डीजी दीपक कुमार ने किया बसई दारापुर अस्पताल का दौरा

डीजी दीपक कुमार ने किया बसई दारापुर अस्पताल का दौरा
March 04 07:08 2024

सन 2012 से बसई दारापुर में जो मेडिकल कॉलेज अस्पताल चलाया जा रहा है इसमें एमबीबीएस की पढ़ाई न होकर केवल पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई ही कराई जाती है। करीब दस-बारह साल पहले इस अस्पताल की बेड ऑक्यूपेंसी शत प्रतिशत से भी अधिक थी जो कि अब घट कर पचास प्रतिशत बताई जा रही है। गौरतलब है कि इस अस्पताल में कुल 1000 बिस्तरों की क्षमता है। इनमें से चार सौ पर तो पक्का ताला लगा रखा है इसलिए उनकी तो गिनती ही नहीं करते। बाकी बचे 600 में से कभी भी 300 बेड नहीं भरे जाते।

विदित है कि किसी भी अस्पताल में आने वाला कोई भी मरीज़ तभी वहां टिकेगा जब वहां इलाज की उचित व्यवस्था होगी। इस अस्पताल में न तो आवश्यक एवं पर्याप्त उपकरण हैं न ही दवाएं व अन्य साज़ो सामान। इनकी खरीदारी पर पैसे को व्यर्थ गंवाना समझा जाता है, पैसा खर्च करने के बजाय मरीज़ों को इधर उधर के सरकारी अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। अब क्योंकि फरीदाबाद में काफी सुविधाएं उपलब्ध होने लगी हैं इसलिए यहां भी रेफर किया जाने लगा है। अकेले बसई दारापुर से ही नहीं, दिल्ली के तमाम अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं जुटाने के बजाय सबको फरीदाबाद रेफर करना बेहतर समझा जाता है। बीते सप्ताह नोएडा के एक कैंसर मरीज को फरीदाबाद रेफर किया गया तो कैंसर विशेषज्ञ डाक्टर ने दवाई लिख दी और उसे अपने ही अस्पताल में जाकर लेने को कहा। वहां के डॉक्टर ने महंगी होने के कारण दवा देने से मना कर दिया। इन अस्पतालों की नीति ये है कि जो कुछ है उसी से काम चलाओ, खर्चा मत बढ़ाओ।

दिनांक 11 जनवरी को डीजी दीपक कुमार ने अस्पताल की दशा-दिशा और सुविधाओं को जांचने के लिए बसई दारापुर अस्पताल का दौरा किया, बताया जाता है कि वहां उन्होंने डॉक्टरों से विचार विमर्श किया, कार्यशैली को देखा, उनकी आवश्यकताओं को समझा, वहां आने वाले मरीजों का भी जायजा लिया लेकिन इस सब के बावजूद न तो अस्पताल की कार्यशली में कोई परिवर्तन आया न ही मरीजों को कोई लाभ हुआ। अस्पताल को ‘जो उपलब्ध है उसी से काम चलाया जाए’ नीति के आधार पर ही चलते रहने दिया गया। सर्वविदित है कि जब तक मरीजों को आवश्यक दवाइयां व इंप्लांट आदि उपलब्ध नहीं कराए जाएंगे तो कोई भी मरीज वहां नहीं टिक पाएगा, यही वो मूल कारण हैं जिसकी वजह से अस्पताल की वास्तविक बेड ऑक्यूपेंसी 33 प्रतिशत है। यह स्थित केवल इस अस्पताल की ही नहीं है ईएसआई कॉरपोरेशन के तमाम अस्पतालों की बेड ऑक्यूपेंसी 38 प्रतिशत से अधिक नहीं है। मजे की बात तो ये है कि देश भर के प्रत्येक अस्पताल की स्थिति को डीजी अपने कार्यालय में डिस्प्ले बोर्ड पर बैठे-बैठे देख सकते हैं।

यह भी गौरतलब है कि बसई दारापुर के इस अस्पताल का दो साल तक बेड़ा गर्क करने वाले दीपक शर्मा को इसका इनाम देते हुए मेडिकल कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन एमसीएमई के पद से नवाजा गया ताकि वे देश के अन्य अस्पतालों का भी बेड़ा गर्क कर सकें। उनके बाद उस अस्पताल में तैनात हुई दीपिका गोविल ने भी इस अस्पताल का सत्यानाश करने में कोई कसर न छोड़ी तो उन्हें भी एमसीएमई के पद से पुरस्कृत किया गया।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles