ऑपरेटर इसे चला सकता है जो इसके चलाने की योग्यता का प्रमाणपत्र रखता हो। इसके लिये बॉयलर की शक्ति के अनुसार ए,बी,सी प्रमाणपत्र निर्धारित किये गए हैं।
उक्त तथ्यों के आधार पर मज़दूरों की हत्या के लिये जहां एक ओर कारखानेदार जिम्मेदार हैं तो वहीं दूसरी ओर श्रम विभाग के सम्बन्धित अधिकारी भी इस हत्याकांड में बराबर के दोषी हैं। इसलिये इन सबके विरुद्ध सदोष मानव-वध का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिये, परन्तु पूंजीपतियों की टुक्कडख़ोर सरकार ऐसा कभी नहीं करने वाली।