फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर नूंह दंगा भडक़ाने के आरोपी बिट्टू बजरंगी को उसके भाई की मृत्यु पर सांत्वना देने बुधवार को उसके घर पहुंचे मानो कि वह इस शहर का एक अनमोल रतन था। उसके घर पहुंच कर खट्टर ने साबित कर दिया कि वह और उनकी सरकार कट्टरपंथी, दंगाइयों के साथ है, भले ही उन्होंने संविधान के अनुसार शासन चलाने की शपथ ली हो। यह भी साबित हो गया कि संघ और उसके अनुषांगिक संगठन विहिप, बजरंगदल भले ही दंगाइयों को अपने संगठन का सदस्य मानने से इनकार कर दें लेकिन सीएम खट्टर की तरह अंदरखाने उन्हें पूरा समर्थन और मदद देते हैं।
सीएम खट्टर का बिट्टू को यह समर्थन और हौसला अफजाई आज ही नहीं हासिल हुई है। नूंह की जलाभिषेक यात्रा के नाम पर दंगा भडक़ाने की तैयारियों को भी खट्टर की सरकार का समर्थन प्राप्त था। सीएम का हाथ होने के कारण ही वह बड़े पैमाने पर हथियार और दंगाइयों की फौज लेकर नूंहवासियों को ललकारता हुआ पहुंचा था। उसे मालूम था कि खट्टर की पुलिस और प्रशासन उसके साथ है, यह अलग बात कि उसे वहां से रोते हुए भागना पड़ा था। तब भी उसने पुलिस और प्रशासन पर उसका सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया था। उसे खट्टर की शह तब भी मिली थी जब वह गत वर्ष खोरी जमालपुर के पशुपालक हाजी जमात अली के पशु आदि लूट लाया था। पशुओं को लाते समय मुस्लिम बहुल गांवों में आपत्तिजनक नारेबाजी कर लोगों की धार्मिक भावनाएं भी उसने भडक़ाईं। खट्टर के आगे नतमस्तक गुडग़ांव और फरीदाबाद पुलिस ने हाजी जमात अली के पशु तो वापस करवा दिए लेकिन बिट्टू के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। खट्टर के इसी संरक्षण के चलते वह शहर भर में तलवारें भांजता हुआ गुंडागर्दी करने क साथ साथ कोतवाली के सामने मजार पर हनुमान चालीसा पढऩे भी आ गया था। जन दबाव में भले ही पुलिस को मुकदमे तो दर्ज करने पड़े लेकिन कार्रवाई कोई नहीं की गई।
13 दिसंबर 2023 की रात बिट्टू का सडक़छाप नशेड़ी गंजेड़ी भाई महेश पांचाल संदिग्ध हालात में झुलस गया था। यह खट्टर का ही समर्थन था कि पुलिस ने आनन-फानन नामजद आरोपी को पकड़ कर पूछताछ शुरू कर दी थी। यही नहीं खुद पुलिस आयुक्त राकेश आर्य भी मौका मुआयना करने पहुंच गए थे, हालांकि पुलिस जांच में बिट्टू बजरंगी और महेश पांचाल के बयान गलत साबित हुए थे। महेश पांचाल भी पुलिस और मजिस्ट्रेट के सामने अलग अलग बयान देकर गुमराह कर रहा था। पुलिस जांच में आरोपियों का मौके पर होना, कार से आना या आग लगाना साबित नहीं हो सका, इसके बावजूद बिट्टू पुलिस को लगातार धमकी भरे अंदाज में चेतावनी देता रहा तो उसके पीछे खट्टर का समर्थन ही था। महेश पांचाल की मृत्यु के बाद लोगों में घटना को लेकर तरह तरह की चर्चाएं हैं। दंगाई संघी गिरोह घटना को सही बताते हुए हत्यारोपियों को पकड़े जाने की मांग कर रहे हैं तो अन्य लोगों की नजर में यह घटना फर्जी है और एक धर्म विशेष के लोगों को टारगेट कर सामाजिक धु्रवीकरण करने की साजिश के तहत किया गया है। इसमें कौन सही है कौन गलत मज़दूर मोर्चा इसमें नहीं जाता लेकिन पाठकों के लिए हर पक्ष का जानना भी जरूरी है।
महेश पांचाल को आग लगाए जाने की घटना सोशल मीडिया से लेकर सभी अखबारों में प्रमुखता से छापी जा चुकी है। यहां उन चर्चाओं का जिक्र किया जाना भी जरूरी है जो इसे साजिश करार देती हैं। चर्चाएं जोरों पर हैं कि खुद को असुरक्षित समझ रहे बिट्टू बजरंगी ने पुलिस सुरक्षा हासिल करने के लिए ही भाई महेश पांचाल पर हमला किए जाने की साजिश रची थी। तैयारी यह थी कि महेश के हल्का फुल्का झुलसने के बाद इल्जाम मुस्लिम अरमान पर लगाकर हिंदू-मुस्लिम दंगे भडक़ा कर पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना और आने वाले चुनाव के लिए सामाजिक धु्रवीकरण करना था। इसके बाद बिट्टू को पुलिस सुरक्षा मिल ही जाती।
साजिश को अंजाम देने मेें घटना स्थल पर रखे फ्लैक्स बैनर की वजह से गड़बड़ी हो गई। महेश के शरीर पर जो ज्वलनशील पदार्थ डाला गया वह फ्लैक्स बैनर पर भी पड़ गया। आग लगाते ही वह भी धू-धू कर जल उठा और महेश उसकी चपेट में आकर गंभीर रूप से झुलस गया। यह सही है कि इसके बाद महेश ने नाले में कूद कर आग से निजात पाई लेकिन फ्लैक्स की अतिरिक्त आग के कारण वह ज्यादा झुलस गया। साजिश के तहत ही घटना के बाद बिट्टू और उसके भाई ने अरमान सहित अन्य लोगों पर उसे जिंदा जलाने का आरोप लगाया। बिट्टू और महेश की बनाई कहानी पुलिस जांच में टिक नहीं पाई क्योंकि जो कार बताई गई थी वह तो क्या उस तरह की कोई अन्य कार भी नहीं पाई गई। फोरेंसिक जांच में भी ज्वलनशील पदार्थ छिडक़े जाने की पुष्टि नहीं हो सकी थी। इन सबके बीच महेश ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान बदल दिए जिससे घटना के संदिग्ध होने के शक को और पुख्ता करते नजर आए।
आरोप साबित नहीं होने पर और अरमान के घटना स्थल पर नहीं होने की पुष्टि के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया था। इस पर बिट्टू बजरंगी ने कभी पुलिस को तीन दिन का अल्टीमेटम दिया तो कभी दस दिन का। पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए पंचायतें की गईं, इन पंचायतों में भी जमकर हिंदू-मुस्लिम कर धार्मिक भावनाएं भडक़ाने का काम किया गया लेकिन क्योंकि बिट्टू को संघ से आने वाले सीएम खट्टर और संघ के अनुषांगिक संगठनों का समर्थन प्राप्त था इसलिए पुलिस वही करती नजर आई जो बिट्टू चाह रहा था। खट्टर के आने से पुलिस बिट्टू के सामने नतमस्तक सी नजर आ रही है, तभी तो अरमान का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की तैयारी की जा रही है ताकि बिट्टू बजरंगी को पूरी संतुष्टि हो जाए। घटना को संदिग्ध मानने वालों का कहना है कि पुलिस यदि साजिश के तहत खुद को आग लगाने की थ्योरी की दिशा में जांच करे तो सच्चाई आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी, लेकिन मुख्यमंत्री खट्टर के होते हुए पुलिस यह कर पाएगी ऐसा नामुमकिन लगता है।
यह घटना ठीक वैसी ही है जैसी कि वर्ष 2015 में गांव सुनपेड़ में घटी थी। विदित है कि एक दलित ने अपने साथ मुकदमे में उलझे हुए राजपूतों को फांसने के लिए अपने ही घर में नियंत्रित आग लगाकर पीडि़त होने का नाटक करना चाहा था। लेकिन आग नियंत्रित न रह सकी, उसके दोनों बच्चे तो जल मरे थे और भी काफी नुकसान हो गया।
पुलिस ने बाकायदा मुकदमा दर्ज करके तफ्तीश शुरू कर दी थी। चंद घंटो के बाद ही पुलिस सच्चाई की तह तक पहुंच गई थी लेकिन राजनीतिक खेल के चलते मामला दलित बनाम राजपूत बना दिया गया। दर्जनों राजपूत बिना किसी सबूत के जेल में ठूंंस दिए गए, सरकार की दबाव के चलते उनकी जमानतें भी नहीं हो पाईं। तत्कालीन पुलिस आयुक्त सुभाष यादव ने इस संवाददाता से बात करने के दौरान ऑफ दि रिकॉर्ड घटना में राजपूत पक्ष को झूठा फंसाए जाने की पुष्टि की थी। स्थानीय पुलिस की तफ्तीश से संतुष्ट न होने पर तथाकथित पीडि़त दलित की मांग पर केस सीबीआई को दे दिया गया। लेकिन यह जांच भी स्थानीय पुलिस की जांच से आगे न बढ़ पाई और इसी निष्कर्ष पर पहुंची कि आग तो घर के अंदर से ही लगी थी न कि बाहर से लगाई गई थी।
मौजूदा मामले में भी स्थानीय पुलिस भी सच्चाई से पूरी तरह परिचित होते हुए भी राजनीतिक दबाव के चलते सच कहने की हिम्मत नहीं कर पा रही, इस मामले में अरमान या किसी अन्य का पॉलीग्राफिक टेस्ट कराने के बजाय खुद इस बिटुए का ही टेस्ट करा लिया जाए तो सच्चाई खुद ब खुद सामने आ जाएगी। सुनपेड़ मामले मेें भी सच्चाई इसी तरह सामने आई थी।