एजूकेशन सिस्टम ने बच्चों को रेट रेस का हिस्सा बना दिया माता पिता की बढ़ती अंतहीन महत्वाकांक्षा ने बच्चों से बचपन छीना करनाल (शैलेंद्र जैन)आए दिन देश में विद्यार्थियों के आत्महत्या करने की खबरें समाज के खोखलेपन को उजागर कर रही हैं। पिछले दिनों कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रही दो छात्राओं द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटना ने समाज के प्रबुद्ध जन को सोचने पर मजबूर कर दिया है। एक अनुमान के अनुसार पिछले एक साल में पचास हजार से अधिक लोग आत्महत्या कर चुके हैं।
अकेले कोटा में एक हजार से ज्यादा बच्चे आत्महत्या कर चुके हैं। देश भर के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इन मुद्दों को लेकर देश के जाने माने शिक्षाविद तथा मोटीवेशनल विशेषज्ञ मिहिर बनर्जी से चर्चा की। उन्होंने इसका प्रमुख कारण देश की दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली, बढ़ती प्रतिस्पर्धा, माता पिता की बच्चों के प्रति बढ़ती महत्वाकांक्षा और पश्चिम के अंधाधुंध अंधानुकरण किया जाना बताया। उन्होंने कहा कि इससे हम न तो पश्चिम के बन पाए न ही स्वदेशी रह गएं। बच्चे तनाव का शिकार हो रहे हैं। हमारे स्कूलों में मनोवैज्ञानिक तथा गाइडेंस काउंसलर नही हैं। हम बच्चों को चूहा दौड़ का हिस्सा बना रहे हैं।
आत्महत्या के लिए कहीं ना कहीं माता पिता और शिक्षक समाज की बढ़ती संवेदनहीनता, बच्चों में सहनशीलता का अभाव बच्चों की संवेदनाओं के साथ समाज की बिगड़ती संरचना इसके लिए दोषी हैं।
आज बच्चों में अकेलापन बढ़ रहा हैं। पैसा कमाने की होड़ और मातापिता की बढ़ती महत्वाकांक्षा के कारण अब कक्षा तीन से ही बच्चों के लिए डाक्टर इंजीनियर बनने की नर्सरी बनाई जा रही है। उन्होने शिक्षा प्रणाली में संशोधन पर बल दिया। उनके अनुसार मौजूदा शिक्षा प्रणाली के कारण बच्चों का बचपन उनकी मासूमियत संवदनाएं उनकी सुकोमलता खत्म हो रही हैं। उनके भीतर का खालीपन उनको डिप्रेशन और आत्महत्या की तरफ ले जा रही हैं। बच्चों की सुनने वाला कोई नहीं हैं। वह दबते जा रहे हैं। शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों को पैसा कमाने की मशीन के बजाय एक बेहतर, जिम्मेदार, सामाजिक रूप से सक्रिय और कामयाब नागरिक बनने में मदद करे।