चीफ इंजीनियर डीआर भास्कर ने अपनी डकैतियां खोलने से किया इनकार

चीफ इंजीनियर डीआर भास्कर ने अपनी डकैतियां खोलने से किया इनकार
January 25 17:17 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) नगर निगम में दो सौ करोड़ रुपये के घोटाले में जेल जा चुके पूर्व चीफ इंजीनियर डीआर भास्कर ने हाईकोर्ट के सामने खुद को ईमानदार कहने से इनकार कर दिया है। उसने अदालत में अपनी और पत्नी की चल अचल संपत्ति घोषित करने से इनकार कर दिया है। डीआर भास्कर की इस स्वीकारोक्ति से अब उन आईएएस अफसरों की मुसीबत बढ़ सकती है जिनका नाम इस घोटाले में आ रहा है, हालांकि सरकार की कार्यशैली इस घोटाले का ठीकरा डीआर भास्कर पर फोड़ कर अन्य को बचाने वाली नजर आ रही है, यही कारण है कि आरोपी आईएएस अधिकारियों की जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।

दो सौ करोड़ घोटाले में जमानत पर बाहर चल रहे निगम के पूर्व चीफ इंजीनियर डीआर भास्कर के वकीलों ने 13 दिसंबर 2023 को हाईकोर्ट में आवेदन दिया था। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश अनूप चित्कारा को वकीलों ने बताया था कि उनका मुवक्किल साफ छवि वाला ईमानदार व्यक्ति है, उसने अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी और लगन के साथ निभाई और कभी भी किसी तरह का फायदा नहीं उठाया। उसे गलत ढंग से फंसाया गया है। इस पर न्यायाधीश ने डीआर भास्कर को अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए अपनी और अपनी पत्नी की देश-विदेश में चल-अचल संपत्ति, सभी बैंक खातों, लॉकर में जमा धनराशि, शेयर, म्यूचुअल फंड, सावधि जमा, आवर्ती जमा, जेवर-जवाहरात आदि का ब्यौरा देने का आदेश दिया था। यह ब्यौरा उन्हें चार जनवरी 2024 से पहले अदालत में पेश करना था।

चार जनवरी को अदालत में पेश हुए डीआर भास्कर के वकील गौतम दत्त और कुनाल डावर ने न्यायाधीश से कहा कि भास्कर के ईमानदार होने की बात उन्होंने अपनी ओर से कह दी थी। वह अपने मुवक्किल की चल-अचल संपत्ति का ब्यौरा नहीं देंगे क्योंकि ऐसा करने से संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 का उल्लंघन है साथ ही भारतीय साक्ष्य अधिनियम व अन्य कानूनों का भी उल्लंघन है। संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण प्रदान करता है यानी कि अपराध का आरोपी खुद अपने खिलाफ सुबूत देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद 21 व्यक्ति को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकारी देता है। यानी किसी व्यक्ति को केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन ही कैद किया जा सकता है, अन्य किसी भी तरह से नहीं।

बेशक संविधान उसको अपनी रक्षा करने का अधिकार देता है लेकिन करदाता के पैसे पर पल रही पुलिस, इनकम टैक्स विभाग, ईडी, डीआरआई आदि किस मर्ज की दवा हैं ? इन एजेंसियों का ही दायित्व है कि वे उसकी तमाम डकैतियों की पूरी खोजबीन जनता व न्यायपालिका के सामने लाएं। सभी जानते हैं कि अपराधी कभी भी अपना अपराध न तो खुद बयान करता है न अपने खिलाफ सबूत देता है, यह काम अभियोजन पक्ष का होता है कि वह तमाम तथ्य, सुबूत इकट्ठा करे। लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि ये तमाम एजेंसियां जिस सरकार के अधीन काम कर रही हैं वह सरकार खुद चोर है। जब सरकार का खुद का हिस्सा चोरी में हो तो वो क्यों भेद खुलने देगी।

डीआर भास्कर का अपना और पत्नी की चल-अचल संपत्ति नहीं घोषित करना दर्शाता है कि दो सौ करोड़ रुपये के घोटाले में उसका भी हाथ है। नगर निगम के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार दो सौ करोड़ रुपये का घोटाला तो खुल गया, उसके कार्यकाल की यदि ठीक से जांच हो तो हजारों करोड़ रुपये का घोटाला सामने आएगा लेकिन सरकार गहन जांच करवाने को तैयार नहीं दिख्र रही।

सूत्र तो यह भी बताते हैं कि डीआर भास्कर ने बहुत सी चल-अचल संपत्ति अपने भाई के नाम से बनाई है, इसी तरह कई अन्य रिश्तेदारों के नाम भी बेनामी संपत्ति है।  इतनी अधिक चल अचल संपत्ति केवल दो सौ करोड़ रु़पये के घोटाले से नहीं बनाई जा सकती। एक ठेकेदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि विकास कार्य की फाइल पर हस्ताक्षर करने के जेई से लेकर आला अधिकारियों तक कम से कम 26 प्रतिशत और अधिकतम 40 प्रतिशत कमीशन बंटता है तब कहीं जाकर भुगतान होता है। यदि किसी विकास कार्य की शिकायत हो गई तो उसमें भी दो से पांच प्रतिशत रकम जांच खत्म करने के लिए खर्च करनी पड़ती है। दो सौ करोड़ रुपये घोटाले की रकम केवल डीआर भास्कर ने तो नहीं रख ली होगी, सबका हिस्सा गया होगा। भास्कर ने यह अकूत संपत्ति केवल दो सौ करोड़ के घोटाले से नहीं हासिल की। जाहिर है कि डीआर भास्कर के साथ ही उस समय नगर निगम में विकास कार्यों को मंजूरी देने वाले आईएएस अफसर सोनल गोयल, एम शाईन, अनिता यादव और यश गर्ग की भी इन घोटालों में मिलीभगत रही होगी। सोनल गोयल तो जांच में घोटाले-भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गई थी लेकिन इन चारों ही आईएएस अफसरों के खिलाफ जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।

चुनावी वर्ष होने के कारण सीएम खट्टर भी उनकी सरकार में हुए भ्रष्टाचार को ढकने-छिपाने की कवायद में जुटे हैं, यही वजह है कि न सिर्फ नगर निगम के दो सौ करोड़ रुपये के घोटाले की जांच ही ठंडे बस्ते में डाली गई है, 102 करोड़ रुपये के पेेरीफेरल रोड गड़बड़ी, करीब एक करोड़ का पौधरोपण घोटाले सहित फरीदाबाद के अनेकों घोटालों की जांच भी रोक दी गई है। चुनाव के मौसम में यदि खट्टर सरकार के भ्रष्टाचारों की पोल खुलने लगी तो धर्म के नाम पर जीत हासिल करने की जुगत कर रही भाजपा को जनता खारिज कर सकती है।

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Mazdoor Morcha
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