प्रदूषण सर्वे के नाम पर गुजरात की कंपनी को दिया लूटने का ठेका

प्रदूषण सर्वे के नाम पर गुजरात की कंपनी को दिया लूटने का ठेका
March 04 05:49 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) दो सौ करोड़ का घोटाला करने वाले नगर निगम के अधिकारी जनता की गाढ़ी कमाई को ठिकाने लगाने के नए नए तरीके खोजते रहते हैं। अब शहर मेें प्रदूषण फैलने के कारणों का अध्ययन करने के नाम पर गुजराती कंपनी पर करोड़ों रुपये लुटाने की तैयारी की जा रही है। वह भी तब हो रहा है जब टाटा एनवायरमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) शहर में मौसम और स्थान के आधार पर प्रदूषण स्तर में होने वाले बदलाव और उतार चढ़ाव का अध्ययन पहले से कर रहा है। शहर में प्रदूषण के कारकों की पहचान कर उन्हें दूर करने के लिए जिम्मेदार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कार्यालय व उसके वैज्ञानिकों की टीम भी मौजूद है। इतना होने के बावजूद गुजरात की तथाकथित फर्म प्रदूषण के क्या नए कारक बताएगी? समझा जा सकता है कि निगम अधिकारी प्रदूषण समाप्त करने के नहीं बल्कि उसके अध्ययन के नाम पर धन की बंदरबांट करने पर आमादा हैं।

नगर निगम के चीफ इंजीनियर बीरेंद्र कुमार कर्दम के अनुसार गुजरात की कंपनी शहर के सबसे ज्यादा प्रदूषित क्लस्टर का पता लगाएगी और इसका समाधान भी बताएगी। शहर में प्रदूषण के कारण क्या हैं और उन्हें दूर कैसे किया जा सकता है ये सभी को मालूम है लेकिन नगर निगम के निकम्मे अधिकारी सिर्फ लूट कमाई और कमीशन खोरी में लगे रहते हैं, उन्हें प्रदूषण नियंत्रण के उपाय करने की फुर्सत ही नहीं है। मज़दूर मोर्चा शहर में प्रदूषण बढऩे के कारणों का विस्तृत विवरण लगातार प्रकाशित करता आ रहा है। उन कारणों को दूर करने की अपेक्षा शासन प्रशासन ने इसके नाम पर गुजराती चोरों को भी लूट कमाई का एक अवसर प्रदान करना बेहतर समझा, इसके चलते उन्हें इस तरह का कोई ठेका देने की चर्चा है।
विदित है कि विकास के नाम पर सर्वे कराना हो, नगर निगम के अधिकारियों को गुजरात की ही कंपनियां नजर आती हैं। राजा नाहर सिंह स्टेडियम के निर्माण का काम भी गुजरात की रंजीत कंस्ट्रक्शंस नाम की कंपनी को दिया गया, यह कंपनी 168 करोड़ रुपये लेकर काम अधूरा छोड़ कर ही भाग निकली। प्रॉपटी आईडी बनाने वाली याशी कंसल्टेंसी कंपनी भी संघ कार्यकर्ता की थी, कंपनी के नौसिखिए कर्मचारियों ने प्रापॅर्टी आईडी के गलत और झूठे आंकड़े डाल दिए और काम समेट कर निकल गई। जांच कराने के बजाय खट्टर सरकार ने संघी साथी की कंपनी को 57 करोड़ रुपये का भुगतान भी करा दिया, गलत प्रॉपर्टी आईडी के कारण आम जनता आज भी परेशान है। अब गुजरात की ही एक अन्य कंपनी को जिसका नाम निगम अधिकारी नहीं बता रहे हैं, उसे प्रदूषण के कारण जानने का ठेका दिया गया है।

शहर की टूटी फूटी सडक़ों की सफाई न होने के कारण इन पर जमी धूल वाहनों के गुजऱनेे पर गुबार की तरह फैलती है। पीएम 10 प्रदूषण की कारक इस धूल को काबू करने की जिम्मेदारी निगम की ही है। ट्रक माउंटेड ऑटोमेटिक झाड़ू मशीनें नगर निगम में हैं तो लेकिन इन्हें सफाई के लिए उतारने से ज्यादा कागजों पर चला कर डीजल के बिल की बंदरबांट का खेल चलता है। वैसे भी यहां की सडक़ें इन मशीनों के लायक नहीं हैं। इसी तरह शहर में धड़ल्ले से इमारतों के निर्माण और तोडफ़ोड़ का काम जारी है। ग्रेप तीन लागू होने के बावजूद शहर में कई जगह कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन (सीएंडडी) कार्य धड़ल्ले से किया जाता रहा। निगम के खाऊ कमाऊ अधिकारी इन पर जुर्माना लगाने के बजाय अपनी जेबें गर्म करने में लगे रहे, प्रदूषण का स्तर कहीं जाए इससे इन्हें कोई मतलब नहीं।

बाईपास रोड, बाटा पुल से अजरौंदा पुल के बीच रेलवे लाइन पर, मुजेसर इंडस्ट्रियल एरिया, सरूरपुर आदि अनेकों जगहों पर कबाड़ी धातुओं की छंटाई करने के लिए कबाड़ में आग लगाकर वायु प्रदूषण फैलाते हैं। इसकी शिकायत पर्यावरण प्रेमियों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक ने कर डाली लेकिन नगर निगम एवं शासन- प्रशासन के खाऊ कमाऊ अधिकारियों ने कभी कोई कार्रवाई नहीं की, लगता है कबाडिय़ों से भी सुविधा शुल्क बंधा हुआ है। घरेलू गैस आम आदमी पहुंच से बाहर हो जाने के चलते शहर में बसने वाले लाखों गऱीब मज़दूर परिवार खाना पकाने के लिए जिस ईंधन का प्रयोग करते हैं उससे धूआं तो उठना ही है। कई कॉलोनियों और मलिन बस्तियों में सुबह-दोपहर-शाम इन चूल्हों से उठने वाला धुआं पीएम 2.5 के रूप में वातावरण को प्रदूषित करता है।

वायु प्रदूषण का अन्य बड़ा कारण शहर की सडक़ों पर लगने वाला जाम है। जाम में फंसे सैकड़ों वाहनों से हाइड्रोकार्बन, सल्फर, लेड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। यातायात पुलिस और स्मार्ट सिटी ने मिलकर शहर के सभी चौक चौराहों पर रेड लाइट और कैमरे लगाकर सरकार का खज़ाना भरने के इंतज़ाम कर लिए लेकिन सडक़ों को जाम मुक्त करने के उपाय नहीं किए जाते। शहर को हाईवे से जोडऩे वाला कोई भी चौक चौराहा, ओवरब्रिज दिन भर में शायद ही कभी जाम से मुक्त होता हो, लेकिन इस पर कोई काम नहीं किया जाएगा।

शहर की टूटी-फूटी सडक़ों से उडऩे वाली धूल के साथ ही जाम पड़े सीवर भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। सीवर प्रणाली ध्वस्त होने से जगह जगह ओवर फ्लो से उठने वाली दुर्गंध वातावरण को प्रदूषित करती है। निगम के निठल्ले अधिकारी शहर की सीवेज व्यवस्था दुरुस्त कराने के बड़े बड़े प्लान ही बनाते रहते हैं लेकिन धरातल पर कुछ नहीं करते।
दिवाली में पटाखों पर प्रतिबंध तो प्रशासन लगा न सका बल्कि अब तो लगभग रोज़ाना किस न किसी बहाने, चाहे क्रिकेट का मैच हो, चाहे चुनाव में जीत हो, चाहे कोई ब्याह शादी हो खुलकर पटाखेबाज़ी-आतिशबाज़ी की जाती है और प्रशासन मूकदृष्टा बना रहता है। प्रदूषण की रोकथाम के नाम पर सर्वे करते घूमने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगर निगम के अधिकारी आतिशबाज़ी को रुकवाने की जह़मत उठाना भी गवारा नहीं करते।

उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में बिजली उपलब्ध न होने के चलते बड़े-बड़े जेनरेटर चलाने पड़ते हैं। बेशक इनसे मिलने वाली बिजली महंगी पड़ती है और वायु प्रदूषण भी होता है, यदि अबाध बिजली आपूर्ति की जाए तो रोज़ाना हज़ारों जेनरेटरों से निकलने वाले काले धुएं पर काबू पाया जा सकता है। शासन-प्रशासन के निकम्मे व धूर्त अधिकारी यदि इतनी समस्याओं पर काबू पा लें तो प्रदूषण की समस्या काफी हद तक समाप्त हो सकती है, लेकिन इतना सब करने में मेहनत है और ऊपरी आमदनी भी नहीं तो गुजराती कंपनियों को बुलाकर जनता का धन लुटाएंगे, इसमें उनकी भी हिस्सापत्ती बन जाएगी।

सवाल ये है कि जब टेरी जैसी संस्थाएं यहां दो साल से प्रदूषण का गहन अध्ययन कर रही है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक लगातार प्रदूषण के पॉकेट, प्रकार, कारण आदि पर नजऱ रख कर आंकड़े तैयार करते हैं तो फिर एक बेनाम सी गुजराती कंपनी से सर्वे कराने के नाम पर करोड़ों रुपये क्यों खर्च किए जा रहे हैैं, कहीं ऐसा तो नहीं डबल इंजन सरकार में बड़ी सरकार ने छोटी सरकार को गुजराती कंपनियों को लाभ पहुंचाने का हुक्म दिया हो, जिसका पालन भ्रष्टाचार के गढ़ नगर निगम द्वारा करवाया जाएगा।

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Mazdoor Morcha
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