बसाना ही था तो तोड़े क्यों गए थे कांत एंक्लेव के मकान

बसाना ही था तो तोड़े क्यों गए थे कांत एंक्लेव के मकान
March 04 03:55 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम पीएलपीए की धारा 4 और 5 के उल्लंघन के कारण सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उजाड़े गए कांत एंक्लेव को दोबारा बसाने की तैयारियां की जा रही हैं। बताया जा रहा है कि हाल ही में आर कांत कंपनी को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (वन मंत्रालय) ने अनंगपुर की 425 एकड़ ज़मीन में से करीब 329 एकड़ निजी ज़मीन का इस्तेमाल करने की अनुमति दी है। कांत बिल्डर्स ने यहां फिल्म स्टूडियो बनाने के लिए आवेदन किया था।

वन विभाग के सूत्रों के अनुसार आर कांत कंपनी के आवेदन पर वन विभाग हरियाणा के अधिकारियों ने इलाके का दौरा कर निरीक्षण किया था, और बीते छह नवंबर को वन मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी गई जिसमें स्टूडियो की स्वीकृति दिए जाने की संस्तुति की गई है। हालांकि इस रिपोर्ट में मंत्रालय को यह भी बताया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर कांत एंक्लेव में अवैध रूप से बनाए गए 33 मकानों को सितंबर 2018 मे तोड़ दिया गया था। इनमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अहमदी, रिटायर्ड बिग्रेडियर मोहिन्द्र वीर आनन्द सहित बड़ी हस्तियों के मकान शामिल थे। वर्तमान में मकान तो ध्वस्त हैं लेकिन अभी वहां टूटी फूटी सडक़ों का नेटवर्क, बिजली-पानी की लाइनें आदि बरकरार हैं। इस रिपोर्ट में पीएलपीए 1900 की धारा दो का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि निजी कंपनी (आर कांत कंपनी) के आवेदन को अनुमति दी जा सकती है। पीएलपीए 1900 की धारा दो के अनुसार ‘कोई भी वन भूमि जो किसी निजी व्यक्ति, प्राधिकरण, निगम, एजेंसी या संस्थान जिसकी सरकार न तो मालिक हो, न ही प्रबंधक या नियंत्रक, को लीज या अन्य माध्यम से सौंपी गई है, उसका इस्तेमाल गैर वानिकी गतिविधियों में किया जा सकता है। बताते चलें कि अनंगपुर की 425 एकड़ वन भूमि में आर कांत कंपनी के पास 329 एकड़ जमीन है।

पर्यावरण प्रेमी और समाजसेवी सरकार की इस कार्रवाई से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि वन मंत्रालय और सरकारें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन कर रहे हैं। पीएलपीए संरक्षित वन क्षेत्र होने के कारण ही तो सर्वोच्च न्यायालय ने दो दशक पूर्व बनाए गए 33 मकानों को अवैध करार देते हुए उन्हें तोड़ऩे का आदेश दिया था। केवल मकान ही नहीं तोड़े जाने थे, उस इलाके में फिर से वन विकसित करना भी था। इसके विपरीत वहां फिर से फिल्म स्टूडियो बनाने की तैयारी की जा रही है। वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश चंद गोयल कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने पीएलपीए का हवाला देते हुए इस इलाके में किसी भी ऐसे निर्माण पर पाबंदी लगा रखी है जिससे कि जमीन का गैर वानिकी या व्यावयायिक इस्तेमाल हो। वन कानून के तहत किसी भी आवासीय या व्यावसायिक गतिविधि की मंजूरी नहीं दी जा सकती। इस आधार पर वन विभाग को आर कांत कंपनी का आवेदन सीधे सीधे निरस्त कर देना चाहिए था।

पर्यावरण प्रेमी धीरज कहते हैं कि दिल्ली एनसीआर का प्रदूषण स्तर जिस तरह लगातार गंभीर स्तर पर बना रहता है, अरावली वनों का संरक्षण बहुत जरूरी है। अनंगपुर का इलाका अरावली का गैर मुमकिन पहाड़ के रूप में वर्गीकृत है यानी यहां खेती नहीं हो सकती, यानी ये क्षेत्र के संरक्षित इलाके में आता है।

पीएलपीए की धारा 4 और 5 के तहत आने वाले वन क्षेत्र में बिना अनुमति के गैर वानिकी गतिविधियां पूर्णतया प्रतिबंधित हैं। इस संरक्षित क्षेत्र में केवल ऐसी गतिविधियों को ही अनुमति दी जा सकती है जो बहुत आवश्यक हों और कहीं दूसरी जगह नहीं बन सकतीं जैसे, तेल, गैस की पाइपलाइन आदि इसके लिए भी वन विभाग से सहमति लेना आवश्यक है।
फिल्म स्टूडियो न तो आवश्यक जरूरत है और न ही सार्वजनिक हित का प्रोजेक्ट, ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मद्देनजर कांत कंपनी को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। यदि संरक्षित वन क्षेत्र में स्टूडियो बना तो मानव गतिविधियां बढ़ेंगी, इलाके का व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू होने पर भविष्य में यहां वनों को उजाड़ कर अतिक्रमण, अवैध कब्जे होने से इनकार नहीं किया जा सकता। क्षेत्र के बिगड़ते पर्यावरण को बचाने के लिए वन मंत्रालय को यह निर्णय वापस लेना चाहिए।

पर्यावरण प्रेमी कहते हैं कि सूरजकुंड रोड पर एयरटेल भारती का 52 एकड़ का प्रोजेक्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने यह कहते हुए बंद करवा दिया कि ये इलाका डीम्ड फॉरेस्ट है, यानी जंगल नहीं है लेकिन उसे जंगल माना जा रहा है। इसके विपरीत कांत एंक्लेव तो अरावली संरक्षित वन क्षेत्र में स्थित है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी संरक्षित वन क्षेत्र होने के कारण ही कांत एंक्लेव में बनाए गए 33 मकानों को तुड़वा दिया था और वहां वानिकी गतिविधियां चलाने का आदेश दिया था। एयरटेल भारती के प्रोजेक्ट को तो अनुमति मिल नहीं रही लेकिन आर कांत कंपनी को फिल्म स्टूडियों बनाने की इजाजत दे दी गई। पर्यावरण प्रेमी इसे ऊेचे स्तर पर लेने देन कर भ्रष्ट ढंग से स्वीकृति देने की कार्रवाई करार देते हैं। इन लोगों का आरोप है कि मोटा लेनदेन कर संरक्षित वन क्षेत्र में गैर वानिकी और व्यावसायिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी गई है। जब यहां अनुमति दी जा सकती है तो देर सबेर भारती एयरटेल के सूरजकुंड रोड प्रोजेक्ट को भी लेनदेन के बाद अनुमति दे ही दी जाएगी, वह तो संरक्षित वन क्षेत्र में भी नहीं आता।

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Mazdoor Morcha
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