प्रॉपर्टी माफिया के रूप में चर्चित केंद्रीय मंत्री किशन पाल गूजर भी घोषणावीर पीएम मोदी-खट्टर की तर्ज पर अधूरे प्रोजेक्टों का उद्घाटन करने में माहिर हो चुके हैं। सोमवार को उन्होंने तिगांव में राजकीय कन्या आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यायल की इमारत का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने दावा किया कि निजी की तर्ज पर विद्यालय में सात डिजिटल लैब और एक लाइब्रेरी बनाई गई है। दावे की हकीकत ये है कि डिजिटल लैब का प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के स्तर पर अभी अधूरा है। वर्तमान समय में डिजिटल लैब दिक्षा पोर्टल पर उपलब्ध है। इस पोर्टल पर सभी राज्यों के शिक्षा बोर्ड की कक्षावार किताबें डिजिटल फार्म में अपलोड हैं। यानी विद्यार्थी जो किताब वास्तविक रूप से रख कर पढ़ सकता है वही किताबें इस पोर्टल पर डिजिटल फार्म में उपलब्ध है। यह पोर्टल अभी पूरी तरह तैयार भी नहीं है, इस पर डिजिटल टेक्स्टबुक, कोर्सेज़, टीवी क्लास और ऑल टैब दे रखे हैं। डिजिटल टेक्स्ट बुक के टैब में किताबें अपलोड हैं। कोर्सेज़ टैब पर क्लिक करने पर क्विज़, प्रेक्टिस सेट, पीडीएफ व अससेमेंट की विंडो खुलती हैं। इन पर क्लिक करने के बाद पेज तो खुलता है लेकिन उसमें टैब कोई काम नहीं करते। टैब पर क्लिक करने पर ट्राइ अगेन की विंडो खुल जाती है। टीवी क्लासेज़ टैब पर क्लिक करने पर बोर्ड इज़ ऐडिंग कंटेंट लिखा हुआ आता है और कोई कंटेंट नहीं मिलता।
ये है विद्यार्थिेयों और उनके अभिभावकों को डिजिटल लैब का सुहाना ख्वाब दिखाने की कड़वी हक़ीक़त। आधे अधूरे पोर्टल को डिजिटल लैब नाम देकर गर्व से घोषणा करने वाले केंद्रीय मंत्री और उनके आक़ाओं को देश के भविष्य से भद्दा मज़ाक करने में शर्म भी नहीं आती। शिक्षा के नाम पर सरकारें बहुत पहले से तरह तरह के ड्रामे करती आ रही हैं लेकिन शिक्षक जो सबसे जरूरी हैं उन्हें नहीं भर्ती किया जाता। टीचर भर्ती करने के बजाय उन कामों को तरजीह दी जाती रही जिनसे कमीशनखोरी और ऊपरी कमाई हो। दो दशक पहले भी सभी स्कूलों में एजुसेट से पढ़ाई कराने का पाखंड किया गया था।
पढ़ाना तो क्या था, कमीशनबाजी का खेल था। लभगभ सभी बड़े स्कूलों में कंप्यूटर और उनके लिए जेनरेटर लगाए गए जो शायद ही चलाए गए, हां इनकी खरीद और स्थापना में मोटा खर्च दिखा कर पैसे की बंदरबांट की गई। एजुसेट चला नहीं उसे फ्लॉप होना ही था। इसके बाद मोटी कीमत पर टैबलेट खरीद कर विद्यार्थियों को बांटे गए, काफी महंगे दामों में खरीदे गए इन टैबलेट में प्रोसेसर, बैटरी व अन्य हार्डवेयर औसत स्तर के ही थे, इस कारण बूट (ऑन) करने पर काफी समय लेता, यानी विद्यार्थियों को ठगा ही गया। इसके बाद छात्रों को किताबें बांटने की स्कीम लागू की गई, इसमें भी कमीशनखोरी का खेल खेला गया। अब डिजिटल लैब का पाखंड किया जा रहा है लेकिन टीचरों के खाली पद नहीं भरे जा रहे।