राजस्व अधिकारी लखानी मज़दूरों को नहीं दिला पा रहे उनका हक़

राजस्व अधिकारी लखानी मज़दूरों को नहीं दिला पा रहे उनका हक़
February 05 15:05 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सात महीने से ग्रेच्युटी व अन्य भुगतान पाने को भटक रहे लखानी फैक्ट्री के मज़दूरों के समर्थन में क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा और लखानी मज़दूर संघर्ष समिति ने मंगलवार को लघु सचिवालय परिसर में संयुक्त प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन अधिकारियों को सौंपा गया।

प्रदर्शन के मुख्य वक्ता क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के महासचिव कामरेड सत्यवीर सिंह ने लखानी प्रबंधन की चालाकियों और प्रशासनिक अधिकारियों की धूर्तता से मज़दूरों को हो रहे नुकसान पर चिंता जताई और हक हासिल करने के लिए संघर्ष का रास्ता अपनाने का आह्वान किया। संबोधन में उन्होंने कहा कि मज़दूरों के कम से कम चार हज़ार रिकवरी के सर्टिफिकेट पड़े हुए हैं जिनकी वसूली प्रशासन नहीं करा रहा। ये इस सरकार का निकम्मापन है, नाकामी है। भ्रष्टाचार इस स्तर पर है कि अगर किसी अमीर आदमी या किसी कल कारखानेदार के पैसे की रिकवरी का मामला होता तो सारा सरकारी अमला वहां पहुंच चुका होता।

कामरेड सत्यवीर सिंह ने कहा कि इन मज़दूरों का बकाया भुगतान अधिकारी दो घंटे में वसूल कर ला सकते थे लेकिन ऐसा करने के बजाय लिख कर दे रहे हैं कि हमें लखानी की प्रॉपर्टी मालूम नहीं है, हम कुछ नहीं कर सकते। जि़ला वसूली अधिकारी कहता है कि उसने हस्ताक्षर कर दिए इसके बाद उसकी कोई जि़म्मेदारी नहीं है। कोई पूछे उनसे कि अगर आपका मातहत आपकी बात नहीं मान रहा तो आपको बुरा क्यों नहीं लगता? आप उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते? तहसीलदार को हस्ताक्षर करने से पहले सोचना चाहिए था कि क्या सचमुच लखानी के पास 81 हज़ार रुपये की प्रॉपर्टी नहीं बची। अदालत ने अमल दरामद के आदेश जारी किए हुए हैं बावजूद इसके भ्रष्ट अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे। आदेश पहले ही होने के कारण एक्जीक्यूशन का केस भी नहीं डाला जा सकता। मज़दूर अपना हक़ पाने के लिए सात महीने से अदालत का आदेश लेकर घूम रहे हैं लेकिन ये प्रशासन सोया हुआ है।

कामरेड ने मोदी-खट्टर सरकारों और प्रशासन पर तीखे प्रहार किए, बोले, सरकारें मालिकों को छूट दे रही हैं और उनका प्रशासन मालिकों के तलवे चाटता है। सेक्टर 12 लघु सचिवालय में बैठे आला अधिकारी दो से तीन लाख रुपये वेतन लेते हैं लंबी-लंबी गाडिय़ों में चलते हैं लेकिन मज़दूरों के हक़ की अनदेखी करते हैं। ये अधिकारी मीटिंगें कर मालिकों को छूट देने और मज़दूरों का खून चूसने की छूट देने की तरकीबें निकालते हैं। लखानी कंपनी के मालिक ने पीएफ का पैसा जमा नहीं किया था, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा ने पीएफ डिपार्टमेंट में प्रदर्शन कर कार्रवाई को मजबूर किया, सेंट्रल थाने में एफआईआर हुई। पुलिस कमिश्नर ने लखानी को बुलाया और बोला कि अगर पीएफ का पैसा नहीं दिया तो अंदर डाल दूंगा। अगले ही दिन लखानी 1 करोड़ 15 लाख का ड्राफ़्ट लेकर आ गया। जब उसे गिरफ्तारी का डर लगा तो तुरंत ही ड्राफ्ट जमा करवाया। लेकिन इस निकम्मे प्रशासन से इतना भी नहीं हो सका कि लखानी को बता दे कि अदालत का आदेश है मज़दूरों का पैसा चुकाए। ये तो वो पैसा है जो लखानी ने मज़दूरों के वेतन से काट कर जमा नहीं कराया था और इतना ही पैसा उसको अपनी ओर से देना था उसकी रिकवरी क्यों नहीं की जा रही? इसमें तर्क यह दिया जा रहा है कि काटा हुआ पैसा न जमा कराना तो आपराधिक मामला है जबकि भविष्य निधि कानून के अनुसार कंपनी की ओर से जमा कराया जाने वाला हिस्सा किसी आपराधिक कानून में नहीं आता, तो क्या मज़दूर अब अपना हक पाने के लिए दीवानी मुकदमे लड़ता रहेगा जिसमें उसकी पीढिय़ां अदालत के चक्कर लगाती रहें? यह पूंजीवादी सरकार की बदमाशी है मज़दूर अपना हक पाने के लिए सडक़ पर लड़ाई लड़ेगा।

लखानी का कारखाना चालू है, पांच सौ लोग वहां काम कर रहे हैं। उसके जूते चप्पल बन रहे हैं, उसकी अय्याशी के लिए पैसे हैं लेकिन मजदूरों को देने के लिए पैसे नहीं हैं। ईएसआईसी का रीजनल डायरेक्टर बोलता है कि 80 प्रतिशत कारखानेदार ईएसआईसी का पैसा नहीं भर रहे। मज़दूरों के वेतन से उनका पैसा काट कर नहीं भरा जा रहा, ये हालात हैं। पीएफ डिपार्टमेंट में कर्मठ अधिकारी निशा जी की तैनाती के बाद मज़दूरों के हक़ में काम शुरू हुए। उन्होंने लखानी ही नहीं अन्य बकाएदार मालिकों पर सख्ती की और उन लोगों से मज़दूरों का 6 करोड़ 28 लाख जमा करवा लिया। यह तो मज़दूरों का पैसा था, इतना ही धन फैक्ट्री मालिकों के हिस्से का बाकी है, जिसे ब्याज और दंड के साथ वसूलने में पीएफ डिपार्टमेंट नाकाम नजर आ रहा है।

कामरेड सत्यवीर सिंह ने मोदी-खट्टर सरकारों को कारखाना मालिकों का हिमायती बताया। कहा कि मज़दूरों के पैसे का भुगतान नहीं करने की छूट दो और मज़दूरों-किसानों को मूर्ख बनाओ, उन्हें मंदिर-मस्जिद का, हिंदू धर्म का झुनझुना थमाओ, यही मोदी-खट्टर की बेग़ैरत सरकारों का एजेंडा हैं। इन सरकारों में वो लोग हैं जो हमेशा मज़दूरों का विरोध करते हैं, गऱीब के खिलाफ रहते हैं। इनके बड़े लीडर अदाणी-अंबानी के तलवे चाटते हैं स्थानीय नेता गुलाटी, लखानी के आहूजा जैसे कारखानेदारों के पैर छूते हैं। इन हालात में मज़दूरों के पास संघर्ष के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है।

ऐलान किया कि मुख्यमंत्री खट्टर के जनता दरबार मे सब मज़दूर उनसे सवाल करेंगे कि मज़दूर की तरह दस हज़ार रुपये में अपना घर-परिवार चला कर दिखाइए। उनको अधिकारियों से सवाल करने को मजबूर किया जाएगा कि ऐसे हालात में जीने वाले मज़दूरों के पैसों की रिकवरी वे क्यों नहीं करा रहे। कहा कि इन अधिकारियों की गऱीब मज़दूरों को उनका पैसा दिलाने की इच्छा और नीयत नहींं है। शातिर कारखानेदार जानते हैं कि ये भाजपा की सरकार है, ये लोगों का मूर्ख बनाना जानती है, मंदिर-मस्जिद के झुनझुने देना जानती है, ये हमारे लूटने का टाइम है, मज़दूरों के पैसे हड़प जाओ।

कामरेड सत्यवीर सिंह ने संघर्ष का आह्वान करते हुए कहा कि हक पाने के लिए इस मुद्दे को बाहर दूसरी फैक्ट्रियों तक ले जाना पड़ेगा। फरीदाबाद की एक-एक फैक्ट्री में जाकर देखना पड़ेगा कि उनके मज़दूरों की क्या हालत है, उन मज़दूरों के दुख-दर्द में शामिल होना पड़ेगा तभी तो वो हमारे दुख-दर्द में शामिल होंगे। ये सरकारें केवल संघर्ष की भाषा समझती हैं। किसान इनकी छाती पर चढक़र बैठे थे तो ये मोदी हाथ जोडक़र टेलीविजन पर हाजिऱ हुआ था और किसानों की बात मानी थी। मज़दूरों को भी वही तरीक़ा अपनाना पड़ेगा।
मज़दूरों को इकट्ठा  होकर इन पर दबाव बनाना पड़ेगा, आंदोलन की आंच से ही सरकार सीधे रास्ते पर आएगी।
फरीदाबाद प्रशासन को चेतावनी दी कि अभी समय है वह अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अपनी फजऱ् निभाएं, अधिकारियोंं को मोटा वेतन, गाड़ी इसीलिए दिए जाते हैं कि वो अपना काम करें। उम्मीद जताई कि डीसी विक्रम सिंह नींद से जागेंगे और संबंधित अधिकारियों को इन मज़दूरों का हक़ दिलाने के सख़्त निर्देश देंगे। इन मज़दूरों को तीन साल पहले इनकी ग्रेच्युटी की रक़म मिल जानी चाहिए थी। अंत में मज़दूर एकता जिंदाबाद, लखानी मज़दूर संघर्ष समिति जिंदबाद, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा जि़ंदाबाद के नारे लगाए गए।

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Mazdoor Morcha
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