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मोदी राज में बिक रहीं घटिया दवाएं पीएमबीजेपी को सप्लाई करने वाली हेल्थ बायोटेक, ज़ी लेबोरेट्रीज, ओरिसन फार्मा सहित कई कंपनियों की दवाएं घटिया पाई गईं
February 05
17:00
2024
by Mazdoor Morcha
मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
जुमलों और झूठ बोलने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) का झूठ खुल गया है। इस परियोजना में दवाएं सप्लाई करने वाली कई कंपनियां घटिया दवाएं बनाती हैं। हाल ही में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडड्र्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) द्वारा जारी रिपोर्ट में यह सच सामने आया है। बाजार में खुलेआम धड़ल्ले से बिक रही इन दवाओं के इस्तेमाल से न जाने कितने मरीजों की जान पर बन आई और कितनों की सेहत खराब हुई इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता, अंधभक्त तो ढिंढोरे की ताल से ताल मिलाकर सरकार का गुणगान करने में लगे हैं।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार हाल ही में केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा देश भर से 1008 दवाओं का सैंपल लेकर जांच की गई। इनमें से 78 दवाओं के सैंपल फेल हो गए, यानी उन्हें बनाने के लिए या तो घटिया सामग्री इस्तेमाल की गई थी या पूरी मात्रा में इस्तेमाल नहीं की गई थी। इनमें साधारण बुखार से लेकर टीबी, मिर्गी, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, कोविड, कैंसर, आंख रोग, गठिया रोग की दवाएं, एंटी बायोटिक, मल्टी विटामिन, एंटी एलर्जी और जीवन रक्षक औषधियां शामिल हैं। जिन कंपनियों के सैंपल फेल हुए उनमें से अधिकतर जेनरिक दवाएं बनाती हैं। जिन 24 कंपनियों की दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं उनमें से हेल्थ बायोटेक, जी लैबोरेट्री और ओरिसन फार्मा कंपनियां पीएमबीजेपी में भी दवाओं की आपूर्ति करती हैं। समझा जा सकता है कि पीएमबीजेपी के लिए दवा सप्लाई करने वाली ये और इन जैसी अन्य कंपनियां भी घटिया दवाएं सप्लाई कर मोटा मुनाफा कमा रही हैं।
दवा कंपनियां तो मुनाफा कमाने के लिए घटिया दवाएं बना सकती हैं लेकिन सवाल तो इन कंपनियों पर अंकुश लगाने वाली सरकार और सीडीएससीओ के अधिकारियों पर बनता है जो कार्रवाई के नाम पर सिर्फ बाजार से दवाएं वापस मंगाने का फरमान सुना कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं।
ये दवाएंं वापस ली भी गईं या नहीं इसकी न तो निगरानी की जाती है और न ही ये सुनिश्चित किया जाता है कि कंपनी इन्हें रीपैकिंग कर दोबारा मार्केट में न उतारे। यदि सीडीएससीओ अधिकारियों की नीयत सही होती तो इन दवाओं को जब्त करवा अपनी देखरेख में नष्ट करवाया जाना चाहिए था ताकि इनका दोबारा इस्तेमाल न किया जा सके लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जाता।
जनता के हित केे बड़े-बड़े दावे करने वाले प्रधानमंत्री मोदी भी पार्टी को मोटा चंदा देने वाली दवा निर्माताओं की लॉबी के आगे नतमस्तक नजर आ रहे हैं। पिछली सरकारों ने जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं की गुणवत्ता समान रखने के लिए दवा कंपनियों को एक ही बैच में 75 प्रतिशत दवाएं ब्रांडेड और 25 प्रतिशत जेनरिक बनाने का नियम बनाया था। बाद में 50 प्रतिशत जेनरिक और 50 प्रतिशत ब्रांडेड बनाने पर कंपनियों को मजबूर किया गया। इससे दवाओं की गुणवत्ता में समझौता नहीं हो सकता था। दवा निर्माता कंपनियों ने मोदी सरकार को जेनरिक और ब्रांडेड दवाएं अलग अलग बैच में बनाने के लिए राजी कर लिया, जिसका परिणाम सामने है।
ये कंपनियां ब्रांडेड दवाएं तो मानक के अनुरूप बनाती हैं जबकि अलग से बनाई जा रही जेनरिक दवाओं में औषधि की मात्रा कम कर, मिलावट कर सस्ते के नाम पर घटिया माल बेचती हैं। मोदी सरकार सस्ती दवाओं के नाम पर जनता को मूर्ख बना रही है तो कंपनियां भी मोटा मुनाफा कमा कर पार्टी फंड में चंदा देकर देशभक्तों में शामिल हो रही हैं।
मज़दूरों के पैसे पर मौज करने वाले ईएसआईसी अधिकारी और ईएसआई अस्पताल संचालित करने वाली राज्य सरकारेंं भी घटिया जेनरिक दवाओं की खरीदारी के खेल में हर साल करोड़ों रुपये डकार रहे हैं। ईएसआई मामलों के जानकारों के अनुसार प्रत्येक वर्ष मुख्यालय से बीसियों चिट्ठी जारी की जाती हैं कि फलां कंपनी की दवाओं का नमूना फेल हो गया, इन्हें इस्तेमाल न किया जाए। घटिया दवा बनाने वाली कंपनी से न तो रिकवरी की जाती है और न ही उन कंपनियों से बदल कर नई दवा ली जाती है। ईएसआई के अस्पतालों में इस तरह की करीब एक हज़ार करोड़ रुपये कीमत की बेकार दवाएं पड़ी हैं जिन्हें न तो कंपनी ले गई और न ही नष्ट किया गया।
सुधी पाठक जान लें कि ईएसआईसी कॉरपोरेशन अपने अस्पतालों के लिए प्रतिवर्ष करीब 1500 करोड़ रुपयों की दवा खरीदता है तो राज्य सरकारें अपने ईएसआई अस्पतालों के लिए करीब 2000 करोड़ रुपये दवाओं पर खर्च करते हैं। यदि सीडीएससीओ के नए आंकड़ों को मानें तो आठ प्रतिशत दवाएं घटिया निकलीं। इस आधार पर यदि 3500 करोड़ की दवाओं में आठ प्रतिशत मानें तो 280 करोड़ रुपये की दवाएं घटिया निकलती हैं। इतने बड़े मुनाफे में कंपनियां, ईएसआईसी अधिकारी और सत्तासीन पार्टी सबकी मोटी कमाई होती है। यही कारण है कि कार्रवाई करने के बजाय चुपचाप इन घटिया दवाओं को स्टोर में डंप कर दिया जाता है। बताया जाता है कि वर्ष 2012-13 में जब एनआईटी तीन ईएसआई अस्पताल ईएसआई कॉरपोरेशन को हस्तांरित किया गया उस समय अस्पताल के स्टोर से चार ट्रक ऐसी ही घटिया और एक्सपायर दवाएं निकली थीं। यानी मज़दूर की गाढ़ी कमाई घटिया दवाओं पर लुटा दी गई।
मोदी-खट्टर यदि सच में जनता के हितैषी होते तो घटिया दवाएं बनाने वाली कंपनी पर मोटा जुर्माना लगाते और दवाओं को नष्ट करा उसी कंपनी से उतनी ही कीमत की सही गुणवत्ता वाली दवाएं भी ली जातीं। यदि इतनी सख्त कार्रवाई करें तो मोटे मोटे चंदे और कमीशन कौन कंपनी देगी।
घटिया दवाएं बनाने वाली कंपनियों के मालिक और अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक धाराओं में केस दर्ज कर उनकी जवाबदेही तय की जाए। अब घटिया दवाओं से जनता मरती है तो मरे, सरकार बनी रहनी चाहिए।
इन कंपनियों की दवाएं घटिया मिलीं
– बोनसाई फार्मा की मोंटेलुकास्ट, सोडियम लिवोसिट्राजिन टैबलेट।
– बॉयोकोर फार्मास्युटिकल की टेल्मिसर्टन टैबलेट 40एमजी।
– मायोफोर्ड फार्मा का प्रेगाबैलिन कैप्सूल।
– सनफाइन हेल्थकेयर का साइट्रेट सिरप।
– जी लैबोरेट्रीज की सोडियम वैलप्रोएट 200एमजी,
मोक्सीफ्लोक्सासिन और प्रेडनिसोलोन।
– एसिकोन रेमिडीज की दवा एम्पीसिलिन 500एमजी।
– मॉसन फार्मा की एस्कॉर्बिक एसिड टेबलेट
– एलांयस बॉयोटेक की हेपारिन सोडियम।
– डीएम फार्मा की ट्राइहाइड्रेट टैबलेट।
– राचिल फार्मा का हाइड्रोकलोराइड सिरप।
– हेल्थ बॉयोटेक का सिफोपैराजोन इंजेक्शन।
– कान्हा बॉयोजेमेटिक की दवा कैल्शियम व विटामिन-डी &
– फार्मारूट्स हेल्थकेयर की कैल्शियम कॉर्बोरेट।
– लैबोरेट फार्मास्युटिकल की पैरासिटामोल।
– ओसकर रैमेडिज की एस्कॉर्बिक एसिड।
– वीवीपीबी फार्मास्युटिकल का एम्ब्रोक्सोल गुइफेनसिन सिरप।
– एलडर लैब की गैस्ट्रो रेसिस्टेंट टैबलेट।
– प्रिमस फार्मास्युटिकल का सेफोपेराजोन इंजेक्शन।
– कैपसॉफ्ट हेल्थकेयर की कैल्शियम।
– फार्मारूट्स हेल्थकेयर की ग्लिमेपिराइड टैबलेट।
– लोग्स फार्मा की इंट्राकोनाजोल कैप्सूल।
– ओरिसन फार्मा की एल्बेंडाजोल 400एमजी।
– सैंक्टस ग्लोबल फार्मूलेशन, की ग्लिमेपिराइड टैबलेट।
– गल्फा लाबोट्रीजकी पैरासिटामोल।
– पेंटाकेम फार्मास्युटिकल की आइसोनायाजिड टैबलेट।
– डैक्सिन फार्मा की पैरॉसिटामोल।
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