फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) केंंद्रीय ट्रेड यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर शुक्रवार को आयोजित औद्योगिक हड़ताल व ग्रामीण भारत बंद का असर औद्योगिक नगरी में नगण्य ही रहा। सभी औद्योगिक संस्थानोंं में काम रोज़ाना की तरह बदस्तूर जारी रहा। हड़ताल के नाम पर डीसी ऑफिस के सामने मुट्ठीभर मज़दूर नेताओं की मीटिंग और गांवों में जनसंपर्क की कार्रवाई की गई, किसी भी मज़दूर संगठन ने फैक्टरियों मेें हड़ताल को कामयाब बनाने का प्रयास नहीं किया। देश में लगातार चौड़ी होती जा रही अमीरी-गरीबी की खाई और सरकारों द्वारा आम जनता का हित छोड़ कर कॉरपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने जैसे गंभीर मुद्दों के विरोध में शुक्रवार को हड़ताल का आयोजन किया गया था। हड़ताल का प्रचार प्रसार सोशल मीडिया पर जोर शोर से किया गया। सभी फैक्टरियों में कामगार-मज़दूरों से हड़ताल को सफल बनाने का आह्वान किया गया। शुक्रवार को इस हड़ताल का असर कहीं नजऱ नहीं आया। फैक्टरियां हस्बे मामूल खुलींं और मज़दूर काम पर पहुंचे, शायद ही कोई फैक्टरी हो जिसमें हड़ताल पर चर्चा भी की गई हो। यही हाल व्यापारिक संस्थानों के रहे। कुछ मज़दूर नेता हड़ताल के नाम पर डीसी कार्यालय के सामने इक_ा हुए और बैठक, भाषणबाजी की औपचारिकता कर चलते बने।
क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के कामरेड सत्यवीर व अन्य सदस्यों ने फरीदाबाद से पलवल के बीच कई गांवों में किसानों के साथ बैठक कर देश के आर्थिक हालात और गरीब, मज़दूर किसानों की समस्याओं पर चर्चा की और हड़ताल का समर्थन किया गया।
दरअसल, ऊपर बैठे कथित मज़दूर नेता साल छह महीने में इस तरह की राष्ट्र व्यापी हड़ताल की घोषणा कर इसके बहाने सरकार में बैठे मंत्री-सचिवों से अपने संबंध प्रगाढ़ करते हैं। घोषणा की सफलता न तो सरकार चाहती है और न ही ये नेता, बस सरकार से सम्मान प्राप्त कर मस्त हो जाते हैँ। आह्वान के बाद हड़ताल कितनी सफल रही कितनी नहीं इसकी समीक्षा भी नहीं की जाती।