फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का ख्वाब दिखाने वाले प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज प्रदेश में न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। जिले को दी गईं 26 एंबुलेंस में से 14 एंबुलेंस चालकों की भर्ती नहीं किए जाने के कारण खड़े-खड़े ज़ंग खाकर खराब हो रही हैं। लगता है कि 108 एंबुलेंस का ढिंढोरा पीटने वाली खट्टर सरकार प्राइवेट एंबुलेंस माफिया को फायदा पहुंचाने के लिए चालकों की भर्ती नहीं कर रही है। जनता तो खैर मुफ़्त एंबुलेंस सेवाओं के विज्ञापन से ही निहाल होती रहेगी, और मरीज़ों केलुटने के लिए सरकारी अस्पताल से निजी अस्पताल पहुंचाने का खेल जारी रहेगा।
बीमार, गर्भवती, घायलों को मुफ़्त में सरकारी अस्पताल तक ले जाने के लिए सरकार ने जिले में 108 एंबुलेंस के 26 यूनिट आवंटित किए हैं। इन एंबुलेंस को 24 घंटे सेवा देने के लिए तीन शिफ्ट में 78 चालक होने चाहिए लेकिन जिले में केवल 72 एंबुलेंस चालक के पद ही स्वीकृत किए गए यानी दो एंबुलेंस बिना चालक के ही खड़ी रहनी थीं। स्वीकृत 72 पदों में से केवल 31 ही भरे गए हैं यानी 41 पद खाली हैं। चालक नहीं होने के कारण केवल 12 एंबुलेंस ही काम कर रही हैं। इनमें भी एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) की दो एंबुलेंस में से एक ही काम कर रही है। यानी चालकों के 41 पद खाली होने के कारण आधी से ज्यादा एंबुलेंस खड़ी हैं। स्वीकृत पदों के केवल 43 प्रतिशत होने के कारण 108 एंबुलेंस के ये मु_ी भर चालक मनमानी पर उतारू हैं। बीके से सफदरजंग अस्पताल दिल्ली रेफर किए जाने वाले मरीजों को ये एंबुलेंस चालक मोटे कमीशन की लालच में बहलाफुसला कर निजी अस्पताल पहुंचा देते हैं।
शिकायत करने के बावजूद इन एंबुलेंस चालकों पर सीएमओ-पीएमओ न तो कोई कार्रवाई करते हैं और न ही इनकी नोडल एजेंसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अधिकारियों को रिपोर्ट भेजी जाती है। अधिकारी, कमीशनखोरी में हिस्सा पत्ती होने के कारण या चालकों की कमी की मजबूरी में कार्रवाई नहीं करते ये तो जांच का विषय है लेकिन इसका खामियाजा आम मरीज और उनके तीमारदारों को उठाना पड़ रहा है, इस दौरान 108 एंबुलेंस के चालकों का कमीशनखोरी का धंधा जोरों पर जारी है। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज और सीएम खट्टर प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और मरीज, घायल, गर्भवतियों को मुफ्त अस्पताल पहुंचाने का 108 एंबुलेंस का ढिंढोरा पीटते हैं लेकिन सच्चाई ये है कि सिर्फ फरीदाबाद ही नहीं पूरे हरियाणा में एंबुलेंस चालकों के पद बड़े पैमाने पर खाली हैं। राजनीतिक मामलों के जानकारों के अनुसार सरकार जानबूझ कर इन खाली पदों को नहीं भर रही है। इन निजी अस्पतालों की एंबुलेंस हर सरकारी अस्पताल के परिसर या उसके बाहर खड़ी देखी जा सकती हैं और इनके चालक इमरजेंसी, गर्भवती-प्रसव वार्ड से लेकर सर्जरी और जनरल वार्ड तक में शिकार खोजते हुए घूमते देखे जा सकते हैं।
ये चालक डॉक्टरों से मिलीभगत कर मरीजों को रेफर कराने में महारत रखते हैं, जाहिर है कि डॉक्टर भी इसमें मोटी बख्शीश हासिल करते हैं। ऐसे में यदि सरकार अपनी 108 एंबुलेंस सेवा पूर्णतया लागू कर दे और उनकी सख्त निगरानी शुरू कर दे तो सरकारी अस्पतालों के बाहर खड़ी नर्सिंग होम की निजी एंबुलेंस का धंधा मंदा पड़ जाएगा और मरीजों की लूट कमाई पर भी रोक लगेगी। लेकिन ऐसा करने से सरकारी डॉक्टरों और उनकी निगरानी करने वाले पीएमओ-सीएमओ की ऊपरी कमाई मारी जाएगी साथ ही धंधा नहीं होने के कारण निजी अस्पताल वाले सत्ता पक्ष के नेता, विधायक, सांसद, मंत्रियों को चंदा नहीं देंगे। सवाल ये भी है कि जब चालक भर्ती ही नहीं किए जाने थे, ज़ंग लगने के लिए इतनी एंबुलेंस क्यों खरीदी गई? दरअसल, एंबुलेंस खरीद में कमीशनखोरी का खेल चलता है, नेताओं से लेकर अधिकारियों की जेब गर्म हो जाती है। कमीशन की तगड़ी कमाई के लिए अंधाधुंध एंबुलेंस खरीद ली गईं।
इसके विपरीत चालक तैनात करने पर खज़ाने से वेतन देना पड़ता है, पूंजीपतियों पर खज़ाना लुटाने वाली मोदी-खट्टर की डबल इंजन सरकार चालकों पर खर्च करना ही नहीं चाहतीं इसलिए कोई भर्ती नहीं की जा रही। इसमें चाहे आम जनता का नुकसान हो लेकिन सरकार में बैठे रिश्वतखोर जन प्रतिनिधियों और स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों का फायदा है इसीलिए सरकार इन खाली पदों को नहीं भर रही है। जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए टैक्स से खरीदी गईं करोड़ों रुपये की एंबुलेंस खराब होती हैं तो हों, न तो जुमलेबाज खट्टर और न ही बड़बोले स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की सेहत पर इससे कोई असर पडऩा है।