फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) दिनांक 16 मार्च को प्रात: 8:20 पर ईएसआई कॉर्पोरेशन मुख्यालय से डॉ. असीम दास को बतौर डीन ईएसआई मेडिकल कॉलेज अलवर का चार्ज सम्भालने का आदेश प्राप्त हुआ। वे तुरंत $फरीदाबाद मेडिकल कॉलेज का डीन पद छोड़ कर करीब साढ़े दस बजे अपने नवनियुक्ति स्थान पर जा विराजे, यानी कि उन्हें अपना तबादला रुकवाने अथवा कुछ और समय तक यहां अटके रहने में कतई कोई रुचि नहीं थी। एक विशुद्ध पेशेवर की भांति तुरंत अपनी नई तैनाती पर पहुंच गये।
दरअसल इस तबादले की सम्भावना बीते करीब दो माह से बनी हुई थी। विदित है कि अलवर का मेडिकल कॉलेज अस्पताल पूरी तरह से ठप्प पड़ा हुआ था। इसका बड़ा कारण तो यह था कि इस क्षेत्र में आईपी (बीमाकृत मज़दूरों) की संख्या नगण्य थी। इसका निर्माण केवल राजनीतिक दबाव द्वारा तत्कालीन केन्द्रीय श्रम मंत्री शीश राम ओला ने कराया था। करीब तीन वर्ष पूर्व डॉॅ. असीम दास को इसका अतिरिक्त कार्यभार सौंप कर चलाने का दायित्व दिया गया था। लेकिन अब केन्द्रीय श्रम मंत्री भूपेन्द्र सिंह यादव को अलवर से संसदीय चुनाव लडऩे के लिये भाजपा ने खड़ा कर दिया है तो उन्होंने अपने क्षेत्र के इस संस्थान को विकसित करने की योजना बनाई है। शायद वे चाहते होंगे कि अलवर का मेडिकल कॉलेज अस्पताल भी $फरीदाबाद जैसा विकसित हो जाए।
यदि श्रम मंत्री भूपेंद्र सिंह थोड़ी समझदारी से काम लेते तो डॉक्टर दास का इस्तेमाल अपने अलवर वाले संस्थान की अपेक्षा पूरे देश के ईएसआई संस्थानों का कायाकल्प कराने में कर सकते थे। डा. दास की पेशेवराना तथा प्रशासनिक क्षमता के साथ साथ उनकी ईमानदार व कमर्ठता को देखते हुए उन्हें ईएसआई कॉरपोरेशन मुख्यालय का प्रमुख बनाया जा सकता था। यदि उन्हें यह कार्यभार सौंपा जाए तो आज जो ईएसआई अस्पताल 38 प्रतिशत क्षमता पर चल रहे हैं वे न केवल शत प्रतिशत क्षमता पर चलते बल्कि उससे भी आगे चल सकते हैं। जो बसई दारापुर संस्थान आज 33 प्रतिशत क्षमता से चल रहा है, जहां के मरीजों को फरीदाबाद रेफर किया जा रहा है वह खुद भी फरीदाबाद के ऊपर हो सकता था।
विदित है कि सन 2012 में डॉ. असीम दास को फरीदाबाद में बतौर डीन नियुक्त किया गया था। उस समय मेडिकल कॉलेज अस्पताल की इमारत निर्माणाधीन थी। मरीजों के इलाज के लिये मात्र 200 बिस्तरों वाला पुराना अस्पताल ही चालू था। उस वक्त यहां की ओपीडी मात्र 1000-1200 प्रति दिन होती थी। वार्डों में भर्ती मरीजों की संख्या भी 100 से अधिक नहीं होती थी। इसके विपरीत आज नवनिर्मित मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 4000-4500 मरीज़ प्रति दिन ओपीडी में आते हैं और 500 मरीज़ों के लिये बने वार्डों में 900 से भी अधिक मरीज़ इलाज के लिये दाखिल रहते हैं। पुराने अस्पताल में जहां डॉक्टरों की कुल संख्या 15-20 होती थी वहां आज करीब 300 तो वे एमबीबीएस डॉक्टर हैं जो अपनी पीजी (स्नातकोत्तर) पढ़ाई कर रहे हैं। पढऩे-पढ़ाने व इलाज करने वाले वरिष्ठ डॉक्टरों की बड़ी संख्या तो अलग से है ही।
मज़दूरों के हक में यह सब परिवर्तन यकायक नहीं हो गया। इसके लिये जहां स्थानीय मज़दूर संगठनों को भारी संघर्ष करना पड़ा वहीं डॉ. दास ने भी इस संस्थान को चालू कराने के लिये कहीं ज्यादा बढ़-चढ़ कर संघर्ष किया था। ईएसआई कॉर्पोरेशन में बैठे जनविरोधी अ$फसरशाह जो इस संस्थान को किसी भी कीमत पर चलने नहीं देना चाहते थे वे डॉ. दास को कहा करते थे कि वे क्यों इसको चलाने के लिये भाग-दौड़ कर रहे हैं, क्यों नहीं चद्दर तान कर सो जाते, वेतन तो यूं ही मिलता रहेगा? लेकिन डॉ. दास ने हिम्मत नहीं हारी। अंतत: उनके सतत प्रयास सफल हुए और सन 2015 में एमबीबीएस का पहला बैच यहां दाखिल हुआ। उसके बाद से डॉ. दास के नेतृत्व में इस संस्थान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कॉर्पोरेशन मुख्यालय द्वारा समय-समय पर तरह-तरह की रुकावटें खड़ी करने के बावजूद डॉ. दास ने इस संस्थान को न केवल हरियाणा का सर्वोच्च बल्कि देश के गिने-चुने संस्थानों में ला खड़ा किया। सन 1960 में बना रोहतक का मेडिकल कॉलेज आज इस संस्थान के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता।
अस्पताल की सफलता एवं शोहरत की बदौलत, कार्पोरेशन मुख्यालय में बैठे कल तक विरोध करने वाले अधिकारी अब दिल्ली के अस्पतालों को छोड़ कर यहां इलाज कराने को आने लगे हैं। पूर्व केन्द्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार, बंडारू दत्तात्रेय स्वयं तथा उनके परिजन यहां इलाज कराने को आ चुके हैं। मौजूदा श्रम मंत्री का तो किसी अन्य अस्पताल पर विश्वास ही नहीं है, हर उपचार के लिये पूरी तरह से इसी अस्पताल पर निर्भर हैं। विदित है कि सन 2012 से एक मेडिकल कॉलेज दिल्ली के बसई दारापुर में भी कार्पोरेशन चला रहा है। लेकिन न तो वहां मज़दूर जाने को राजी है और उच्चाधिकारियों को तो जाना ही क्या था। वहां के मरीज़ भी रे$फर होकर यहीं आते हैं।
अस्पताल की इसी शोहरत को देखते हुए अनेकों औद्योगिक संस्थानों ने इसे करोड़ों रुपये के उपकरण आदि दान में दिये हैं। हाल ही में करीब साढ़े 18 करोड़ रुपये का रोबोटिक सर्जरी उपकरण पावर ग्रिड कॉरपोरशन ने खरीद कर दिया है। डॉ. दास ने अपने चातुर्य से इस एक उपकरण के साथ ऐसा ही दूसरा उपकरण रूंगे में ले लिया। इतना ही नहीं उसे लगातार अपडेट करने का मुहायदा भी कम्पनी से करा लिया। इसी तरह कैथलैब व कई बेशकीमती उपकरण भी डॉ. दास ने संस्थान के लिये दान में प्राप्त करके मज़दूरों को बेहतर सेवा देने का सफल प्रयास किया है। इन्हीं प्रयासों के चलते आज यहां हृदय रोग सम्बन्धी इलाज हो रहे हैं किडनी व कॉर्निया प्रत्यारोपण हो चुका है। कैंसर के सैंकड़ों मरीजों को मौत के मुंह में जाने से इस संस्थान ने बचाया है।
डॉ. दास के जाने की कमी तो खलेगी ही, वैसे कोई भी व्यक्ति सदा के लिये किसी पद पर तैनात तो रह नहीं सकता। लेकिन डॉ. दास ने पद छोडऩे से पूर्व अपने स्थान पर डॉ. अनिल कुमार पांडेय को पदासीन करा कर यह आशा तो बंधाई ही है कि संस्थान उनके जाने के बाद भी उनकी दिखायी विकास की सीढिय़ां चढ़ता जाएगा।